महिलाएं सास और मां के अधीन नहीं है: केरल हाई कोर्ट

मामले को फैम‍िली कोर्ट ने पहले पत्नी द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था। फैम‍िली कोर्ट के आदेश की ‘पितृसत्तात्मक’ टिप्पणियों की आलोचना करते हुए हाईकोर्ट ने कहा क‍ि महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं।
महिलाएं सास और मां के अधीन नहीं है: केरल हाई कोर्ट
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केरल हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में फैम‍िली कोर्ट के आदेश की ‘पितृसत्तात्मक’ टिप्पणियों की मौखिक आलोचना करते हुए गुरुवार को कहा क‍ि महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि त्रिशूर की एक फैम‍िली कोर्ट ने पहले पत्नी द्वारा दायर तलाक की याचिका को यह देखते हुए खारिज कर दिया था कि उसकी शिकायतें ‘सामान्य टूट-फूट’ का हिस्सा थीं।

इसी आदेश में पक्षों (अलग हुए पति-पत्नी) को सलाह दी गई कि वे अपने मतभेदों को भुलाकर विवाहित जीवन की पवित्रता के अनुरूप कार्य करें। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा कि फैम‍िली कोर्ट का आदेश बहुत समस्याग्रस्त और पितृसत्तात्मक वाला था। न्‍यायाधीश ने कहा क‍ि मुझे खेद है कि 2023 में इस तरह के व‍िचार जारी नहीं रहेंगे।

इस बीच, पति के वकील ने बताया कि त्रिशूर फैम‍िली कोर्ट के आदेश में पत्नी को इस मुद्दे पर उसकी मां और सास की बात सुनने के लिए कहा गया था। इस पर गंभीरता से विचार करते हुए हाईकोर्ट ने जवाब दिया कि किसी महिला के फैसले को उसकी मां या उसकी सास के फैसले से कमतर नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा क‍ि महिलाएं अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं‌।

न्यायाधीश ने पति के वकील की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि मौजूदा विवाद आसानी से हल किए जा सकते हैं। और इन्हें अदालत के बाहर भी सुलझाया जा सकता है। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अदालत के बाहर समझौते का निर्देश केवल तभी दे सकते हैं, जब महिला भी ऐसा करने को तैयार हो। न्यायाधीश ने कहा क‍ि उसका अपना एक दिमाग है। क्या आप उसे बांधेंगे और मध्यस्थता के लिए दबाव डालेंगे? यही कारण है कि वह आपको छोड़ने के लिए मजबूर हुई‌ अच्छा व्यवहार करो, एक इंसान बनो।

तलाक के मामले को थालास्सेरी की एक अन्‍य फैम‍िली कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी, जो मायके के करीब था। जहां वह अपने बच्चे (उससे पैदा हुआ) के साथ रोजगार के लिए आई थी। उसने अदालत को बताया कि शादी के बाद घर में हो रहे विवादों और दुर्व्यवहार के कारण वह शुरू में अपने बच्चे के साथ कोट्टाराकारा में अपने पैतृक घर चली गई थी। जैसे ही (त्रिशूर की अदालत द्वारा उसकी पहली तलाक की याचिका खारिज होने के बाद) उसने कोट्टाराकारा में अपनी तलाक की याचिका दायर की, क्योंकि यह उसके पैतृक घर के करीब था। हालांकि, बाद में उसे अपने बच्चे के साथ रोजगार के लिए मायके जाना पड़ा, जिसे उसकी देखभाल और ध्यान की आवश्यकता थी।

हालांकि, उसने हाईकोर्ट को बताया कि तलाक की कार्यवाही में भाग लेने के लिए कोट्टाराकारा की यात्रा जारी रखना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति का असर बच्चे पर भी पड़ रहा है। इसलिए, उन्होंने हाईकोर्ट से तलाक की कार्यवाही को थालास्सेरी की एक पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित करने का आग्रह किया, जो मायके के करीब था। पति ने ट्रांसफर याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि उनकी मां, जो मामले में दूसरी प्रतिवादी हैं, मामले के लिए थालास्सेरी की यात्रा नहीं कर सकतीं क्योंकि वह 65 वर्ष की थीं।

उन्होंने अलग हो चुकी महिला की इस दलील को मंजूरी दे दी कि तलाक की कार्यवाही को उसकी सुविधा के अनुसार थालास्सेरी की एक अदालत में स्थानांतरित किया जा सकता है, क्योंकि वह एक कामकाजी पेशेवर है। और उसने अपनी सास को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में पेश होने की भी अनुमति दी।

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