नई दिल्ली: सरकार द्वारा संसद में पेश रिपोर्ट ने भूचाल ला दिया है। हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) का सर्वे आया है। सर्वे के मुताबिक, 2019 से 2021 के बीच तीन साल में 13.13 लाख नाबालिग लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं के लापता होने के बाद भी उनके खिलाफ होने वाले अन्य अपराधों की संख्या घटी नहीं है। इन आंकड़ों के सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियों की महिला इकाई की सदस्य, स्वयंसेवी संस्थाएं चलाने वाली महिलाओं ने सरकार से जवाब मांगा है।
ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जुटाए गए हैं। मंत्रालय ने संसद को बताया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां गायब हो गईं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा लड़कियां मध्य प्रदेश से गायब हुई हैं। मध्य प्रदेश में 1,60,180 महिलाएं और 38,234 नाबालिग लड़कियां इस दौरान लापता हुई हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहां 1,56,905 महिलाएं और 13,033 नाबालिग लड़कियां गायब हुई हैं। इसके बाद नंबर आता है महाराष्ट्र का जहां 1,78,400 महिलाएं और 13,033 नाबालिग लड़कियों के लिए मिसिंग कंप्लेंट लिखवाई गई थी। ओडिशा में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियों के गायब होने की खबर आई है। छत्तीसगढ़ में यही आंकड़ा 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियों का था।
मणिपुर वायरल वीडियो कांड के बाद से ही महिलाओं की सुरक्षा पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं और अब यह आंकड़ा बताता है कि हम अपनी ही बेटियों की रक्षा करने में कितने असफल साबित हो रहे हैं।
ये संख्याएं स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करती हैं और देश में लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ाती हैं।
हालांकि गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए लागू कानूनों और नीतियों को सूचीबद्ध किया, जैसे कि 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान, आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली और यौन अपराधियों की रजिस्ट्री, लेकिन जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है, अभी तक ज़मीन पर प्रभाव महसूस नहीं किया गया है।
महिलाओं के गायब होने के इस आंकड़े पर द मूकनायक ने संगीता शर्मा से बात की। शर्मा मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग की सदस्य हैं और मीडिया विभाग मध्यप्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष है। संगीता जी हमें बताती हैं कि " केंद्रीय सरकार और मध्यप्रदेश सरकार पूरी तरह से असफल साबित हुई है। क्योंकि सरकार ही कहती है कि केंद्र में भी हम हैं और प्रदेशों में भी हम हैं। इतने बड़े दावे करते है कि हमारी डबल इंजन की सरकार है। यह बताइए कि जब आपके प्रदेश से आपकी बेटियां चली जाती हैं। आपको यह तक नहीं पता होता कि वह कहां गायब हो जाती हैं। इनको कितनी संख्या में वापस लाया गया है, यह आंकड़े भी केंद्र सरकार ने नहीं दिए हैं"।
आगे वह कहती है कि "महिलाओं के गायब होने के आंकड़े में मध्यप्रदेश नंबर वन पर आया है। जहां केंद्रीय सरकार 18 सालों से काम कर रही है। जब इतनी बड़ी तादाद में महिलाएं गायब हो रही है तो यह किस बात का कहना है कि "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" जबकि बेटियां महिलाएं तो नहीं बचाई जा रही है। आप वोट लेने के लिए तो महिलाओं से उनकी सुरक्षा देने की बात करते हो। पर असल में उनको सुरक्षा नहीं दे पा रहे हो। एक महिला के तौर पर तो हम कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है"।
"कानून पर अच्छे से काम करने की जरूरत है और उन कानूनों को कठोर बनाना चाहिए, ताकि हमारे देश की महिलाएं आगे बढ़े पीछे नहीं," उन्होंने कहा।
द मूकनायक ने शोभना स्मृति से बात की। स्मृति जीसीटीडब्लू की संस्थापक सदस्य व दलित महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता है। वह बताती है कि "महिला की सुरक्षा की जिम्मेदारी को लेकर हमें और भी बहुत कुछ करना चाहिए। ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे महिलाएं घर, बाहर, कहीं पर भी सुरक्षित रह सकें। सत्ता में बैठे लोग महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अभी भी गंभीर नहीं है। महिलाओं के गायब होने के लिए उनकी तस्करी,वेश्यावृत्ति, दूसरे देशों में बेच देना, घरेलू काम, जबरदस्ती विवाह बहुत कुछ कारण हैं। अलग-अलग तरीकों से महिलाओं को गायब किया जाता है। यह आज का नहीं है, पहले से चलता आ रहा है, लेकिन सवाल इस बात का है कि अब तो कानून है, फिर क्यों अब यह सब हो रहा है। अगर कानून से भी इन आंकड़ों को नहीं रोका जा रहा है तो इसके लिए कौन जवाबदेह है। भारत में जहां महिलाओं के लिए योजनाएं, सशक्तिकरण योजनाएं चल रही हैं। तमाम पैसा खर्च किया जा रहा है तो सुरक्षा नियम सुनिश्चित क्यों नहीं हो पा रहे है। सरकार इस मामले में पूरी तरह से असफल हुई है। सरकार केवल मुंह से बोल कर महिलाओं की सुरक्षा की बात करती है। परंतु वास्तविकता में कुछ नहीं हो रहा है वरना इतना बड़ा आंकड़ा निकलकर सामने नहीं आता।"
आगे वह कहती है कि "जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए तंत्र बनाए गए हैं। इन तंत्रों से जुड़े लोग ऐसे कैसे काम कर रहे हैं जो बदलाव नहीं हो पा रहा है। कानून मंत्री, गृह मंत्री सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उनको खुद इन सुरक्षा कानूनों को देखरेख करनी चाहिए। अगर सरकार सतर्कता से इन पर काम करती है तो इतना बड़ा आंकड़ा सामने नहीं आता। जब भी कोई भी सरकार सत्ता में होती है तो सरकार बस अपने राजनीतिक लाभ को देखती है। उसको ना ही किसी महिला से मतलब होता है, ना ही उसकी सुरक्षा से, न ही उसके परिवार से, किसी चीज से उसको कोई मतलब नहीं होता है।"
हमारे देश में महिलाओं की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है। महिलाओं के लिए संविधान में जो भी कानून बने हैं। उनको अच्छे से निर्वाह नहीं किया गया है। उन एजेंसियों ने काम नहीं किया। यह बढ़ते आंकड़े नतीजा है गैर जिम्मेदारी का।
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