महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और मीडिया की भूमिका पर 'मेरा रंग फाउंडेशन' ने आयोजित किया कार्यक्रम

जेंडर विमर्श और महिला सशक्तिकरण के लिए बीते आठ वर्षों से काम कर रही संस्था 'मेरा रंग फाउंडेशन' ने 'महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और मीडिया की भूमिका' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया है.
महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और मीडिया की भूमिका पर 'मेरा रंग फाउंडेशन' ने आयोजित किया कार्यक्रम
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नई दिल्ली: पिछले कुछ वर्षों में देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है, जो किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली हैं. जेंडर विमर्श और महिला सशक्तिकरण के लिए बीते आठ वर्षों से काम कर रही संस्था 'मेरा रंग फाउंडेशन' ने 'महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और मीडिया की भूमिका' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया है. यह संगोष्ठी 5 अक्तूबर को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आयोजित हुई.

इस अवसर पर अंग्रेजी की वरिष्ठ पत्रकार सुजाता मधोक, कवि और स्त्रीवादी आलोचक सुजाता, इग्नू की प्रोफेसर और दलित लेखक कौशल पंवार, मानवाधिकारों पर काम कर रही पत्रकार प्रियंका दुबे और अधिवक्ता आज़ाद सिंह ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए.

चर्चा का संयोजन लेखिका व स्त्रीवादी एक्टिविस्ट अणु शक्ति सिंह ने किया. संस्था की फाउंडर शालिनी श्रीनेत ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि, मेरा रंग फाउंडेशन बीते आठ सालों से सोशल मीडिया तथा जमीनी स्तर पर महिलाओं को जागरूक करने के लिए लगातार काम कर रहा है. ताकि महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जान सकें और समाज में एक बेहतर स्थान बना सकें. संस्था अपने कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले हिंसा, शोषण और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती है. हमारा प्रयास होता है कि संस्था के स्थापना दिवस पर हम समाज और स्त्रियों से जुड़े किसी समकालीन मुद्दे पर सार्थक चर्चा करें. कार्यक्रम का संचालन शोभा अक्षर ने किया.

इस अवसर पर सुजाता मधोक ने कहा कि, समाज में हो रहे बदलाव को देखते हुए मीडिया को भी अपनी भूमिका में बदलाव लाना होगा. वहीं प्रियंका दुबे ने कहा कि, रिपोर्टिंग में काफी खर्च आता है और अब मीडिया में रिपोर्टिंग लगभग बंद कर हो गई है.

सुजाता ने कहा कि लोग लड़कियों के अंदर बदलाव देखना चाहते हैं मगर लड़कों में नहीं. अधिवक्ता आजाद सिंह ने कहा कि कोर्ट में इस्तेमाल होने वाली शब्दावली बदलनी चाहिए, अगर किसी पीड़ित महिला का केस है तो उसके साथ सभ्य भाषा में बात करनी चाहिए. वहीं कौशल पंवार ने कहा कि समाज में दलित महिलाएं हाशिए पर हैं, उनसे संबंधित मुद्दों पर बहुत कम रिपोर्टिंग होती है. उन्होंने यह भी कहा कि महिला सिर्फ महिला होती है, उसकी कोई जाति नहीं होती.

इस मौके पर संस्था की तरफ से गाजियाबाद की पूर्व महिला प्रथान अर्णिमा त्यागी को वर्ष 2024 का 'रंग साहस का' अवार्ड दिया गया. ब्लू ओशन लैब कंपनी की तरफ से सभी अतिथियों को उपहार दिए गए।

कंपनी की तरफ से शोभा पांडेय ने कहा कि भविष्य में मेरा रंग के साथ महिला स्वास्थ्य और स्वच्छता पर जागरूकता के लिए कार्यक्रम किए जाएंगे. इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता शैल माथुर, दिल्ली विवि की प्रोफेसर व जानी-मानी कवि अनामिका समेत कई जाने-माने लेखक मीडिया के छात्र, प्रबुद्ध जन, सामाजिक कार्यकर्ता और जागरूक नागरिक उपस्थित रहे. शालिनी से सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप सभी बीते आठ वर्षों से हमसे जुड़े रहे और हमेशा उत्साह बढ़ाया है, उम्मीद है आगे भी हमें ऐसा ही सहयोग मिलेगा.

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