नई दिल्ली। पहलवानों और बृजभूषण शरण सिंह को लेकर चल रहे विवाद के बीच अब विनेश फोगाट ने बड़ा फैसला किया है। पहले बृजभूषण के करीबी संजय सिंह WFI के चीफ चुने गए थे। इसके बाद ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक के संन्यास ले लिया था और बजरंग पुनिया ने पद्मश्री सम्मान वापस कर दिया था। फिर सरकार हरकत में आई और WFI की नई बॉडी को सस्पेंड कर दिया। जिसके बाद भारतीय कुश्ती संघ के नए अध्यक्ष संजय सिंह और उनकी पूरी टीम को भी सस्पेंड कर दिया गया, लेकिन अब विनेश फोगाट ने बड़ा कदम उठाया है।
विनेश फोगाट ने मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्ड वापस करने का फैसला किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए इसके बारे में जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है कि साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ दी है और बजरंग पूनिया ने अपना पद्मम श्री अवॉर्ड लौटा दिया है। देश के लिए ओलंपिक पदक मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को यह सब करने के लिए किस लिए मजबूर होना पड़ा। यह सब सारे देश को पता है और आप तो देश के मुखिया हैं। मुझे साल 2016 याद है। जब साक्षी मलिक को ओलंपिक में पदक जीतकर आई थी तो आपकी सरकार ने उन्हें बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ की ब्रांड एम्बेसडर बनाया था।
हरियाणा की 29 साल की महिला पहलवान विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली एकमात्र महिला भारतीय पहलवान हैं। फोगाट ने इंटरनेशनल लेवल के टूर्नामेंट में भारत के लिए पांच स्वर्ण पदक जीते हैं। वह 2019 में लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड्स के लिए नामांकित होने वाली पहली एथलीट थीं। उन्हें 2016 में अर्जुन पुरस्कार और 2018 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। विनेश को 2020 में भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न भी मिला।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विनेश फौगाट ने कहा कि "बजरंग पूनिया ने किस हालत में अपना पद्मश्री वापस लौटाने का फैसला लिया होगा, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं उसकी वह फोटो देखकर अंदर ही अंदर घुट रही हूं। मुझे अपने पुरस्कारों से घिन्न आने लगी है। कई बार यह सोचकर घबरा जाती हूं कि अब जब मेरी काकी ताई टीवी पर हमारी हालत देखती होंगी तो वह मेरी मां को क्या कहती होंगी? अब मैं पुरस्कार लेती उस विनेश की छवि से छुटकारा पाना चाहती हूं, क्योंकि वह सपना था और जो अब हमारे साथ हो रहा है वह हकीकत है। मुझे मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड दिया गया था जिनका अब मेरी जिंदगी में कोई मतलब नहीं रह गया है। हर महिला सम्मान से जिंदगी जीना चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री सर, मैं अपना मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड आपको वापस करना चाहती हूं ताकि सम्मान से जीने की राह में ये पुरस्कार हमारे ऊपर बोझ न बन सकें।" हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि विरोध में पद्म सम्मान लौटाया गया है। किसी घटना के विरोध में पद्म सम्मान लौटाने वाली की लिस्ट में कई अन्य नाम भी शामिल हैं।
आजादी के बाद ऐसा मामला साल 1954 में दिए गए पद्म सम्मान को लेकर सामने आया था। पूर्व सांसद ओपी त्यागी की तरफ से राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कहा गया कि स्वतंत्रता सेनानी आशादेवी आर्यनायकम और सामाजिक कार्यकर्ता अमलप्रोवा दास ने व्यक्तिगत आधार पर पुरस्कार (पद्म श्री) स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह को 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इसे वापस कर दिया था। उन्हें प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया था। वह 1980 से 1986 तक सांसद रहे। बाद में उन्हें 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
रामकृष्ण मिशन के स्वामी रंगनाथानंद ने 2000 में यह पुरस्कार अस्वीकार कर दिया था। उनका कहना था कि यह उन्हें एक व्यक्ति के रूप में प्रदान किया गया था, मिशन को नहीं। इतिहासकार रोमिला थापर के लिए सरकारी सम्मान स्वीकार न करना विरोध का नहीं बल्कि सिद्धांत का मामला था। थापर ने दो बार 1992 और फिर 2005 पद्म पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि वह केवल 'शैक्षणिक संस्थानों या पेशेवर काम से जुड़े लोगों से' पुरस्कार स्वीकार करेंगी। नरेंद्र मोदी सरकार के पहल कार्यकाल के ठीक एक साल बाद सितंबर से नवंबर 2015 के बीच लेखकों और बुद्धिजीवियों द्वारा अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के 33 मामले सामने आए थे। इसकी शुरुआत 9 सितंबर को हुई जब हिंदी लेखक उदय प्रकाश ने विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्या पर अकादमी की 'उदासीनता' के विरोध में उपन्यास मोहनदास के लिए 2010 में जीता गया साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया।
प्रकाश सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस ढिंडसा ने भी अपने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस करने की घोषणा की थी। इन दोनों ने हाल ही में तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन के समर्थन में अपने पुरस्कारों की वापसी की पेशकश की थी। हालांकि, इन दोनों ही दिग्गजों का नाम पद्म पुरस्कार विजेताओं की लिस्ट में शामिल है और रजिस्टर में उन्हीं सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है।
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक एक अधिकारी ने कहा कि‘पुरस्कार विजेता किसी भी कारणवश पुरस्कार लौटाने के अपने फैसले की घोषणा कर सकता है, लेकिन पद्म पुरस्कार में ऐसे कोई भी नियम का प्रावधान नहीं है। बिना किसी ठोस कारण के बतलाए केवल राष्ट्रपति द्वारा ही पुरस्कारों को रद्द करने की अनुमति मिल सकती है। किसी भी पुरस्कार विजेता का नाम राष्ट्रपति के निर्देशों के तहत बनाए गए पद्म प्राप्तकर्ताओं के रजिस्टर में उसे वक्त तक बरकरार रहता है, जब तक उसका पुरस्कार रद्द नहीं होता।
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