नई दिल्ली: महिला चाहे किसी भी दल से प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हों, उन्हें अपने खिलाफ सोशल मीडिया से लेकर सामाजिक ताने-बाने के भीतर तक अभद्र भाषा, चरित्र के खिलाफ दुष्प्रचार की चुनौती से जूझना पड़ता है. बीते कुछ सालों में भारत में जिओ इंटरनेट की क्रांति ने भारी संख्या में लोगों को सोशल मीडिया से जोड़ा है. इसका नतीजा यह हुआ है कि एक ओर जहां लोग इसे बोलने की आज़ादी के नाम पर चुनते हैं वहीं समाज का एक हिस्सा इन प्लेटफोर्म को दुष्प्रचार और महिलाओं को गलियां या उनके बारे में अफवाहें फ़ैलाने के लिए भी उपयोग में ले रहा है.
भारत में ग्रामीण स्तर पर पंचायती चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव, भारतीय लोकतंत्र के इस महापर्व पर महिला नेताओं के खिलाफ अभद्र बयानबाजी का सिलसिला शुरू हो जाता है। ऐसा ही कुछ 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिल रहा है. जिसमें भाजपा की चर्चित उम्मीदवारों-हेमा मालिनी व कंगना रनौत और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को निशाना बनाया जा चुका है।
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने गुरुवार को हेमा मालिनी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करके अपनी पार्टी और नेताओं को मुश्किल में डाल दिया, जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग तुरंत उनके खिलाफ निर्वाचन आयोग पहुंच गया। भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस इस 'निम्नस्तरीय, लैगिक' टिप्पणी से एक नए निचले स्तर पर पहुंच गई है।
वहीं, सुरजेवाला ने कहा कि उन्होंने उसी वीडियी में यह भी कहा था कि हेमा मालिनी का बहुत सम्मान किया जाता है क्योंकि उन्होंने 'धर्मेंद्र जी से शादी की है और वे हमारी बहू हैं।' कई साल पहले, राजद प्रमुख लालू यादव ने भी हेमा मालिनी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
सुरजेवाला से पहले, उनकी पार्टी की नेता सुप्रिया श्रीनेत और एचएस अहीर अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर रनौत व उनके निर्वाचन क्षेत्र मंडी को जोड़कर पोस्ट करने के लिए निशाने पर आ गए थे। हालांकि, श्रीनेत ने यह कहते हुए आपत्तिजनक टिप्पणी हटा दी थी कि संबंधित पोस्ट उन्होंने नहीं की थी।
इसके अलावा भाजपा के दिलीप घोष ने ममता बनर्जी के वंश पर टिप्पणी के लिए माफी मांगी थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सोनिया गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, स्मृति ईरानी, जयाप्रदा और प्रियंका गांधी जैसी दिग्गज हस्तियां किसी न किसी समय आपत्तिजनक लैंगिक टिप्पणी की शिकार बनीं. समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां ने 2019 में भाजपा नेता जयाप्रदा के बारे में अभद्र थी। भारतीय राजनीति में स्त्री द्वेष पर चर्चा करते हुए महिला अधिकार कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा कि “किसी महिला के शरीर पर टिप्पणी करके उसे नीचा दिखाना आम मानसिकता है।”
इसी तरह की घटनाएं 2019 के आम चुनाव के दौरान देखी गई जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की 'घूंघट' के पीछे रहने की सलाह दी थी। वहीं, भाजपा के एक अन्य नेता विनय कटियार ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
उसी वर्ष, अभिनेत्री से नेता बनीं उर्मिला मातोंडकर लैंगिक टिप्पणी का निशाना बनीं जब भाजपा के गोपाल शेट्टी ने कहा कि उन्हें उनके रंग-रूप के कारण टिकट दिया गया। इसके अलावा भाजपा के दयाशंकर सिंह ने 2016 में बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
उक्त महिलाएं जो भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान रखती हैं, और संघर्षों, चुनौतियों से जूझते हुए आज इस मुकाम तक पहुंची हैं, उनपर समाज का एक वर्ग बड़ी आसानी से अभद्र टिप्पणी करके बार बार पुरुषवादी विचारधारा को महिलाओं पर थोपने का प्रयास कर रहा है. जो कि स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.
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