मध्य प्रदेश: पांच हजार गैस पीड़ित महिलाओं को पेंशन का इंतजार!

भोपाल गैस कांड की पीड़ित विधवा महिलाओं को पिछले दो महीने से पेंशन नहीं मिली है।
मध्य प्रदेश: पांच हजार गैस पीड़ित महिलाओं को पेंशन का इंतजार!
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भोपाल। जहरीली गैस रिसाव का दंश झेल रहीं पांच हजार से ज्यादा विधवा महिलाओं को पिछले दो महीने से पेंशन नहीं मिली है। यह महिलाएं अब रोज बैंक के चक्कर काट रहीं है, लेकिन खाते में पेंशन की राशि नहीं पहुँच रही। यह पहली बार नहीं है, जब महिलाओं की पेंशन रुक गई हो, इसके पहले भी पिछले पांच वर्षों में कई बार पेंशन अटक गई थी। इधर, गैस पीड़ित विधवा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। लेकिन उन्हें पेंशन का लाभ नहीं मिल रहा।

दरअसल, 1984 में भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ित विधवा महिलाओं को मध्य प्रदेश गैस राहत विभाग द्वारा एक हजार रुपए की पेंशन दी जाती है। लेकिन यह पेंशन फिलहाल दो महीनों से हितग्राहियों के खातों में नहीं पहुँची।

इसके पहले कोरोना महामारी के बाद गैस पीड़ित विधवा महिलाओं को प्रति महीने मिलने वाली एक हजार रुपए की पेंशन डेढ़ साल तक अटकी रही थी। गैस पीड़ितों के आंदोलन के बाद पेंशन शुरू भी हुई तो पुरानी पेंशन की राशि का एरियर नहीं दिया गया। हितग्राही महिलाओं को गैस त्रासदी की पेंशन एक निश्चित तारीख पर नहीं मिलती लेकिन अब दो महीने से महिलाओं के खातों में एक नया पैसा पेंशन का नहीं पहुँचा।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए यूनियन कार्बाइड के पास स्थिति ब्लूमून कॉलोनी की गैस पीड़ित रहवासी मुन्नी बी ने बताया की वह पिछले सप्ताह से रोज बैंक जा रही हैं, लेकिन उनके खाते में पिछले दो महीनों से पेंशन की राशि नहीं आई है। मुन्नी ने बताया कि गैस के प्रभाव के कारण 16 साल पहले उनके पति की मृत्यु किडनी फेल होने के कारण हुई थी। पिछले 9 सालों से गैस पीड़िता के रूप में विधवा पेंशन उन्हें मिल रही है। उन्होंने कहा पहले भी पेंशन बंद हो गई थी।

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मुन्नी बी के परिवार में उन्हें मिलाकर पांच बच्चे हैं, उनके चार बच्चों में से एक 24 वर्षीय बेटी, और एक 22 वर्षीय बेटा जन्म से दिव्यांग है। मुन्नी ने कहा कि, "गैस के प्रभाव के कारण उनके दो बच्चे जन्म से दिव्यांग है। पेंशन के एक हजार रुपए से घर खर्च में राहत मिलती है। बड़ा बेटा मजदूरी करता है, जो कुछ मिल जाए उससे ही घर चल रहा है।"

वहीं जेपी नगर की रहवासी जेनब बी ने कहा कि, "पहले भी डेढ़ साल के लिए सरकार ने पेंशन बन्द कर दी थी, और जब वापस शुरू की गई तो डेढ़ साल के पेंशन का पैसा नहीं मिला। अब पिछले दो महीनों से पेंशन नहीं आई है। क्या पता आनी भी है कि नहीं?"

द मूकनायक से बातचीत करते हुए गैस पीड़ितों के लिए काम कर रही भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि, "यह कोई नई बात नहीं है, पहले भी सरकार ने पेंशन रोक दी थी। अब पिछले दो महीनों से राशि नहीं मिली है। हम गैस राहत विभाग के अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, उनका कहना है कि पेंशन जल्द आ जायेगी।"

पात्र महिलाओं को नहीं मिल रही पेंशन

पांच हजार गैस पीड़ित विधवा महिलाओं के बाद अब इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन पेंशन के लिए पात्रता होने के बावजूद उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। गैस त्रासदी में पीड़ित परिवारों में कई लोगों को गंभीर बीमारियां हैं, गंभीर रोग से ग्रसित लोगों की मौत लगातार सामने आ रहीं है। लेकिन उनकी विधवाओं को पेंशन का लाभ नहीं दिया जा रहा।

पेंशन योजना की शुरुआत में जिनका पंजीयन हुआ था, सिर्फ उन्हीं को लाभ मिल रहा है। नए लोगों को पेंशन हितग्राही सूची में शामिल नहीं किया गया है। द मूकनायक ने रुकी हुई पेंशन राशि पर जानकारी के लिए मध्य प्रदेश सरकार के गैस राहत मंत्री कुँवर विजय शाह को फोन किया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। इसके बाद हमने भोपाल गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के संचालक राकेश श्रीवास्तव को फोन किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। हमने उन्हें फोन पर मैसेज कर पेंशन के सम्बंध में सवाल किए, लेकिन उनका कोई उत्तर नहीं मिला।

उस रात मौत की नींद सो गए हजारों लोग

1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्‍ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। इससे पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया। मरने वालों की संख्या 16,000 से भी अधिक थी। मौत के बाद भी हजारों की संख्या में जो लोग जहरीली गैस की चपेट में आए वह आज तक इसका दंश झेल रहे हैं।

उस रात गैस त्रासदी से करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। गैस त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्‍चे असामान्‍यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।

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