नई दिल्ली। बिलकिस बानो गैंगरेप केस में जिन 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था, गत सोमवार को उनके लिए बुरी खबर आई. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर बेहद सख्त रूख अपनाया है. कोर्ट ने कहा कि वह रिहाई के फैसले को तीन कसौटियों पर परखेगा. पहली कसौटी होगी मुंबई के ट्रायल कोर्ट के जज की वह राय, जिसमें उन्होंने छूट का विरोध किया था. दूसरी, अपराध की जघन्यता और तीसरी, दोषियों की अप्रत्याशित रिहाई जबकि उम्रकैद की सजा पाए दूसरे दोषी अब भी सालों से सलाखों के पीछे हैं.
2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार हुआ था और उनके घरवालों की हत्या कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे भयावह कृत्य कहते हुए गुजरात सरकार से पूछा है कि क्या दोषियों को छोड़ते समय हत्या के दूसरे मामलों में अपनाए जाने वाले मानक अपनाए गए. कोर्ट ने साफ कह दिया है कि वह भावनाओं से प्रभावित हुए बगैर कानून को देखेगा. बिलकिस बानो ने दोषियों को समय से पहले छोड़ने के फैसले को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने जवाब दिया कि हालांकि यह 1992 की नीति के आधार पर दिया गया था, लेकिन इस मामले में एक 2014 की नीति भी है. उन्होंने कहा कि इस दोनों ही आधार पर देखा जा सकता है कि दोषियों को मिली हुई छूट केंद्र और राज्य दोनों की छूट नीति के खिलाफ थी. 2014 की पॉलिसी में उल्लेख किया गया है कि बलात्कार और हत्या के दोषियों को राज्य सरकार द्वारा रिहा नहीं किया जा सकता है, हालांकि 1992 की नीति में यह स्पष्ट रूप से दोषियों को जेल से जल्दी रिहाई के योग्य या अयोग्य श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करता था.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा है कि इस मामले में कई मुद्दे शामिल हैं इसलिए उन्हें डिटेल में सुनने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, गुजरात सरकार और सभी दोषियों को जवाब तलब करते हुए नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा है कि वह अगली सुनवाई के दौरान दोषियों की बाकी सजा माफ किए जाने के फैसले से संबंधित डॉक्यूमेंट्स के साथ मौजूद रहेंगे.
न्यायमूर्ति जोसेफ ने मामले में पेश होने वाले वकीलों से यह भी कहा कि मामले को जून से पहले समाप्त करने की जरूरत है, क्योंकि वह तब सेवानिवृत्त हो रहे हैं. अदालत ने यह भी पूछा कि क्या गुजरात सरकार इस तरह से छूट नीति लागू कर सकती है जब हत्या के दोषी भी वर्षों से जेल में बंद हैं. अदालत ने रिहा हुए दोषियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में भी पूछा. इस सवाल के जवाब में वृंदा ग्रोवर ने पीठ को बताया कि पैरोल के दौरान दोषियों पर छेड़छाड़ के भी आरोप लगे हैं. वृंदा ग्रोवर इस मामले में, एक जनहित याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रही थीं. सुनवाई के दौरान जस्टिस बी वी नागरत्ना ने उस छूट नीति के बारे में भी पूछा जिसके आधार पर इस मामले में दोषियों को तत्काल छूट दी गई थी?
मिली जानकारी के मुताबिक, एक सरकारी योजना को लेकर आयोजित कार्यक्रम की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसका आयोजन सिंगवाड़ के करमाडी गांव में हुआ था. इसमें बीजेपी सांसद जसवंतसिंह भाभोर और विधायक शैलेश भाभोर के साथ साथ अन्य बीजेपी नेता भी शामिल हुए थे. इसी कार्यक्रम के मंच पर बिलकिस बानो मामले के दोषी शैलेश भट्ट को भी मंच पर बैठा हुआ देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर लोग इस पर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे हैं। अगस्त 2022 में रिहाई के बाद इन दोषियों को माला पहनाकर सम्मान करने की तस्वीरें सामने आई थीं. गोधरा के एक दफ्तर में इनका भव्य स्वागत किया गया था. ये लोग विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी बताए गए थे. इस पर कई विपक्षी नेताओं ने निशाना साधा. अब इन दोषियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि, ’यह तय करेगा कि सजा में छूट पर फैसला लेने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी कौन हैं? कोर्ट तय करेगी कि ये गुजरात है या महाराष्ट्र.’ सुप्रीम कोर्ट अब अगले महीने की 18 तारीख को इस मामले की विस्तार से सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसे थ्री-पॉइंट टेस्ट बताया, जिसके आधार पर वह उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों को छोड़ने के गुजरात सरकार के फैसले की वैधता को परखेगा. ये लोग गैंगरेप और मर्डर में शामिल थे. जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, ’उम्रकैद की सजा पाए कई दोषी 20 साल से भी ज्यादा समय से जेलों में बंद हैं. सुप्रीम कोर्ट को संबंधित सरकारों से कहना पड़ा है कि उनकी याचिका पर विचार करें. इस केस में विशेष आधार क्या था?’ गुजरात सरकार ने पिछले साल 10 अगस्त को इन दोषियों को माफी दे दी थी. कोर्ट के आदेश पर इस केस की सुनवाई गुजरात से मुंबई ट्रांसफर की गई थी क्योंकि वे जेल में 15 साल से ज्यादा वक्त काट चुके थे. कथित तौर से जेल में इनका बर्ताव अच्छा था.
महत्वपूर्ण बात यह है कि मुंबई के ट्रायल कोर्ट के जज और सीबीआई किसी तरह की छूट देने के खिलाफ थे, क्योंकि इन लोगों ने जघन्य अपराध किए थे. दोषियों की याचिका को अलग रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बानो की अर्ची को लीड पिटिशन माना है. बेंच ने एक दोषी के वकील ऋषि मल्होत्रा से कहा, ’क्षेत्राधिकार (गुजरात सरकार का) न होने को लेकर आप क्या कहेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट (अपने 13 मई 2022 के फैसले से) किसी ऐसी बॉडी को निर्देश दे सकता है जिसके पास माफी पर फैसला लेने का अधिकार ही नहीं है?’
बानो ने पिछले साल 30 नवंबर को शीर्ष अदालत में राज्य सरकार द्वारा 11 आजीवन कारावास के दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए कहा था कि इस फैसले ने समाज की अंतरात्मा को हिला दिया है. दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका के अलावा, गैंगरेप पीड़िता ने एक अलग याचिका भी दायर की थी. जिसमें शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 को एक दोषी की याचिका पर दिए गए आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी. समीक्षा याचिका को बाद में पिछले साल दिसंबर में खारिज कर दिया गया था.
सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने छूट दी थी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. पीड़िता ने अपनी लंबित रिट याचिका में कहा है कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की आवश्यकता को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एक आदेश पारित किया. उन्होंने कहा, ’बिलकिस बानो के बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देश भर में कई आंदोलन हुए हैं.’
दरअसल, जब बानो 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थीं, उस समय गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के दंगों से भागते समय उसके साथ सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया था. मारे गए परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था. मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने लिखा कि बिलकिस बानो और उसके बच्चे के साथ दरिंदगी करने वालों को न सिर्फ गुजरात सरकार ने आजादी दिलवाई बल्कि अब सरकारी कार्यक्रमों में मंच पर भी साथ बिठा रहे हैं. क्या एक सांसद और विधायक को ऐसे लोगों को बढ़ावा देना चाहिए. देश भर की महिलाओं को क्या संदेश है? एक यूजर ने लिखा कि क्या ‘बीजेपी का बलात्कारी बचाओ अभियान’ इसीलिए था? सरकारी कार्यक्रमों में बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या के दोषी बीजेपी सांसद व विधायक के साथ मंच साझा कर रहे हैं। यही बीजेपी का असली चाल, चरित्र और चेहरा है।
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