कर्नाटक: आधार कार्ड नहीं होने पर गर्भवती महिला को अस्पताल से लौटाया, घर में असुरक्षित प्रसव से जच्चा-बच्चा की मौत

असुरक्षित प्रसव से जच्चा-बच्चा की मौत
असुरक्षित प्रसव से जच्चा-बच्चा की मौत
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दिल्ली। कर्नाटक के तुमकुरु जिला अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों की लापरवाही से तीन मौतें होने का मामला सामने आया है। भारतीनगर की कस्तूरी नाम की एक गर्भवती महिला लेबर पेन होने पर जिला अस्पताल पहुंची थी। वह तमिलनाडु की मूलनिवासी एक अनाथ लड़की थी और उसके पास आधार कार्ड सहित पहचान पत्र नहीं था। लेकिन उसे भर्ती करने के लिए अस्पताल स्टाफ ने उससे आधार कार्ड मांगा। अस्पताल की ओर से कहा गया कि आधार कार्ड जमा नहीं करने पर महिला को भर्ती नहीं किया जा सकता है। इस वजह से कस्तूरी घर लौट आई और गुरुवार सुबह उसने घर पर ही जुड़वां लड़कों को जन्म दिया। जन्म के कुछ समय बाद उसकी और दोनों बच्चों की मौत हो गई।

जानिए क्या है पूरा मामला?

कर्नाटक के तुमकुरु जिले के भारती नगर निवासी कस्तूरी एक बुजुर्ग महिला के साथ जिला अस्पताल आई थी, जो कि उसकी पड़ोसी है। 2 नवम्बर 2022 की रात को उसने लेबर पेन की शिकायत की थी। इसके बाद स्थानीय लोगों ने उसे हॉस्पिटल जाने की सलाह दी। यह दावा किया जा रहा है कि महिला को अस्पताल से यह कहकर लौटा दिया गया कि उसके पास मदर हेल्थ कार्ड और आधार कार्ड नहीं है।

जन्म के बाद सही देख-रेख नहीं मिलने से थकी मां और दोनों बच्चों की मौत हो गई। बता दें कि, कस्तूरी के पति का कुछ महीने पहले ही निधन हो गया था और उसकी पहले से ही 7 साल की एक बेटी है। घटना का खुलासा होते ही डीएचओ डॉ. मंजूनाथ और डीएस डॉ. वीना ने घटनास्थल का मुआयना किया। इस दौरान आक्रोशित स्थानीय लोगों ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। डीएचओ ने कहा कि नर्सों को सस्पेंड कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके कर्मचारियों ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है।

अस्पताल की लापरवाही के चलते ये कोई पहला मौत का मामला नहीं है, बल्कि पहले भी इस तरह के मामले सामने आए हैं। हाल में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के एक सरकारी अस्पताल में लापरवाही के चलते ही बड़ा हादसा हुआ था। यहां के मदर एण्ड चाइल्ड हॉस्पिटल ऑफ महात्मा गांधी के एनआईसीयू में वार्मर के ओवरहीट होने के चलते 2 नवजात बच्चों की जान चली गई। स्टाफ की लापरवाही के चलते ये बड़ा हादसा हुआ था।

इस पूरे मामले में पुलिस ने बताया कि मृत बच्चों में एक लड़की और एक लड़का थे। जहां 21 दिन की बच्ची की तुरंत ही मौत हो गई। वहीं दूसरे बच्चे की गुरुवार को मृत्यु हो गई। अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि बच्चों की मौत के समय ड्यूटी पर मौजूद दो कंट्रैक्चुअल नर्सिंग स्टॉफ को बर्खास्त कर दिया गया और तत्काल प्रभाव से जांच कमिटी बनाई गई।

क्या कहता है कानून?

अगर आप इलाज में लापरवाही बरतने के लिए डॉक्टर के खिलाफ क्रिमिनल केस करना चाहते हैं, तो भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 304-।, 337 और 338 के तहत प्रावधान किया गया है। इन धाराओं के तहत डॉक्टर को छह महीने से लेकर दो साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है अर्थ दंड

2006 में सुप्रीम कोर्ट बलराम प्रसाद बनाम कुणाल साहा के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुना चुका है। इसमें शीर्ष अदालत ने पीड़ित कुणाल साहा को 6 करोड़ 8 लाख रुपए का मुआवजा दिला चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कुणाल साहा की पत्नी अनुराधा साहा के इलाज में डॉक्टरों ने लापरवाही बरती, जिसके चलते उनकी मौत हो गई। लिहाजा इलाज में लापरवाही बरतने के लिए कोलकाता स्थित एएमआरआई हॉस्पिटल 6 फीसदी ब्याज के साथ 6 करोड़ रुपये 8 लाख रुपये का मुआवजा पीड़ित कुणाल साहा को दे।

क्या हैं कुणाल साहा मामला?

अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के रहने वाले डॉक्टर कुणाल साहा अपनी 36 साल की पत्नी अनुराधा साहा का का 1998 में कोलकाता के एक निजी अस्पताल में ईलाज करा रहे थे। कुणाल साहा का आरोप था पत्नी के ईलाज के नाम पर अस्पताल ने उनसे जमकर वसूली की और ईलाज में लापराही बरती है। इस दौरान ईलाज में लापरवाही बरतने के कारण उनकी पत्नी की मौत हो गई। डॉक्टर कुणाल साहा ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अस्पताल पर 6 करोड़ से अधिक का अर्थ दण्ड लगाने के अतिरिक्त सजा भी सुनाई थी।

जानिए सरकारी वकील की राय

सरकारी वकील अमय मिश्रा बताते है कि, अगर इलाज में डॉक्टर की लापरवाही के चलते मरीज की मौत हो जाती है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-। के तहत केस किया जा सकता है। अगर कोर्ट डॉक्टर को इलाज में लापरवाही का दोषी पाता है, तो उसको दो साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। हालांकि, क्रिमिनल मामले में क्राइम करने के इरादे को साबित करना बेहद जरूरी है।

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