हमारा देश स्वतंत्र है और इस देश में सभी को स्वतंत्र जीने की छूट है। लेकिन जब महिलाएं खुलकर जीने की या अपने निजी फैसलों से अपना जीवन जीना चाहती हैं, तो कहीं ना कहीं समाज उनको रोकने लगता हैं। एक युवा मां के अपनी सेमी न्यूड बॉडी पर बच्चों को पेंट करने की इजाजत देने के मामले में केरल हाईकोर्ट का हालिया फैसला अहम है। यह मामला 2018 का है, जब केरल की 33 वर्षीया एक महिला का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। विडियो में महिला के दो नाबालिग बेटे उसके शरीर के ऊपरी हिस्से को पेंट करते दिख रहे थे। न केवल सोशल मीडिया बल्कि मीडिया के भी एक वर्ग ने इस विडियो को अश्लील और आपत्तिजनक बताया।
इस मामले में पुलिस ने भी महिला के खिलाफ केस दर्ज किया। उन पर चाइल्ड सेक्स एब्यूज से जुड़े पॉक्सो एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के साथ ही आईटी एक्ट की भी धाराएं लगाई गईं। अब कोर्ट ने महिला को सारे आरोपों से बरी करते हुए मुख्य तौर पर दो बातों को रेखांकित किया है। एक तो यह कि नग्नता का मतलब हमेशा अश्लीलता नहीं होता और दूसरी बात यह कि नैतिकता और वैधानिकता दो अलग बातें हैं। जो बात किसी एक, दो या कई सारे लोगों को अनैतिक लगती है, वह किसी और को नैतिक लग सकती है। यह भी याद रखना चाहिए कि जिसे कुछ लोग या लगभग हर कोई अनैतिक मान रहा हो, वह भी जरूरी नहीं कि गैरकानूनी भी हो।
हमारे समाज में, खासकर पिछले कुछ समय से नग्नता को अश्लीलता का पर्याय समझने का ट्रेंड मजबूत हुआ है। इसे लेकर संवेदनशीलता और असहिष्णुता भी बढ़ी है। नतीजा यह है कि ऐसे मामलों पर समाज की प्रतिक्रिया कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आती है। इस मामले में भी न केवल आम लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई बल्कि पुलिस ने भी बेहद संगीन धाराएं लगा दीं। इससे महिला अधिकार कार्यकर्ता इस युवा मां के इस रुख की पुष्टि ही हुई कि समाज की पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं के उसके अपने शरीर पर अधिकार को भी मान्यता नहीं देती और इसलिए इस अधिकार को रीक्लेम करने की जरूरत है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह महिला सबरीमला मंदिर में प्रवेश को लेकर चले आंदोलन का भी हिस्सा रही हैं। ऐसे में हाईकोर्ट का अपने फैसले में यह याद दिलाना महत्वपूर्ण है कि भारत में तमाम पुराने मंदिरों में देवी-देवताओं की नग्न मूर्तियां रखी हैं, जहां इन्हें देखकर सेक्शुअल भाव नहीं आते। एक मां का अपने शरीर को कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत देना एक कलात्मक अभिव्यक्ति से जुड़ा मसला है, जिसे अश्लील मानने का कोई कारण नहीं है। यह भी कि जिस समाज में पुरुष अपने सिक्स पैक ऐब्स का खुलेआम प्रदर्शन करते हों और उस पर कहीं से कोई आपत्ति न आती हो, उसी समाज में किसी महिला के शरीर के ऊपरी हिस्से को उसके अपने नाबालिग बच्चों का पेंट करना अश्लील मानकर उसके खिलाफ पॉक्सो जैसी धाराएं लगा दी जाएं तो यह समाज की दृष्टि में निहित गहरे भेदभाव का सबूत है, जिस पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिलाएं अक्सर अपने शरीर पर स्वायत्तता से इनकार करती हैं और नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते। कोर्ट ने कहा, “एक महिला का अपने शरीर के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने का अधिकार उसके समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में भी आता है।” कोर्ट ने कहा, ‘‘नग्नता को सेक्स के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। महिला के ऊपरी निरस्त्र शरीर को देखने मात्र को यौन तुष्टि से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इसलिए, महिलाओं के निरस्त्र शरीर के प्रदर्शन को अश्लील, असभ्य या यौन तुष्टि से नहीं जोड़ा जा सकता है।"
हमारे यहां भित्ति चित्र, मूर्तियां और देवताओं की कलाएं, प्रदर्शित हैं। पुराने मंदिर और प्राचीन मंदिरों में अर्धनग्न मूर्तियां भी है। सार्वजनिक जगहों पर ऐसी मूर्तियों को लगाना कला माना जाता है, और पवित्र भी।
मंदिरों और दूसरे पब्लिक प्लेस में नग्न महिलाओं की मूर्तियों को आट और पवित्र माना जाता है। केरल ऐसा राज्य है जहां निचली जाति की महिलाओं ने अपने स्तनों को ढकने के अधिकार लिए काफी लड़ाई भी की है।
भले ही मंदिरों में नग्न देवी देवताओं की मूर्तियां लगी हो। लेकिन जब कोई प्रार्थना करें तो उसमें यौन भावना नहीं देवत्व भावनाएं होनी चाहिए।
किसी भी पुरुष का आधा शरीर सामान्य माना जाता है सेक्सुअल नहीं, लेकिन महिलाओं के शरीर के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता।
जो लोग महिलाओं के शरीर को स्वाभाविक रूप से अश्लील मानते हैं। वह इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि वह महिलाओं के शरीर को केवल इच्छा पूरी करने की चीज मानते हैं।
एक दृष्टिकोण मशहूर है कि ई-मेल न्यूडिटी वर्जित है, क्योंकि एक नग्न महीना का शरीर केवल कामुक उद्देश्य को पूरा करने के लिए होता है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर की आजादी का हकदार है। पुरुषों पर शायद ही सवाल उठाया जाता हो। लेकिन शरीर और जीवन के बारे में चुनाव करने के लिए महिला को भी धमकाया जाता है, और केस किया जाता है।
फातिमा की अपील पर यह आदेश एक ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ आया है। ट्रायल कोर्ट में उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट में अपनी अपील में फातिमा ने दावा किया था कि बॉडी पेंटिंग का मतलब समाज के डिफ़ॉल्ट दृष्टिकोण के खिलाफ एक राजनीतिक बयान के रूप में था कि महिला के नग्न ऊपरी शरीर को सभी संदर्भों में यौनकृत किया जाता है, जबकि पुरुष के ऊपरी नग्न शरीर का इस डिफाल्ट यौनकरण के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
रेहाना फ़ातिमा एक वीडियो प्रसारित करने के चलते आरोपों का सामना कर रही थी। वायरल वीडियो में वह नाबालिग बच्चों के लिए अर्ध-नग्न मुद्रा में दिखाई दे रही थी और बच्चों को अपने शरीर पर पेंटिंग करने की अनुमति दे रही थी। फातिमा को मामले से बरी करते हुए जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि 33 वर्षीय महिला अधिकार कार्यकर्ता के खिलाफ आरोपों से यह अनुमान लगाना संभव नहीं था कि उसके बच्चों का इस्तेमाल किसी वास्तविक या नकली यौन कृत्यों के लिए किया गया था और वह भी यौन संतुष्टि के लिए किया गया था। कोर्ट ने कहा कि फातिमा ने केवल अपने शरीर को कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी ताकि उसके बच्चे पेंटिंग कर सकें।
जस्टिस एडप्पागथ ने कहा कि ऐसी ‘निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति’ को किसी भी रूप में यौन क्रिया से जोड़ना ‘क्रूर’ था। उन्होंने कहा, ‘‘यह साबित करने का कोई आधार नहीं है कि बच्चों का उपयोग पोर्नोग्राफी के लिए किया गया है। वीडियो में यौन तुष्टि का कोई संकेत नहीं है। पुरुष या महिला किसी के भी शरीर के ऊपरी निवस्त्र हिस्से को चित्रित करने को यौन तुष्टि से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।’’ अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि फातिमा ने वीडियो में अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को निवस्त्र दिखाया है, इसलिए यह अश्लील और असभ्य है। इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘‘नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते। साथ ही नग्नता को अनिवार्य रूप से अश्लील या असभ्य या अनैतिक करार देना गलत है।’’
इस पूरे मामले पर द मूकनायक ने नताशा से बात की, नताशा ऑल इंडिया महिला कांग्रेस से सोशल मीडिया चेयर पर्सन हैं। वह कहती हैं कि "हाई कोर्ट ने बहुत ही अच्छा फैसला दिया है क्योंकि हर किसी को अपनी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। और जब पुरुष को हर तरह से अपने शरीर को लेकर स्वतंत्रता मिली हुई है, तो महिलाओं को भी पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। महिलाएं इसमें किसी भी तरह की अश्लीलता को बढ़ावा नहीं दे रही हैं। महिलाओं ने हर जगह पर ऊंचाइयां हासिल की है। इसलिए अब समाज को समझना चाहिए कि महिलाएं और पुरुष दोनों ही बराबर हैं, दोनों को ही खुलकर जीने का अधिकार है।"
आगे वह रेहाना को लेकर कहती है कि "यह रेहाना की अपनी निजी सोच है, या फैसला उसका है कि वह किस तरह के कपड़े पहने या वह किस तरह से अपना जीवन जीना चाहती है। इसमें किसी को भी उसको जज नहीं करना चाहिए। हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं तो महिलाओं को भी स्वतंत्र जीने का अधिकार है।"
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.