कुशलगढ, बांसवाड़ा। छह घण्टे की नौकरी, काम गली-मोहल्लों और नालियों की सफाई। भरी दोपहरी में काम करते-करते कमर टूटने लगती है और कंठ पानी को तरस जाता है। किसी द्वार पर जाकर पीने के लिए पानी मांगो और लोटे या ग्लास की बजाय पीने का पानी नहाने के मग में कोई लाकर दे तो कैसा महसूस हो?
बांसवाड़ा जिले के सबसे बड़े नगर पालिका क्षेत्र कुशलगढ में जातिवाद की जड़े बहुत गहराई तक समाई हुई है। ऊपर से लोग चाहे कितने ही सहिष्णु और समावेशी होने का दावा करें लेकिन सच्चाई यह है कि यहां दलित समाज को आज भी अछूत मानते हुए उनके साथ भेदभावपूर्ण सलूक किया जाता है। इन्हें घरों की देहरी के आगे प्रवेश नहीं मिलता है और इनके साथ मेलमिलाप रखने वालों को भी हिक़ारत भरी निगाहों से देखा जाता है। और तो और दलितों के साथ इस प्रकार का व्यवहार केवल ब्राह्मण वर्ग ही नहीं कर रहे बल्कि अन्य सभी धर्म, समुदाय व समाज के लोग भी कर रहे हैं। यहां तक कि आदिवासी समुदाय भी स्वयं को दलित समाज से ऊंचा समझता है।
राजस्थान में आसन्न विधानसभा चुनावों को लेकर ग्रामीण इलाकों में बहुजन समुदायों की थाह लेने के ध्येय से द मूकनायक ने कुशलगढ़ नगर पालिका क्षेत्र के बाशिंदों से बात की। सबसे पहले नगर पालिका में काम करने वाली सफाई कर्मियों से हमने बात की। करीब 6-7 सालों से अस्थायी नियुक्ति में काम कर रही कल्पना कहती हैं , "हमारे प्रति लोगों की मानसिकता ठीक नहीं है। हम छोटी और नीची जाति के होने के कारण उनकी निगाहों में कचरा हैं। कल्पना के पति भजन गायक हैं और सीजनल काम होने की वजह से उनकी कोई फिक्स आय नहीं है।"
कल्पना बताती हैं घर में दो बच्चे , सास सहित पांच लोगों का पेट भरना होता है, बच्चे स्कूल जाते हैं। नगर पालिका से वेतन 6,300 रुपये मिलते हैं लेकिन अस्थायी नियुक्ति होने के कारण तनख्वाह समय पर नहीं आती। कभी 10 तो कभी 20 तारीख तक वेतन मिलता है । कभी-कभी तो दो-दो महीने नहीं आती। " हम ठेकेदार के नीचे काम करते हैं , सही में हमारा वेतन कितना है यह भी ठीक से पता नहीं लेकिन लोग कहते हैं वेतन 8 हजार रुपये मासिक हैं मगर हमने सही वेतन कभी देखा ही नहीं" सफाई कर्मियों को वेतन चैक से दिया जाता है। नगर पालिका भुगतान ठेकेदार को करती है और वह आगे सफाईकर्मियों को पेमेंट देता है।
कल्पना की तरह करीब 20 महिला सफाई कर्मी और हैं जो अस्थायी रूप से काम कर रही हैं। कुछ वर्ष पूर्व पक्की भर्ती के फॉर्म निकाले गए थे लेकिन कुछ विवाद के कारण प्रक्रिया अटक गई। कुशलगढ नगर में लगभग 15-20 मोहल्ले हैं जिसमें सभी समाजों की कॉलोनियां बनी हुई हैं। "हम जैन समाज और मोमेडन समाज की कॉलोनियों में सफाई करने जाती हैं। हमारे साथ केवल एक नहीं बल्कि सभी समुदायों वालों का व्यवहार भेदभाव पूर्ण और अपमानजनक होता है, कई बार तो इनकी बातें सुनकर हमारे आंसू निकल जाते हैं", कल्पना के साथ काम करने वाली शिल्पा ने द मूकनायक को बताया।
शिल्पा कहती हैं कि उनकी तरह ही बाकी महिलाओं को भी इसी प्रकार का अपमान रोजाना सहना पड़ता है। अगर सुबह किसी ऊंची जाति वाले को झाड़ू और सूपड़े के साथ हम दिख गए तो बीच बाज़ार हंगामा मचा दिया जाता है, लोग हमें कहते हैं सुबह 5 बजे उठकर सफाई किया करो- देरी से क्यों आते हो जबकि हमारा काम करने का समय ही सुबह 6-9 एवं दोपहर 2-5 बजे तक है। कचरे की गाड़ी को दूर खड़ा करवाया जाता है जिससे काम करने में असुविधा होती है लेकिन लड़ाई विवाद से बचने की मंशा से ये सफाई कर्मी महिलाएं चुपचाप सहन करती हैं। कचरे की बाल्टी खाली करके लौटाते समय भी सफाई कर्मियों से बाल्टी को धुलवाया जाता है उसके बाद बाल्टी को घर के अंदर लेते हैं.
शिल्पा बताती हैं त्योहार -पर्व या समारोह विशेष पर जब हम मिठाई-ईनाम के लिए पूछते हैं तो रुपया या खाने पीने की चीज हमें खिसका कर दी जाती है, हाथों में पकड़ाया नहीं जाता। शिल्पा आगे कहती हैं कोई घरवाले हमे चाय देते हैं तो हमें अपना कप साथ में लाने को कहते हैं। जब वे चाय अपनी कप में देते हैं तो हमको कहते हैं इस कप को अपने साथ गाड़ी में रखो, रोज-रोज तुम्हारे लिए कप कहां से लाये?
कल्पना व शिल्पा कहती हैं, "सेलेरी हमारी बहुत कम है, सरकार को सोचना चाहिए आज के जमाने मे 6 हजार रुपये से कैसे गुजारा होगा? पक्की नौकरी वालों को चालीस हजार और कुछ लोगों को उससे भी ज्यादा सेलेरी मिलती है लेकिन हमारी तनख्वाह कम होने के साथ समय पर भी नहीं आती है। हमें उधार लेना पड़ता है, हज़ार रुपये पर 100 रुपया ब्याज लगता है, वेतन मिलने पर उधार चुकाते हैं और दुबारा लोन लेकर घर का खर्चा चलाते हैं-यही चक्र बना रहता है"।
द मूकनायक ने वरिष्ठ नागरिक अशोक पंड्या से बात की जो नगर पालिका से वर्ष 2016 में इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने बताया कि वे रिटायरमेंट से पहले अपनी रिस्क पर पक्की भर्तियां कर गए थे और उसके बाद से इन पदों पर परमानेंट नियुक्ति नहीं हुई है। पंड्या की पत्नी ज्योत्सना वतर्मान में एक वार्ड पार्षद हैं। भेदभाव को लेकर सवाल पूछने पर ज्योत्सना ने कहा कि कस्बे में जात पात का ऐसा कोई मसला नहीं है। नगर की प्रमुख समस्याओं को लेकर पूछने पर पार्षद बताती हैं कि बीजेपी का बोर्ड होने के कारण पिछले चार वर्षों से बोर्ड को राज्य सरकार से सहयोग सहायता नहीं मिल सकी है। पांच-छह माह से तो नगर पालिका बोर्ड की बैठकें ही आहूत नहीं हुई हैं ऐसे में बड़े कोई काम नहीं हुए। कस्बे में सफाई, अतिक्रमण और सीवरेज लाइन की समस्याएं मुख्य रूप से व्याप्त हैं।
सोशल साइंस एक्सपर्ट डॉ निधि सेठ बताती हैं 1949 से पूर्व यह एक रियासत थी जिसे 1866 में अंग्रेजी हुकूमत ने एक चीफशिप के रूप में स्थापित किया। कुशलगढ़ में स्थानीय प्रशासन स्थापित करने में अंग्रेजों की अहम भूमिका रही। 20वी शताब्दी के पहले दशक से ही कुशलगढ़ में नगरपालिका की स्थापना हो गयी थी। 1912 का एक पत्र जो कुशलगढ़ वासियों द्वारा चीफशिप के प्रबंधक को लिखा गया जिसमें उन्होंने नगर में चाही गई सुविधाओं की मांग का जिक्र किया है।
दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि नगरपालिका 1912-1913 के दौरान आर्थिक रूप से तंगी की अवस्था में रही जिस वजह से अंग्रेजों ने इसे बंद करने का कड़ा सुझाव दिया। इस समय नगर पालिका की वार्षिक आय 127 रु 0.1 आना रही। यह प्रथम विश्व युद्ध वर्ष भी रहा जिसका खामियाजा ब्रिटेन के उपनिवेशक राज्यों और वहां की जनता को चुकाना पड़ा। Report of the Administration of Kushalgarh Chiefship year 1914-15 की रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि प्रथम विश्व युद्ध का भार यहाँ की जनता के सर पर थोपा गया। लेकिन इसके पश्चात से स्थानीय स्वशासन के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने नगरपालिका को घाटे में नहीं आने दिया।
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