उत्तर प्रदेश से एक बड़ा ही अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां एक शख्स ने अपनी मंगेतर से शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी करने से इनकार कर दिया। इसके बाद रेप के आरोप में शिकायत दर्ज कराई गई और आरोपी को जेल में भेज दिया गया। इसके बाद जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कोर्ट में कहा कि लड़की की कुंडली में मांगलिक दोष है, इसलिए आरोपी ने शादी करने से इनकार किया था।
जानकारी के मुताबिक, ये मामला लखनऊ के चिनहट इलाके का है। यहां की एक लड़की ने आरोप लगाया कि उन्हें गोविंद राय उर्फ मोनू नाम के शख्स ने शादी का झांसा देकर अपने जाल में फंसाया और उनके साथ यौन संबंध बनाए। थाना चिनहट में दर्ज FIR के अनुसार, आरोपी और महिला की शादी परिवार की रजामंदी से तय हुई थी। इस बीच महिला के पिता का देहांत हो गया। मौके पर आरोपी आया, और शादी का झांसा देकर महिला के साथ संबंध बनाए। घर पहुंचकर आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया। आरोपी की जमानत पर बहस करते हुए उनके अधिवक्ता ने कहा कि आरोपी के पुरोहित की राय में लड़की की कुंडली में मांगलिक दोष है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा इसमें संदेह नहीं है कि "एस्ट्रोलॉजी एक विज्ञान है। लेकिन कई पहलू हैं। हम केस के मेरिट में नहीं जाना चाहते हैं." सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के ऑपरेशन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि, हम इस मामले में तमाम पक्षकार को नोटिस जारी करेंगे। अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए जुलाई के दूसरे हफ्ते की तारीख तय की है। कोर्ट ने कहा है कि आदेश पर रोक लगाई जाती है, और साथ इस बात की इजाजत दी जाती है, कि हाई कोर्ट केस के मेरिट पर बेल का फैसला करें.
बताया गया है कि न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की पीठ ने एक अभियुक्त की जमानत अर्जी पर विचार करते हुए यह आदेश दिया, जिसने कथित तौर पर यौन संबंध बनाने के बाद पीड़िता के साथ शादी करने से इनकार कर दिया। आरोपी का दावा था कि लड़की की कुंडली में मंगल दोष है। जबकि पीड़िता का आरोप था कि आरोपी ने उससे शादी करने का झूठा वादा कर उसके साथ यौन संबंध बनाए। पीड़िता ने कहा कि उसका शादी करने का कभी इरादा ही नहीं था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कुंडली जांच कराने का आदेश दिया था। जस्टिस बृज राज सिंह की कोर्ट ने ये आदेश 23 मई को दिया था। अदालत ने लखनऊ यूनिवर्सिटी को 10 दिन का वक्त दिया था। इस मामले में अगली सुनवाई 26 जून को होनी थी। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया और फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जेंट सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के इस आदेश पर हैरानी जताई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से रेप पीड़िता की कुंडली को ज्योतिष विभाग से जांचने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। इस मामले पर शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई 10 जून को की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश दिया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट मेरिट के आधार पर जमानत पर सुनवाई करें। अब सुप्रीम अदालत तय करेगी कि क्या कोई कोर्ट कुंडली की जांच का आदेश दे सकती है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा निजता के अधिकार को भंग कर दिया गया है, और इसमें बहुत सारे मुद्दे हैं। हम मानते है कि लखनऊ विश्वविद्यालय में ज्योतिषी विज्ञान पढ़ाई जाती है। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष कुंडली विभाग को आदेश दिया था। उसने पीड़िता की कुंडली सीलबंद लिफाफे में मांगी थी और एक सप्ताह के भीतर पीड़िता की जांच कर ये बताने के लिए कहा था कि वह मांगलिक है या नहीं। कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था।
जानकारी के अनुसार, राजधानी लखनऊ के चिनहट थाने में एक एफआईआर दर्ज करवाई गई थी, जिसमें कहा गया है कि आरोपी और पीड़िता के परिजनों के बीच शादी को लेकर बातचीत हुई थी और दोनों का बंधन तय हो गया था। इसी बीच पीड़िता के पिता का निधन हो गया। इस दौरान आरोपी अपनी मां के साथ शोक व्यक्त करने के लिए पीड़िता के घर गया हुआ था, जहां उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। बाद में शादी करने से इनकार कर दिया। आरोपी का कहना है उसने इस वजह से शादी से इनकार किया है कि लड़की की कुंडली में मांगलिक दोष है।
इस मामले पर द मूकनायक ने सुमन देवठिया से बात की। सुमन ग्लोबल कैंपस फॉर दलित वूमेन और आगाज एनजीओ की फाउंडर-मेंबर है। वह महिलाओं के हक के लिए कार्य करती हैं। सुमन ने इस पूरे मामले पर बताती हैं कि "रेप पीड़िता वैसे ही बहुत सारी चीजों से गुजर रही होती है। शारीरिक और मानसिक रूप से वह पूरी तरह से कमजोर हो जाती है। ऐसी स्थिति में आप कैसे कह सकते हैं कि तारो या ज्योतिषी ज्ञान का प्रमाण जो मांगलिक प्रमाण है वह दिखाओ। बहुत ही अजीब सी बात है यह। कैसे कोई रेप पीड़िता से मांगलिक होने का प्रमाण मांग सकता है।"
"यह हमारे समाज की महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी धारणाएं हैं, जो सिर्फ महिलाओं को ही दर्द देती हैं। यह केस यही साबित करता है कि महिलाओं के प्रति वही चीजें बनी हुई है, जो पहले से इस समाज में है— उनका शोषण, उनका तिरस्कार, उनके प्रति रूढ़िवादी बातें, कुछ भी नहीं बदला है," उन्होंने कहा।
आगे वह कहती है कि, "महिलाओं के साथ ही गलत होता है, फिर वह कानून व्यवस्था से गुहार लगाते हैं कि उनको न्याय मिले। पर जब ऐसे हाईकोर्ट के फैसले देगा तो कैसे कोई महिला न्याय व्यवस्था पर भरोसा करेगी। यह बहुत ही गंभीर बात है। पहले ऐसी धारणाएं चलती थी, लेकिन सबसे हमारा देश आजाद हुआ है और कानून बने हैं जो इन धारणाओं से बहुत ऊपर हैं। इसमें एक राहत की खबर भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को समझा, और इस फैसले पर रोक लगा दी। क्योंकि यह हर तरह से गलत है। क्योंकि एस्ट्रोलॉजिस्ट तो बहुत कुछ कहते हैं कि आपकी शादी नहीं होगी, यह आपकी नौकरी उस साल में लगेगी या आपकी उम्र कितनी होगी, पता नहीं क्या-क्या भविष्यवाणी करते हैं। यह सब कुछ जो नहीं होता है, तो कैसे कानून ऐसी बातों पर भरोसा कर सकता है। हमारे कोर्ट के वकील ऐसे कैसे इन मांगलिक बातों का सहारा लेकर आरोपी को सजा से मुक्त करा सकते हैं."
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