नई दिल्ली: विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) के वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक में भारत दो पायदान नीचे खिसककर 129वें स्थान पर आ गया, जबकि आइसलैंड ने सूची में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है। बुधवार को प्रकाशित रैंकिंग में यह जानकारी सामने आई है। दक्षिण एशिया में भारत वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक (India Global Gender Gap Index) में बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान के बाद पांचवें स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान सबसे निचले पायदान पर है।
वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक हर साल चार प्रमुख आयामों (आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक उपलब्धि, स्वास्थ्य और जीवन रक्षा, और राजनीतिक सशक्तिकरण) में लैंगिक समानता की वर्तमान स्थिति और विकास को मापता है।
यह 2006 में अपनी स्थापना के बाद से समय के साथ इन अंतरों को कम करने की दिशा में कई देशों के प्रयासों की प्रगति को ट्रैक करने वाला सबसे लंबे समय तक चलने वाला सूचकांक है।
वैश्विक स्तर पर 146 देशों की इस सूची में सूडान सबसे निचले स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान तीन स्थान नीचे खिसककर 145वें पायदान पर आ गया है। बांग्लादेश, सूडान, ईरान, पाकिस्तान और मोरक्को के साथ भारत कम आर्थिक समानता वाले देशों में शामिल है। इन सभी देशों में अनुमानित अर्जित आय में 30 फीसद से कम लैंगिक समानता दर्ज की गई।
डब्लूईएफ के मुताबिक, 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले भारत का 2024 में लैंगिक अंतर 64.1 फीसद रहा। भारत पिछले वर्ष 127वें स्थान पर था और सूची में दो पायदान नीचे जाने की मुख्य वजहों में शिक्षा और राजनीतिक सशक्तिकरणह्न मापदंडों में आई मामूली गिरावट है। वहीं आर्थिक भागीदारी और अवसर मापदंडों में थोड़ा सुधार हुआ है।
डब्लूईएफ ने कहा कि भारत में आर्थिक समानता पिछले चार क्यों से ऊपर की ओर बढ़ रही है। इस सूची में पाकिस्तान को 145वीं रैंक पर रखा गया है। जबकि सूडान 146 देशों की सूची में सबसे अंतिम स्थान पर है।
भारत बांग्लादेश, सूडान, ईरान, पाकिस्तान और मोरक्को के साथ सबसे कम आर्थिक समानता चाले देशों में शामिल है। इन सभी देशों में अनुमानित आय में लैंगिक समानता 30 फीसद से कम दर्ज की गई। डब्लूईएफ का कहना है कि भारत का आर्थिक समानता स्कोर पिछले चार वर्षों में ऊपर की ओर बढ़ा है।
राजनीतिक सशक्तीकरण उपसूचकांक में, भारत राष्ट्राध्यक्ष सूचकांक में शीर्ष 10 में है, लेकिन संधीय स्तर पर, मंत्रिस्तरीय पदों पर (6.9 फीसद) और संसद में (17.2 फीसद) महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए इसके अंक अपेक्षाकृत कम हैं। विश्व आर्थिक मंच ने कहा कि विश्व ने लैंगिक असमानता को 68.5 प्रतिशत तक कम कर दिया है, लेकिन वर्तमान गति से पूर्ण लैंगिक समानता प्राप्त करने में 134 वर्ष का समय लगेगा।
पिछले साल न्यूज 18 द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जिस तरह लोग अलग-अलग नौकरियों के लिए संघर्ष करते हैं, उसी तरह बिहार के एक गांव के ग्रामीण विवाह की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करते हैं। यह स्थिति जमुई जिले के सदर मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर स्थित बरुआट्टा गांव की है।
पांचवें वार्ड की महादलित बस्ती में लड़कों के लिए शादी करना चुनौतीपूर्ण होता है। संभावित विवाह संबंध तो होते हैं, लेकिन वैवाहिक संबंध अक्सर टूट जाते हैं। बरुट्टा गांव के पांचवें वार्ड के महादलित इलाके में करीब 50 परिवार रहते हैं। ग्रामीणों के लिए मुख्य चुनौती उनके घरों तक जाने वाली सड़क का न होना है, जिससे बरसात के मौसम में काफी दिक्कतें होती हैं।
अपने घरों से आधा किलोमीटर दूर स्थित मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को खेतों से होकर गुजरना पड़ता है और घुटनों तक पानी और कीचड़ से होकर गुजरना पड़ता है। उचित सड़कों की कमी संभावित विवाह करने वालों के लिए गांव में अपनी बेटियों की शादी करने पर विचार करने में बाधा बनती है।
2022 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में एक ऐसा गांव है जहां कुंवारे युवक शादी करना चाहते हैं लेकिन उनकी शादी नहीं हो पा रही है। इसलिए इस गांव को 'कुंवारों का गांव' कहा जाता है। यह सुनकर आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यही दावा किया जा रहा है।
बिहार की राजधानी पटना से 300 किलोमीटर की दूरी पर बरवां कला गांव में कोई भी परिवार अपनी बेटी की शादी नहीं करता है। यह सुनकर थोड़ा अजीब लगा होगा कि बरवां कला गांव के युवकों से किसी लड़की का पिता अपनी बेटी की शादी क्यों नहीं कराना चाहता है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि काफी पिछड़ा होने के कारण कोई भी माता-पिता अपनी बेटी की शादी इस गांव में नहीं कराते हैं। वहीं, इस गांव में सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यही कारण है कि यहां के युवा लड़के कुंवारे हैं और चाहकर भी उनकी शादी नहीं हो रही है।
साल 2017 में काफी मेहनत से एक लड़के की शादी हुई थी. जिसके लिए पूरे गांव के लोगों ने कड़ी मेहनत की थी. गांव वालों ने पहाड़ और जंगल काटकर 6 किलोमीटर लंबी सड़क बना दी थी.
स्थानीय
सालों बाद जब अजय कुमार की शादी हुई तो गांव वालों ने किसी सेलिब्रिटी की तरह उसका स्वागत किया. गांव के लोगों की सालों की मेहनत के बाद पूरे गांव ने शादी का जश्न मनाया. 2017 के बाद आज तक उस गांव में कोई शादी नहीं हुई. इसके कुछ और कारण भी स्थानीय लोग बताते हैं, जैसे गांव में शादी करने के लिए गांव से दूर गेस्ट हाउस बुक करना पड़ता है और शादी की रस्में निभानी पड़ती हैं. क्योंकि गांव में सड़क नहीं है.
इलाहाबाद से 35 किलोमीटर दक्षिण में स्थित श्री तारा माजरा गांव को 'कुंवारों के गांव' का टैग मिला हुआ है, क्योंकि पानी और बिजली की कमी के कारण यहां दुल्हनें आने से पहले ही डर जाती हैं। बारा तहसील मुख्यालय से केवल पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित, श्री तारा माजरा की आबादी लगभग 1,000 है।
इलाहाबाद के ग्रामीण इलाकों की ही नहीं, बल्कि पड़ोसी जिलों जैसे प्रतापगढ़, कौशाम्बी और चित्रकूट के अंदरूनी इलाकों की महिलाएं भी गांव के युवकों के विवाह प्रस्तावों को ठुकरा देती हैं, क्योंकि यहां शादी का मतलब होगा अत्यधिक कठिनाई भरा जीवन, जिसमें पानी की कमी और बिजली नहीं होगी।
2017 में, हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद के इस गांव में, 18 से 29 वर्ष की आयु के 50 कुंवारे युवक दुल्हन की तलाश में थे, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिल पा रही रही।
यह गांव बिजली और उचित जल संसाधनों की कमी के कारण बदनाम हो चुका है, इसलिए यहां रहने वाली किसी भी महिला के लिए कठिनाइयों से भरा जीवन जीना मुश्किल हो जाता है।
सालों पहले दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, कानपुर शहर से करीब 15 किमी दूर शेखपुर गांव में रहने वाले युवाओं में काफी मायूसी है। लाख कोशिशों के बावजूद उनकी शादी नहीं हो पा रही है। इसकी वजह यहां के लोगों में फैलती एक त्वचा की बीमारी बताई गई थी। बुजुर्गो की मानें तो युवाओं में फैली इसी बीमारी के चलते पिछले आठ साल के अंदर इस गांव में कोई दुल्हन नहीं आई है।
कानपुर के चमड़ा उद्योग ने भले ही देश-विदेश के बाजार में अपनी एक अलग पहचान बनाई हो, लेकिन इस उद्योग से निकलने वाला क्रोमियम युक्त पानी गंगा को दूषित कर रहा है। हैंडपंपों से निकलने वाला पानी न तो पीने योग्य है, न ही नहाने के काबिल। इससे पानी से सिंचाई के बाद गांव की खेतिहर भूमि बंजर हो चुकी है। इस पानी को पीने और इस्तेमाल करने से गांववालों में खुजली की बीमारी फैल गई थी।
भारत में लैंगिक असमानता एक जटिल मुद्दा है, जिसकी जड़ें कई सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और कानूनी कारकों में हैं।
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