जयपुर। लैंगिक उत्पीड़न मुक्त कार्यस्थल सप्ताह के तहत महिला अधिकारिता विभाग ने विभिन्न सरकारी व निजी कार्यालयों में आमुखीकरण कार्यशाला आयोजित कर महिलाओं का यौंन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के प्रति लोगों को जागरुक किया। इस दौरान विभाग और सरकारी व निजी कार्यालय के कार्मिकों को अधिनयम के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से समझाया गया। लैंगिक उत्पीड़न मुक्त कार्यस्थल सप्ताह शनिवार को सामाप्त हो गया।
आपकों को बता दें कि, महिलाओं का यौंन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 लागू होने के साथ ही कार्यस्थलों पर महिला उत्पीड़न की रोकथाम के लिए आंतरिक शिकायत समितियों का गठन किया गया था। यौन उत्पीड़न की शिकायत पर यह समिति अपने स्तर पर जांच कर उच्च अधिाकरियों को रिपोर्ट करती है। कहां-कहां आंतरिक शिकायत समितियों का गठन हुआ है, या सक्रिय रूप से काम कर ही है, इस सम्बन्ध में जिला कलक्टर ने विभागों में गठित आंतरिक शिकायत समितियों के गठन व पुनर्गठन को लेकर संबंधित विभागीय जिला अधिकारियों को पत्र लिख कर 12 दिसबंर तक महिला अधिकारिता विभाग को रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं। रिपोर्ट आने के बाद विभाग समितियों की सक्रियता व महिला उत्पीड़न के प्रति गंभीरता को लेकर समीक्षा करेगा।
सवाईमाधोपुर महिला अधिकारिता विभाग द्वारा सप्ताह के दौरान गीता देवी राजकीय बालिका विद्यालय आदर्श नगर, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यायल रामसिंहपुरा एवं राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय शहर सवाई माधेापुर में इन्दिरा महिला शक्ति केन्द्र की परार्मशदाता अनिता कंवर, प्रिया तैहरिया, मोनिका शर्मा तथा वन स्टोप सेन्टर सवाई माधोपुर की परार्मशदाता अनिता गर्ग द्वारा कार्यालयों में अधिनियम के अनुसार आंतरिक शिकायत समिति के गठन की जानकारी दी। नियोक्ता के दायित्व के बारे में भी कार्यालय अध्यक्ष एवं उपस्थिति कार्मिकों को बताया गया। साथ ही कौन-कौन से कृत्य लैंगिक उत्पीड़न में शामिल है इसकी भी जानकारी कार्मिकों एवं छात्राओं दी गई। यौन उत्पीड़न होने पर आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करवाने व जांच प्रक्रिया के बारे में भी विस्तार से समझाया गया। अधिनियम के प्रावधानों की पालना नहीं करने पर 50 हजार रूपये का जुर्माना लगाये जाने का प्रावधान भी है।
सवाईमाधोपुर महिला अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक अमित गुप्ता ने बताया कि 'यौन उत्पीड़न' जिसे यौन प्रकृति वाला अनचाहा, अनुचित व्यवहार, जिसे, 'ईव-टीजिंग' (लड़की को छेड़ना) भी कहा जाता है। भारत की महिलाओं के लिए यौन उत्पीड़न कड़वा सच है। अधिकांश मामलों में कार्यस्थल पर पुरूषों द्वारा महिलाओं को टारगेट कर यौन उत्पीड़न किया जाता है। जो कि उनकी इज्ज़त और मर्यादा का उल्लंघन करता है। जिस कृत्य से उस व्यक्ति, संस्थान या समाज पर नकारात्मक असर पड़े। ऐसे व्यवहार पर रोक लगाने के लिए कई एशियाई देशों ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने हेतु वैधानिक कदम उठाए हैं। 2012-13 में भारत ने इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए 'कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण)' अधिनियम 2013 पारित किया था।
यह अधिनियम लोक सभा में 3 सितम्बर 2012 को तथा राज्य सभा में 26 फरवरी 2013 को पारित हुआ, और 23 अप्रेल 2013 को इसे अधिसूचित किया गया। यह अधिनियम इस बात को वैधता प्रदान करता है कि यौन उत्पीड़न के चलते संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21 के तहत महिलाओं को हासिल समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। इन अनुच्छेदों के अंर्तगत न्याय के समक्ष समानता का प्रावधान किया गया है तथा 'धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है और इसकी रोकथाम और निवारण का प्रावधान करता है। यह कानून यौन उत्पीड़न की उसी परिभाषा को प्रयोग में लाता है, जो उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने 'विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, 1997' मामले में दी थी जो की लैंगिक भेदभाव और हिंसा के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसमें अभी भी कुछ वैधानिक कमियां हैं, क्योंकि इसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सिर्फ महिलाओं के लिए सुरक्षा की बात की गई है, पुरूषों के लिए नहीं।
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