मां की ममता ने दी बेटे को नई जिंदगी: भोपाल के हमीदिया अस्पताल में सफाई कर्मी की किडनी से हुआ सफल ट्रांसप्लांट

हमीदिया अस्पताल की टीम, जिसमें किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. आरआर बर्डे, प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. सौरभ जैन, डॉ. अमित जैन, डॉ. समीर व्यास, डॉ. नरेंद्र कुर्मी और निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. बृजेश कौशल, डॉ. श्वेता श्रीवास्तव शामिल थे, उन्होंने इस कठिन सर्जरी को सफलतापूर्वक पूरा किया।
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भोपाल। मध्य प्रदेश में भोपाल के हमीदिया अस्पताल में एक 48 साल की सफाई कर्मी मां ने अपने 28 साल के बेटे को नई जिंदगी देकर मिसाल कायम की है। बेटे को पिछले दो साल से हाइपरटेंशन की बीमारी थी, जिसका इलाज चल रहा था। इलाज के दौरान पता चला कि उसकी दोनों किडनी फेल हो चुकी हैं, और वह एक साल से डायलिसिस के सहारे ही जीवन जी रहा था। बेटे की यह पीड़ा मां से देखी नहीं गई, और उसने अपनी किडनी देकर उसकी जान बचाने का फैंसला लिया।

यह कहानी एक मां की ममता और उसकी आर्थिक तंगी के बीच झूलते संघर्ष की है। सफाईकर्मी के तौर पर काम करने वाली इस मां के पास किडनी ट्रांसप्लांट के महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं थे। निजी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट की लागत 10 से 15 लाख रुपए तक होती है, जो उनके लिए असंभव था। बेटे की बिगड़ती हालत ने उसे बेबस कर दिया था, लेकिन हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर्स ने उन्हें आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त इलाज की सलाह दी।

आयुष्मान भारत योजना, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराती है, इस परिवार को राहत दी। मां ने इस योजना का लाभ उठाते हुए अपनी किडनी बेटे को दान करने का फैसला किया। हमीदिया अस्पताल के डॉक्टरों ने आयुष्मान योजना के तहत सफलतापूर्वक किडनी ट्रांसप्लांट किया, जिससे बेटे को नई जिंदगी मिली।

डॉक्टर्स के मुताबिक ट्रांसप्लांट के बाद मां और बेटे दोनों स्वस्थ हैं और उन्हें जल्द ही अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी। इस सफल ट्रांसप्लांट के बाद मां ने न केवल अपने बेटे को नया जीवन दिया, बल्कि समाज के सामने एक प्रेरणादायक उदाहरण भी पेश किया है।

क्या है ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया?

यह किडनी ट्रांसप्लांट लेप्रोस्कोपिक नेफ्रेक्टॉमी विधि से किया गया, जिसे आमतौर पर की होल सर्जरी के नाम से जाना जाता है। इस विधि में ओपन सर्जरी के मुकाबले महज पांच सेमी का चीरा लगाकर किडनी निकाली जाती है, जिससे डोनर को कम तकलीफ होती है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाता है।

हमीदिया अस्पताल की टीम, जिसमें किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. आरआर बर्डे, प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. सौरभ जैन, डॉ. अमित जैन, डॉ. समीर व्यास, डॉ. नरेंद्र कुर्मी और निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. बृजेश कौशल, डॉ. श्वेता श्रीवास्तव शामिल थे, उन्होंने इस कठिन सर्जरी को सफलतापूर्वक पूरा किया।

अब तक हो चुके 8 ट्रांसप्लांट

गांधी मेडिकल कॉलेज की डीन, डॉ. कविता एन सिंह ने बताया कि हमीदिया अस्पताल में अब तक 8 किडनी ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। एनएमसी ने जीएमसी को यूरोलॉजी की तीन एमसीएच सीटें प्रदान की हैं, जिससे अस्पताल के ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट को और भी अपग्रेड किया जाएगा और भविष्य में और भी बेहतर तरीके से ट्रांसप्लांट किए जा सकेंगे।

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