लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में तैनात एक सिविल जज का लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें सिविल अर्पिता साहू ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है. आरोप है कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना मिली थी. रात में मिलने को कहने से तंग आकर लगातार शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं हुई. इससे निराश होकर सिविल जज ने मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी लिखी और अपनी जिंदगी खत्म करने की अनुमति मांगी.
जज अर्पिता साहू ने मुख्य न्यायाधीश को लिखे लेटर में लिखा कि, “मैं इस पत्र को बेहद दर्द और निराशा में लिख रही हूं. इस पत्र को लिखने का उद्देश्य मेरी कहानी बताने और प्रार्थना करने के अलावा कोई और नहीं है. आप मेरे सबसे बड़े अभिभावक हैं और मुझे अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें. मैं बहुत उत्साह और इस विश्वास के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई कि मैं आम लोगों को न्याय दिलाऊंगी. मुझे क्या पता था कि मैं जिस भी दरवाजे पर जाऊंगी, मुझे जल्द ही न्याय के लिए भिखारी बना दिया जाएगा.”
“अपनी सेवा के थोड़े से समय में मुझे खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला है. मेरे साथ हद दर्जे तक यौन उत्पीड़न किया गया, बिल्कुल दोयम दर्जे जैसा व्यवहार किया गया. मैं भारत की सभी कामकाजी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वह यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीखें. यह हमारे जीवन का सत्य है. POSH ACT हमसे बोला गया एक बड़ा झूठ है. कोई सुनता नहीं, शिकायत करोगी तो प्रताड़ित किया जाएगा. आपको 8 सेकंड की सुनवाई में अपमान और जुर्माना लगाने की धमकी मिलेगी.”
“अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगे तो मैं आपको बता दूं कि मैं ऐसा नहीं कर सकती. मैं जज हूं. न्याय तो दूर, मैं अपने लिए भी निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी. मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें. एक विशेष जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों द्वारा मेरा यौन उत्पीड़न किया गया है. मुझे रात में जिला जज से मिलने को कहा गया.”
“मैंने 2022 में मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाई कोर्ट से शिकायत की. आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई. किसी ने भी मुझसे यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या हुआ, आप परेशान क्यों हैं? मैंने जुलाई 2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की. जांच शुरू करने में ही 6 महीने और एक हजार ईमेल लग गए.”
“जो जांच प्रस्तावित जांच भी है, वह एक दिखावा है. पूछताछ में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं. समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है. यह बहुत बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त) के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए.”
“मैंने केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान जिला न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया जाए, लेकिन मेरी प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया. ऐसा नहीं है कि मैंने जिला जज के तबादले की प्रार्थना यूं ही कर दी थी. माननीय उच्च न्यायालय पहले ही न्यायिक पक्ष में यह निष्कर्ष दे चुका है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी शिकायतों और बयान को मौलिक सत्य के रूप में लिया जाएगा. मैं बस एक निष्पक्ष जांच की कामना करती थी.”
“जांच अब सभी गवाहों के नियंत्रण में जिला न्यायाधीश के अधीन होगी. हम सभी जानते हैं कि ऐसी जांच का क्या हश्र होता है. जब मैं स्वयं निराश हो जाऊंगी तो दूसरों को क्या न्याय दूंगी? मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है. पिछले डेढ़ साल में मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है. मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है. कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से समाप्त करने की अनुमति दें.”
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