भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने महिला लिव इन पार्टनर के पक्ष में सुनवाई करते हुए अहम फैसला दिया सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रहती हैं, और बाद में उनका ब्रेकअप होता हैं, तो महिला गुजारे-भत्ते की हकदार होगी। हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिए हैं कि महिला गुजारे-भत्ते के लिए पात्र है, और जीवन निर्वहन के लिए वह इसकी हकदार भी हैं।
बालाघाट में रहने वाले शैलेश कुमार कई सालों तक एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहा। दोनों का एक बच्चा भी हैं। किसी कारणवश दोनों अलग हो गए तो महिला ने बालाघाट पुलिस में शिकायत की और बताया कि शादी का झांसा देकर पत्नी की तरह रखा। महिला ने बालाघाट जिला कोर्ट में गुजारे-भत्ते के लिए आवेदन किया। महिला ने कोर्ट को बताया कि कई सालों तक पति-पत्नी की तरह रहें, उनका एक बच्चा भी है। बाद में शादी से इंकार कर दिया, लिहाजा उसे जीवन-यापन के लिए गुजारा भत्ता दिया जाए।
बालाघाट जिला कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया तो शैलेश ने हाईकोर्ट में बालाघाट कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कोर्ट के समक्ष महिला ने मंदिर में शादी किए जाने और पत्नी के तौर रहने की बात कही है लेकिन वह इसके साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं कर पाई है। इसलिए याचिकाकर्ता को राहत मिलनी चाहिए।
लिव इन पार्टनर से महिला का एक बच्चा भी है। लिहाजा हाई कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही महिला विवाह साबित करने में सफल न रही हो लेकिन दोनों के बीच संबंध थे यह सबूत पर्याप्त है। हाई कोर्ट ने कहा कि, बच्चा इस बात का सबूत है कि दोनों के बीच रिश्ते पति-पत्नी जैसे ही थे। हाई कोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने बालाघाट जिला न्यायालय ने गुजारा भत्ता दिए जाने के पारित आदेश की पुष्टि करते हुए चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
लिव इन रिलेशनशिप को लेकर देश भर की कोर्ट और कई मंचों पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर प्रकरण लंबित है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस फैसले से लिव इन रिलेशन में महिलाओं के अधिकारों को मान्यता मिली है। बहरहाल हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए एक अहम आदेश पारित किया है जिसमें कहा है कि ब्रेकअप के बाद महिला गुजारा भत्ता की हकदार है, भले ही उसका वैवाहिक वैधानिक तरीके से होने का साक्ष्य मौजूद न हो।
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