मध्य प्रदेश: दुष्कर्म पीड़िताओं का अब नहीं होगा 'टू फिंगर टेस्ट'

केन्द्रीय गृह मंत्रालय से जारी निर्देश के बाद मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने भी दुष्कर्म पीड़िता के विवादित टेस्ट पर रोक लगा दी है।
मध्य प्रदेश: दुष्कर्म पीड़िताओं का अब नहीं होगा 'टू फिंगर टेस्ट'
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भोपाल। दुष्कर्म पीड़िताओं की चिकित्सीय जांच में 'टू फिंगर टेस्ट' पर सवाल उठने के बाद अब मध्य प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन होगा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय से जारी निर्देश के बाद मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने भी दुष्कर्म पीड़िता के इस विवादित टेस्ट पर रोक लगा है, जिसके निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं।

दरअसल, टू फिंगर टेस्ट को लेकर पिछले साल वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने के निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने इस टेस्ट को महिलाओं के निजता का हनन करार दिया था। इस मुद्दे पर सियासत भी गरमाई थी। पक्ष-विपक्ष की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चलता रहा। कई सामाजिक संगठन, एनजीओ टू फिंगर टेस्ट के खिलाफ अभियान चला रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद अब मध्य प्रदेश में भी स्पष्ट कर दिया गया है कि टू फिंगर टेस्ट नहीं किया जाए। पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) महिला सुरक्षा ने प्रदेश के सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि कार्यशाला के माध्यम से जिले के टीआई और डॉक्टर को निर्देशों के बारे में अवगत कराया जाए।

जानिए क्या है टू फिंगर टेस्ट?

रेप, और यौनिक हिंसा पुष्टि के लिए पीडि़ता का मेडिकल जांच के दौरान टू फिंगर टेस्ट कराया जाता है। इस टेस्ट को बलात्कार और यौन हमले की पीड़िताओं पर किया जाता है। इस टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट की जांच की जाती है। जिस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का टेस्ट पीड़िता को दोबारा यातना देने जैसा है। वहीं अदालत ने टू फिंगर टेस्ट कराने की कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि यह पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है। ऐसा कराने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था- इस अदालत ने बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामलों में दो अंगुलियों के परीक्षण के इस्तेमाल को बार-बार खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है इस टेस्ट के आधार पर रेप की पुष्टि होने या न होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। जांच करने का एक आक्रामक तरीका है। अपने फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ के आर्डर में इस बात का भी जिक्र है कि इस टेस्ट की बजाय महिलाओं को फिर से पीड़ित और दोबारा पीड़ित करता है। टू-फिंगर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था प्रतिबंध

नवंबर 2022 में रेप और यौन हिंसा के मामलों की जांच के लिए होने वाले टू-फिंगर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इसे अवैज्ञानिक बताया था। साथ ही ये भी कहा है कि पीड़िताओं का टू-फिंगर टेस्ट करना उन्हें फिर से प्रताड़ित करना है। अदालत ने मेडिकल की पढ़ाई से भी टू-फिंगर टेस्ट हटाने को कहा है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने ये फैसला झारखंड सरकार की याचिका पर सुनाया था। झारखंड हाईकोर्ट ने रेप और मर्डर के आरोपी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय को बरी कर दिया था। झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए शैलेंद्र राय को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये धारणा गलत है कि सेक्सुअली एक्टिव महिला के साथ रेप नहीं हो सकता। अदालत ने टू-फिंगर टेस्ट पर फिर से रोक लगा दी और चेतावनी दी कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे दोषी ठहराया जाएगा।

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