नई दिल्ली। तालिबान शासित अफगानिस्तान में महिला-विरोधी अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहा। तालिबान में बर्बरता का एक चौंका देने वाला मामला सामने आया है। 4 जून को उत्तरी अफगानिस्तान के सर-ए-पुल प्रांत में प्राथमिक स्कूलों में लगभग 80 लड़कियों को ज़हर दे दिया गया। जहर के असर से हालत बिगड़ने पर सभी लड़कियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है।
देश में लड़कियों के छठी कक्षा से आगे पढ़ाई करने पर प्रतिबंध है। ऐसे में इस मामले में शिक्षा अधिकारी ने विस्तृत जानकारी नहीं देते हुए कहा कि जहर देने वाले व्यक्ति की निजी रंजिश थी। ये घटनाएं सर-ए-पुल प्रांत में शनिवार और रविवार को हुई है।
फॉक्स न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस पर जानकारी देते हुए अफगानिस्तान में एक शिक्षा अधिकारी ने कहा है कि इस घटना में कम से कम 80 लड़कियों को जहर दिया गया है। मामले में बोलते हुए शिक्षा के प्रांतीय विभाग के निदेशक मोहम्मद रहमानी ने कहा है कि ये घटनाएं संगचरक जिले के कक्षा एक से छह तक की छात्राओं के साथ हुआ है।
उनके अनुसार, नसवान-ए-कबोद आब स्कूल में 60 और नसवान-ए-फैजाबाद स्कूल में 17 बच्चियों को जहर दिया गया है। ये स्कूल एक दूसरे के करीब और आमने-सामने थे। रहमानी ने बताया कि बच्चियों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उनकी हालत अब ठीक है।
हैरत की बात यह है कि अफगानी लड़कियों को जहर देने वालों का पता नहीं चला, दोनों घटनाओं में किसी संगठन ने जिम्मेदारी नहीं ली। हालांकि, कई मानवाधिकार संगठन इन घटनाओं में तालिबान का हाथ बता रहे हैं, क्योंकि तालिबान का रवैया महिलाओं को लेकर बेहद सख्त रहा है और, अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद तो तालिबान ने ऐसे-ऐसे फैसले लिए हैं कि यूएन (संयुक्त राष्ट्र) भी उसे नहीं रोक पा रहा। देश के कई इलाकों में तालिबान ने यूएन के मिशन में काम करने वाली महिलाओं पर भी पाबंदियां लगा दीं।
बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान पहले ही लड़कियों के 6वीं क्लास से आगे पढ़ाई करने पर रोक लगा चुका है अब, जिन स्कूलों में लड़कियों को जहर दिया गया है वो अफगानिस्तान के सर-ए-पुल प्रांत में हैं। दोनों स्कूल एक दूजे के आस-पास बताए जा रहे हैं। अभी इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि जहरखुरानी की शिकार लड़कियों की उम्र क्या है और वो कौन सी क्लास में पढ़ती हैं।
ईरान की तरह अफगानिस्तान भी एक घोषित इस्लामिक राष्ट्र है, और वहां 95% से ज्यादा आबादी मुसलमानों की ही है। दोनों देशों ने हिजाब और बुर्के को अनिवार्य कर रखा है। इसके अलावा, वहां महिलाओं को कार्यस्थलों पर या तो जाने ही नहीं दिया जाता और महिलाएं यदि काम पर जाती भी हैं तो सिर से पैर तक पूरा बदन ढका रखना पड़ता है. बहरहाल, जहर दिए जाने की घटना पर मानवाधिकार संगठन अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को कोस रहे हैं, सवाल उठ रहे हैं कि इस्लामिक मुल्क में आखिर हो क्या रहा है, और क्या महिलाएं इसी तरह कट्टरपंथियों के निशाने पर रहेंगी।
ऐसा माना जा रहा है कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने और अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों तथा स्वतंत्रता पर नियंत्रण करने के बाद से इस तरह का यह पहला मामला है। देश में लड़कियों के छठी कक्षा से आगे पढ़ाई करने पर प्रतिबंध है। शिक्षा अधिकारी ने संक्षेप में कहा कि जहर देने वाले व्यक्ति की निजी रंजिश थी। ये घटनाएं सर-ए-पुल प्रांत में शनिवार और रविवार को हुईं।
तालिबान द्वारा महिलाओं की नौकरी पर प्रतिबंध लगाए जाने से हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय मिशन को भी करारा झटका लगा। लाखों लोगों को जीवन रक्षक सहायता पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मिशन को तालिबानियों के इस फैसले ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। इस मिशन में सैकड़ों अफगानी महिलाएं काम करती थीं। मगर उन पर प्रतिबंध लगने से सैकड़ों पुरुषों को भी घर बैठना पड़ गया। इससे संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय मिशन में बाधा पहुंची।
पिछले नवंबर में ईरान में भी ऐसा ही मामला सामने आया था, जिसमें लड़कियों के स्कूलों को टारगेट किया गया था। हजारों छात्राओं ने बताया था कि जहरीले धुएं की वजह से वो बीमार हो गई थी। हालांकि, इस मामले में ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई थी कि इस घटना के पीछे किसका हाथ है। वहीं, अधिकारियों ने माना था कि इस तरह से 50 से ज्यादा स्कूलों को निशाना बनाया गया था।
इसी साल मार्च में ईरान में भी ऐसी घटना हुई थी। ईरान में छात्राओं को पढ़ने से रोकने के लिए जहर दिया गया था। इस बात का खुलासा डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर यूनुस पनाही ने किया था। उन्होंने कहा था, घोम शहर में नवंबर 2022 के बाद से रेस्पिरेटरी पॉइजनिंग के सैकड़ों मामले सामने आए हैं। उनका कहना था कि स्कूलों में पानी को दूषित किया जा रहा है, जिससे छात्राओं को सांस लेने में दिक्कत आ रही है। इनमें उल्टी, जबर्दस्त बॉडी पेन और दिमागी दिक्कत शामिल है। उनकी हालत इतनी बिगड़ रही है कि इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
अफगानिस्तान में 2015 में भी ऐसी घटना हुई थी। तब हेरात प्रांत में स्कूल की 600 बच्चियों को जहर दिया गया था। तब भी किसी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली थी। हालांकि उस समय कई मानवाधिकार संगठनों ने तालिबान को घटना का जिम्मेदार ठहराया था।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.