Women for Justice: राजस्थान की ये बहुजन बेटियां विधि के क्षेत्र में बना रही हैं अपनी पहचान, पढ़िए ये प्रेरणा देने वाली स्टोरी!

आजीविका ब्यूरो के फेलोशिप प्रोग्राम में राजस्थान के 10 जिलों से चयनित हुई 40 विधि स्नातक महिलाएं एक्सपर्ट्स से कानून की बारीकियों के साथ प्रोसीज़रल लॉ और विभिन्न विषयों जैसे एट्रोसिटीज, यौन उत्पीड़न, पॉक्सो, घरेलू हिंसा , लेबर एंड लैंड राइट्स सरीखी समाज से जुड़े विषयों पर ज्ञान प्राप्त कर रही हैं। ये महिलाएं उदयपुर, सलूंबर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, जोधपुर ,बाड़मेर और जैसलमेर जिलों से हैं।
फेलोशिप में चयनित सभी SC/ST और अल्पसंख्यक समाज की महिलाएं हैं जो अब आत्मविश्वास के साथ वकालत को अपना स्थाई प्रोफेशन के रूप में अपनाने को उत्सुक हैं।
फेलोशिप में चयनित सभी SC/ST और अल्पसंख्यक समाज की महिलाएं हैं जो अब आत्मविश्वास के साथ वकालत को अपना स्थाई प्रोफेशन के रूप में अपनाने को उत्सुक हैं।
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उदयपुर- वकालत का पेशा मुश्किल माना जाता है। एडवोकेसी के लिए पारिवारिक बैकग्राउंड , खुद का क्लाइन्ट बेस और एक दमदार मेंटर ना हो तो यूनिवर्सिटी से अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होकर न्यायालयों में वकालत करना आसान काम नहीं है। कितने ही युवा लॉ ग्रेजुएट्स साल दो साल के गहन संघर्ष के बाद भी कमाई करने में नाकाम होने के बाद पेशे से मुंह मोड़ लेते हैं और नौकरी अथवा अपना व्यवसाय करने को मजबूर हो जाते हैं। 

ऐसे में कल्पना कीजिए कि लड़कियों के लिए वकालत कितनी मुश्किल होगी , तिस पर अगर कोई युवती वंचित समुदाय यानी दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यक समुदायों से ताल्लुक रखती हों तो उनके लिए बतौर एडवोकेट अपनी पहचान बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। 

लेकिन एक सुखद खबर यह है कि पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान में हाशिए और वंचित परिवारों की कई युवतियां अब कानून और विधि के क्षेत्र में अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही हैं। आजीविका ब्यूरो के Women for Justice फेलोशिप प्रोग्राम में राजस्थान के 10 जिलों से चयनित हुई 40 विधि स्नातक महिलाएं एक्सपर्ट्स से कानून की बारीकियों के साथ प्रोसीज़रल लॉ (कानूनी प्रक्रिया) और विभिन्न विषयों जैसे एट्रोसिटीज, यौन उत्पीड़न, पॉक्सो, घरेलू हिंसा , लेबर एंड लैंड राइट्स सरीखी समाज से जुड़े विषयों पर in-depth ज्ञान प्राप्त कर रही हैं। ये महिलाएं उदयपुर, सलूंबर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, जोधपुर ,बाड़मेर और जैसलमेर जिलों से हैं।  यह लेबर लाइन, आजीविका ब्यूरो और राजस्थान सरकार का सांझा कार्यक्रम है। 

आजीविका ब्यूरो के प्रोग्राम मेनेजर संतोष पूनिया ने द मूकनायक को इस अनोखे फेलोशिप स्कीम के बारे में विस्तृत जानकारी दी जो सितंबर 2023 में प्रारंभ हुआ। संतोष बताते हैं, " हमने प्रयोग के तौर पर यह फैलोशिप शुरू किया है जिसमें केवल 40 कैंडिडेट्स को चुना है। 22 लड़कियों के एक बैच की ट्रेनिंग सितंबर 2023 में शुरू हुई, जबकि  फरवरी 2024 में दूसरे बैच में बाकी कैंडिडेट्स की ट्रेनिंग शुरू की गई। पहला बैच लगभग एक साल का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका है और इन युवतियों के व्यक्तित्व में जिस प्रकार का निखार आया है उससे हम बहुत उत्साहित हैं। सभी SC/ST और अल्पसंख्यक समाज की महिलाएं हैं जो अब आत्मविश्वास के साथ वकालत को अपना स्थाई प्रोफेशन के रूप में अपनाने को उत्सुक हैं। " फेलोशिप का उद्देश्य कैंडिडेट्स को एक सामजिक अधिवक्ता बनाना नहीं बल्कि उन्हें एक प्रोफेशनल अधिवक्ता के रूप स्थापित होने के लिए आवश्यक दक्षता प्रदान करना है ताकि वे आगे चलकर ना सिर्फ स्वयं सफल हो बल्कि समाज के लिए भी कुछ कर सकें. पर्सपेक्टिव बिल्डिंग ( perspective building ) के अंतर्गत उन्हें समाज के संवेदनशील मुद्दे जैसे caste एंड gender , सेक्सुअलिटी, महिला और बाल अधिकार जैसे मुद्दों की जानकारी देना उद्देश्य है जिसपर आम तौर पर कोई चर्चा नहीं होती.

इसलिए छोड़ देते हैं वकालत

संतोष बताते हैं कि लॉ पास करने के बाद जब ग्रेजुएट्स न्यायालयों में प्रैक्टिस करना शुरू करते हैं, किसी न किसी सीनियर वकील के साथ काम सीखने लगते हैं लेकिन इन युवाओं को कोई आय नहीं होती। सामान्य रूप में देखा जाता है कि सीनियर वकील उनसे काम करवाते हैं लेकिन नौसिखिया होने के दृष्टिकोण से उन्हें काम के एवज में मेहनताना नहीं देते जिससे युवा हताश हो जाते हैं। रोजाना अदालतों में दिनभर भटकने के बाद जब कोई आय नहीं होती तो आने जाने का खर्चा भी भारी लगता है, ऐसे में वह कोई नौकरी करना बेहतर समझता है ताकि अपने परिवार चलाने में योगदान दे सके। 

संतोष बताते हैं कि फेलोशिप में चयनित युवतियां भी ऐसे ही स्थिति से गुजर रही थी, कमजोर और निम्न आय वर्ग के परिवारों से ताल्लुक रखने वाली अधिकांश युवतियों को प्रैक्टिस जारी रखने के लिए पिता या पति से खर्चा लेना पड़ता था। प्रोग्राम की एक्जीक्यूटिव मेहविश खान बताती हैं कि कुछ युवतियां ऐसी भी हैं जो स्वयं घरेलू हिंसा या तलाक की ट्रॉमा से गुजरी और अपना केस लड़ने के लिए खुद कानून की पढ़ाई की। " इन्होंने जब देखा कि अदालतों में अधिवक्ता केवल इनसे पैसे ले रहे हैं लेकिन केस सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा तो वे स्वयं ही अपने लिए पैरवी करने के उद्देश्य से लॉ सीखने लगी। "

 फेलोशिप मिलने के बाद ये युवतियां जहां अपने अपने जिलों में नियमित कोर्ट जा रही हैं वहीं ट्रेनिंग में कानून की बारीकियां सीखने के बाद लीगल कामों में रुचि लेने लगी हैं।
फेलोशिप मिलने के बाद ये युवतियां जहां अपने अपने जिलों में नियमित कोर्ट जा रही हैं वहीं ट्रेनिंग में कानून की बारीकियां सीखने के बाद लीगल कामों में रुचि लेने लगी हैं।

सात हजार रुपए का मासिक स्टाइपेंड और ट्रेनिंग भी

आजीविका ब्यूरो का दो वर्ष का फेलोशिप प्रोग्राम चयनित अभ्यर्थियों को ना सिर्फ ऑनलाइन ओर ऑफलाइन ट्रेनिंग देता है बल्कि उन्हें अपने पांव पर खड़ा होने के लिए वित्तीय सहायता के रूप में सात हजार रुपए मासिक स्टाइपेंड देता है जिससे वे अपना ट्रांसपोर्टेशन, किताबों और स्टेशनरी आदि का छोटा मोटा खर्चा निकाल सकें और परिवार के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ना हो। फेलोशिप मिलने के बाद ये युवतियां जहां अपने अपने जिलों में नियमित कोर्ट जा रही हैं वहीं ट्रेनिंग में कानून की बारीकियां सीखने के बाद कामों में रुचि लेने लगी हैं। फेलोशिप प्रोग्राम के तहत इन्हें सीनियर अधिवक्ताओं के साथ सीखने यानी मेंटरशिप से भी जोड़ा गया है जिससे इन्हें अगल अलग प्रकार के केसों के बारे में जानकारी हासिल हो रही है, ज्ञान का दायरा बढ़ने लगा है और अपने स्तर पर छोटे मोटे काम मिलने लगे हैं। 

ऑनलाइन क्लास में सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स विभिन्न विषयों पर  देते हैं
ऑनलाइन क्लास में सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स विभिन्न विषयों पर देते हैं

पहले परिचय भी नहीं दे पाती थी, अब दिखता है आत्मविश्वास 

मेहविश खान बताती हैं कि आदिवासी बाहुल्य इलाकों और SC समुदाय की कैंडिडेट्स में सालभर के प्रशिक्षण कोर्स से काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। खान बताती हैं जब हमने इनका चयन किया था, उस समय वे अपना परिचय भी देने में झिझकती थीं लेकिन एक्सपर्ट्स के मोटिवेशनल क्लासेस, आपसी बातचीत और आजीविका के कम्युनिटी प्रोग्रामों में नियमित हिस्सा लेने के बाद अब वे आत्मविश्वास से लबरेज दिखती हैं। इस फेलोशिप प्रोग्राम का एक बड़ा फायदा यह भी हुआ है कि ये 40 युवतियां एक दूसरे का भी सपोर्ट करने लगीं हैं। RJS और अन्य भर्ती परीक्षाओं के लिए पहले जब इन्हें दूर के सेंटरों में जाना होता था, परिवार को अकेले लड़की को भेजने में डर लगता था लेकिन अब चार पांच लड़कियां एक साथ जाने को तैयार होती हैं तो परिवार वाले भी टेंशन मुक्त हुए हैं। 

फेलोशिप के तहत माह में दो से तीन ऑनलाइन क्लासेज होते हैं जिसका समय शाम को रहता है। सब्जेक्ट expert विभिन्न विषयों पर प्रतिभागियों को प्रशिक्षण देते हैं। मेहविश बताती हैं कि नियमित रूप से असेसमेंट किया जाता है कि इन क्लासेज से प्रतिभागी कितना कुछ सीख या ग्रहण कर सकी हैं, इससे हमें भी इनकी आवश्यकता और ज्ञान अर्जित करने के लेवल की जानकारी हो पाती है। कैंडिडेट्स को प्रोग्राम के तहत नई दिल्ली भी ले जाया गया जहां इन्हें कानून के विषय विशेषज्ञों से कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिली।

प्रतिभागी कहते हैं - ना केवल खुद के लिए बल्कि समाज के किये काम का ज़ज्बा जागा

ललितेश्वरी
ललितेश्वरी

उदयपुर की ललितेश्वरी कहती हैं: इस fellowship में आयोजित training session के दौरान मुझे काफी कुछ सीखने और जानने मिला की किस तरह महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई जा सके व उत्पीड़ित महिलाओं को उनके साथ हो रहे अत्याचार एवं दबाव के प्रति जागरूक किया जा सके।

इस ट्रेनिग सेशन के बाद ऐसा लगा की महिलाओं को women justice की जानकारी होना अतिआवश्यक है एवम हर एक महिला को कानून के बारे में पता होना चाहिए।

मोनिका डामोर
मोनिका डामोर

बांसवाडा की मोनिका डामोर के मुताबिक उसे महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों और उन के निवारण के लिए कानून में शामिल प्रावधानों की जानकारी ट्रेनिंग के दौरान हुई जो बहुत ज्ञान वर्धक हैं. मोनिका कहती हैं की लॉ की पढाई के बाद भी मैं इतना नहीं सीख सकी लेकिन फेलोशिप के दौरान ऑनलाइन क्लासेज में सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स ने कई विषयों पर doubts दूर किये हैं. यहाँ से अर्जित ज्ञान से खुद तो आत्मनिर्भर बनूँगी ही साथ ही कोशिश करुँगी कि मेरी आदिवासी बहनों को भी मेरे ज्ञान का फायदा हो.

लीला मीणा
लीला मीणा

उदयपुर की लीला मीणा कहती हैं फेलोशिप को ज्वाइन करने के बाद मुझे अपने आप में एक कॉन्फिडेंस आया है, पहले में अदालतों में जाने में नर्वस होती थी मुझे लगता था कि मैं कैसे कुछ बोल पाऊँगी, अपनी बात प्रभावी तरीके से अदालत के समक्ष रख सकूंगी या नहीं लेकिन अब मुझे लगता है कि जब और लोग कर रहे हैं तो मैं क्यूँ नहीं ? एक महिला किस तरह से अपने अधिकारों के लिए न्यायलय का रुख कर सकती हैं, कैसे वो दूसरों के लिए पर्वी कर सकती हैं ये सब गुर मुझे फेलोशिप प्रोग्राम के दौरान मिले ट्रेनिंग से अब समझ आने लगा है.

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