MP: इंदौर में नाबालिग लापता बच्चियों के मामले में केस स्टडी से खुलासा, 50 प्रतिशत लड़कियां सोशल मीडिया और प्रेम-प्रसंग के कारण घरों से चली जाती हैं!

पुलिस कमिश्नर राकेश गुप्ता के निर्देशन में एसीपी विजय नगर कृष्ण लालचंदानी ने गुमशुदगी के प्रकरणों पर अपनी स्टडी रिपोर्ट तैयार की है। इसमें यह भी खुलासा हुआ कि जो नाबालिग लड़कियां भागी हैं, वे गुजरात, मंडीदीप, भोपाल और पीथमपुर जैसे औद्योगिक नगरों में जाकर छिपती हैं। इन्हीं स्थानों पर खोज के बाद ये मिली हैं। क्योंकि, यहां फैक्टरियों में दिहाड़ी मजदूरी मिलने से इन्हें जीवन यापन में दिक्कत नहीं आई।
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भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर में पुलिस ने नाबालिग बच्चों के लापता होने के मामले में केस स्टडी की है। स्टडी रिपोर्ट में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया के फेर में आकर 50 प्रतिशत लड़कियां घरों से चली गईं। दो साल में लापता हुई बालिकाओं के 1 हजार से ज्यादा प्रकरणों पर हुई केस स्टडी के बाद यह बात सामने आई है।

नाबालिग लड़कियों के लापता होने के मामले में इंदौर जिले का बाणगंगा थाना अव्वल है। उसके बाद लसूड़िया, चंदन नगर, आजाद नगर, राजेंद्र नगर, द्वारकापुरी, एरोड्रम, हीरानगर, भंवरकुआं फिर राऊ क्रमशः 10वें नंबर पर है। यहां स्लम बस्तियां हैं, माता-पिता बच्चियों पर ध्यान नहीं देते। सोशल मीडिया के फेर में आकर 50 प्रतिशत लड़कियां घरों से चली गईं।

पुलिस कमिश्नर राकेश गुप्ता के निर्देशन में एसीपी विजय नगर कृष्ण लालचंदानी ने गुमशुदगी के प्रकरणों पर अपनी स्टडी रिपोर्ट तैयार की है। इसमें यह भी खुलासा हुआ कि जो नाबालिग लड़कियां भागी हैं, वे गुजरात, मंडीदीप, भोपाल और पीथमपुर जैसे औद्योगिक नगरों में जाकर छिपती हैं। इन्हीं स्थानों पर खोज के बाद ये मिली हैं। क्योंकि, यहां फैक्टरियों में दिहाड़ी मजदूरी मिलने से इन्हें जीवन यापन में दिक्कत नहीं आई।

एसीपी लालचंदानी ने बताया कि 2023 और 24 के 7 माह में बाणगंगा क्षेत्र से सर्वाधिक नाबालिग लड़कियां भागी हैं। सभी मामलों में अपहरण के केस दर्ज किए गए। 2024 के 7 महीने में 450 बालिकाओं का अपहरण हुआ। इनमें से 427 लड़कियों को पुलिस ने तलाश कर परिजन के हवाले किया है। इनमें 93 प्रतिशत लड़कियां 12 से 18 साल की हैं और 6 प्रतिशत 6 से 12 साल की। शेष 17 से 18 के बीच हैं। जो बालिग उम्र में कुछ माह कम है।

पुलिस की स्टडी में घर छोड़ गई नाबालिगों से, उनके पति, दोस्तों व परिचितों से हुई बात में पता चला कि 50 प्रतिशत बालिकाएं सोशल मीडिया पर प्रेम-प्रसंग में पड़कर घर से गई हैं। 20 प्रतिशत मामलों में 12 से 17 साल की लड़कियां सहेलियों से प्रेरित होकर प्रेम प्रसंग में चली गई हैं। 10 प्रतिशत वे हैं जो घर वालों की पसंद के लड़के से शादी के दबाव में गईं, इनमें वे भी हैं जो आर्थिक मजबूरी के साथ ही परिजन के घर न होने पर आस पड़ोसियों के युवकों के बहकावे में आकर गई हैं। वहीं, 8 प्रतिशत बालिकाएं बिना पढ़ाई और परिवार वालों से तंग आकर भागी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 18 प्रतिशत आरोपियों को यह नहीं पता कि यह एक कानून अपराध है।

एसीपी के मुताबिक, स्लम एरिया में नाबालिग बच्चियों को जागरूक करने के लिए 'सृजन' अभियान चलाया जा रहा है। वहां बालिग नाबालिग बच्चों को समझा रहे हैं कि ये अपराध है। कुछ प्रकरणों में नाबालिग के केस में सीधे अपहरण का केस दर्ज करने के बजाय उनकी तलाश पर जोर दिया जा रहा है।

पुलिस की रिपोर्ट में नाबालिग बच्चियों के घर से चले जाने के कारण भी बताए गए है। रिपोर्ट में इंदौर के बाणगंगा, लसूड़िया, चंदन नगर, आजाद नगर और राजेंद्र नगर जैसे टॉप 5 थानों में नाबालिगों के भागने का मुख्य कारण यहां की स्लम बस्तियां बताई गई है। यहां बालिकाओं ने बताया कि माता-पिता जब मजदूरी पर जाते थे तो आसपास के लोग उनका सहारा होते थे। वे बहकाकरउन्हें साथ ले जाते हैं। लेबर क्लास होने के साथ असाक्षरता भी बड़ा कारण है। परिवार का होल्ड न होने से बाहर वाले के प्यार और दोस्ती में आकर वे भागी हैं। कई बच्चियां फैक्टरी में माता-पिता के साथ काम करने के दौरान संपर्क में आए लड़कों के बहकावे में उनका शिकार बनी हैं।

ऐसे मामलों में यह होती है कार्रवाई

नाबालिगों के साथ यौन संबंध बनाना या रेप की घटनाओं में पॉक्सो एक्ट में कार्रवाई की जाती है।पॉक्सो एक्ट का पूरा नाम प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट है। इसे हिन्दी में बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम भी कहा जाता है। इस कानून को लाव 2012 में लाया गया था। इसके लाने की सबसे बड़ी वजह यही थी कि इससे नाबालिग बच्चियों को यौन उत्पीड़न के मामलों में संरक्षण दिया जा सके। हालांकि ये कानून ऐसे लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। वहीं पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजाओं का भी प्रावधान किया गया है। पहले इसमें मौत की सजा का प्रावधान नहीं किया गया था, लेकिन बाद में इस कानून में उम्रकैद जैसी सजा को भी जोड़ दिया गया।

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