यह सभी को मालूम है कि एक बच्चे की जिंदगी में मां का किरदार क्या होता है। जब बच्चा मां के पेट में होता है तब मां उसे अपने खून से सींचती है, उसके लिए बहुत सी मुश्किलें उठाती है, बहुत दर्द झेलती है, जब बच्चा मां के गोंद में आता है तो मां उसके लिए अपनी खूबसूरती को पीछे छोड़ देती है। बच्चे को साथ लेकर मजदूरी भी करती है। घर के काम भी करती है, और पति का भी ख्याल रखती है। बच्चा जब साल भर का हो जाता है तो मां उसे चलना सिखाती है। बच्चा जब और बड़ा होता है तो मां उसे बोलना सिखाती है। बच्चा जब स्कूल जाने लगता है तो उसका नाश्ता लगाकर उसकी लंच-टिपिन और नहलाना धुलाना उसके बाल सही करना यूनिफॉर्म पहनना, उसे स्कूल तक सुरक्षा से पहुंचना ये सब मां एक दिन ही नहीं बल्कि रोज़ करती है।
आज यानी 14 मई को पूरी दुनिया Mother's Day के रूप में जश्न मना रही है। सबको अपना-अपना बचपन याद आ रहा है। सब अपनी मां को याद कर रहे हैं। जिनकी माएं दुनिया में नहीं हैं वो सब उनके लिए दुवाएं कर रहे हैं।
जिनकी मां दुनिया में हैं वो सब उनको स्पेशल फील करा रहे हैं। हर परिवार में अपना अलग ही सेलिब्रेशन चल रहा है। कोई मां को गिफ्ट्स सरप्राइज कर रहा है। तो कोई मां के साथ घूमने की प्लानिंग कर रहा है। कोई मां के लिए सोने के कंगन बनवा रहा है। तो कोई मां के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा है। कोई मां से दुवाएं ले रहा है। हर व्यक्ति मां के साथ बैठकर आज के इस दिन को अपनी जिंदगी की डायरी में खूबसूरत पल के रूप में लिख रहा है।
मगर आज हम आप को कुछ ऐसी मांओं से मिलवाएंगे जिनके बच्चे तो हैं, लेकिन सोने के कंगन तो दूर की बात है.! उन्हें दो वक्त की रोटी भी देने को तैयार नहीं हैं। सरप्राइज़ करने को तो दूर की बात है, उन्हें अपनी आंखों से देखने को भी तैयार नहीं हैं। आसान शब्दों में कहें तो बच्चे भूल गए हैं की उनकी मां भी हैं दुनिया में।
द मूकनायक की टीम उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहुंची जहां एक वृद्धा आश्रम है, जिसमें सैकड़ों बूढ़े मां बाप अपनी जिंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं। हमने जब बुजुर्ग मांओं से बात की तो उन्होंने अपनी जो जिंदगी की आप-बीती बताई वो सुनकर आप की आंखें नम हो जाएंगी।
वृद्धा आश्रम में रह रहीं गुलाबकली दूबे द मूकनायक को बताती हैं, "मेरे पास कोई औलाद नहीं थी। मैंने बहुत ईश्वर से प्रार्थना किया, मन्नत मानी, दुवाएं की, हर दरबार हर मंदिर में माथा टेका तब जाकर ईश्वर ने मेरी झोली में एक औलाद डाली, वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिन था जब मेरे घर औलाद पैदा हुई थी। मेरे पति का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। मेरी आंखें भर आई थी ईश्वर का शुक्र अदा करते-करते। उसी दौरान मेरे पति की हादसे में मौत हो गई। अब मेरी औलाद के सिवा दुनिया में मेरा कोई नहीं था। मैं अपने बेटे को पालने के लिए मेहनत-मज़दूरी करती थी। जिसके बदले मुझे पैसे मिलते थे उसी पैसे से मैं अपने बेटे को दूध खरीदती थी। उसको नहलाती थी उसको धुलाती थी, अगर गंदगी कर देता था तो रात-रात जागकर सफाई करती थी। अगर रोता था तो मुझे नींद नहीं आती थी। वह जब बीमार हुआ था तब मैंने कई दिन तक खाना नहीं खाया था और खाती भी कैसे मुझे सिर्फ रोना आता था। ईश्वर की तरफ देखकर मैं अपनी औलाद के लिए जिंदगी मांगती थी। बच्चे को पढ़ाया लिखाया कोई उससे मार पीट करता तो जान निकल जाती थी। भले मेरे बेटे की गलती होती थी मैं सबसे लड़ जाती थी। मैं चाहती थी मेरा बेटा एक कामयाब इंसान बने। मैंने अपने बेटे को अच्छे स्कूल में पढ़ाया। एक वक्त भूखी रही लेकिन बेटे को पेट भर कर खिलाया। पाल-पोष कर उसे बड़ा किया। जब मेरा बेटा जवान हुआ तो मैंने सोचा अब मेरे मुश्किल के दिन काटने वाले हैं। तो मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर दी। वही मेरी आखरी उम्मीद था। जिस दिन मैंने बेटे को खोया उस दिन मेरे पास जीने की कोई वजह नहीं बची थी। बेटे के लिए तो महनत-मज़दूरी करती थी लेकिन जब कातिलों ने मेरी औलाद छीन ली तो मेरे अंदर हिम्मत नहीं रही। अब भीख मांगने से बेहतर मैंने इस आश्रम का सहारा लेना उचित समझा और दिल पर पत्थर रखकर दो वक्त की रोटी के लिए पेट-पाल रही हूं।"
उसी वृद्ध आश्रम में मौजूद अनारकली बताती हैं, "प्रतापगढ़ शहर के राजा पाल टंकी चौराहे के पास कभी मेरा मकान हुआ करता था मेरे देवर ने मेरा मकान गलत तरीके से अपने बेटे के नाम करवा लिया। जिसके कुछ दिन बाद हानि से मेरे पति का देहांत हो गया, मुझे मेरे देवर ने घर से निकाल के भागा दिया। मेरा एक लड़का आलोक विश्वकर्मा है, उसके ऊपर जानलेवा हमला हुआ था, 3 गोलियां लगी थी बड़ी मुश्किल से उसकी जान बची थी। उसके बाद से वो जान की रक्षा के लिए बाहर चला गया, और मैं पेट पालने के लिए यहां चली आई।"
द मूकनायक टीम के पत्रकार के हाथ में मोबाइल देख वह कहने लगीं कि मेरे बेटे की फोटो दिखाओ बहुत याद आती है उसकी, और वह भाऊक हो गईं। उन्होंने कहा "आज से 10 साल पहले मेरे पति का कैंसर की वजह से देहांत हो गया तबसे मेरा एक-एक दिन बड़ी मुश्किल से बीत रहा है। न मेरे पास पति का साथ है न मेरा खुद का कोई घर है। न मेरे पास मेरा बेटा है। मेरे लड़के ने अब कोर्ट मैरिज कर लिए है। जो पत्नी के साथ उसके मायके में रहता है। कभी ऐसा भी था की मेरा बेटा मेरे साथ ही रहता था आज उसको देखे बहुत व्यक्त गुज़र गया, अब तो बस मौत का इंतजार है। यहां पेट पाल रही हूं।"
द मूकनायक ने फितना बाई से बात की, वह कहती हैं, "मेरे पास एक ही औलाद है, वो जहां रहे खुश रहे यही दुआ करती हूं." वह बोलीं कि "बेटे से बहुत सी बातों पर नाराजगी थी, मैं उसके साथ न रहकर अपने बहन के घर रहने चली गई थी वहां मैं अपने बहन के साथ काम में हाथ बटाती थी काम-काज करती थी और रोटी बना कर सबको खाती खिलाती थी। आज से दो साल पहले मेरी बहन का देहांत हो गया उसके बाद से वहां मेरी कोई कदर नहीं रही। मेरी बहन के बेटे ने मुझे मार कर भगा दिया। तभी से मैं यहां रह रही हूं।बेटे ने कभी मेरी तरफ मुड़कर नहीं देखा। मैं कहां हूं कैसी हूं उसने खबर तक नहीं ली। याद आती है तो सोचती हूं मैं भी अपने बेटे-बहू के साथ रहूं। लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। ईश्वर की कृपा से यहां दो वक्त की रोटी मिल जा रही है वरना मुझे नहीं पता की सुख क्या होता है।"
उसी आश्रम में एक और मां "सुमिता", उनकी कहानी सबसे अलग थी। उन्होंने ने कहा। "मैं भी अपने माता-पिता की आंखों की ठंडक थी। अपने भाइयों बहनों के साथ रहती थी। सबका विवाह हो गया, पर मैंने शादी नहीं की। जिसका कारण ये था की उस वक्त मेरे पिता के पास दहेज़ व मेरे विवाह के पैसे नहीं थे। मेरे पिता बीमार रहते थे। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। मैं उन्हीं के साथ रहने लगी थी। एक समय आया जब मेरे माता-पिता दुनिया में नहीं थे। मैं भाई-भतीज़ों के साथ रहती थी। जब तक मेरा भाई कमाने के लायक था तब तक मुझे तकलीफ नहीं हुई। लेकिन जब मेरे भतीजे उस घर के जिम्मेदार बने तो मुझे घर वालों ने दरकिनार कर दिया। अपनी जीविका के लिए तब से मैं यहां रह रही हूं। कल अगर मेरे पिता के हालात अच्छे होते तो शायद आज मेरा ये हाल न होता। मैं यहां बिलकुल ठीक हूं।" वह आश्रम के कर्मचारियों की तरफ देख कर बोलीं, "अब तो यही लोग मेरे बच्चे हैं यही मेरा परिवार है।"
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