चर्चित “ईश्वर और बाज़ार” किताब की लेखिका जसिंता केरकेट्टा ने इंडिया टुडे ग्रुप के अवार्ड को लेने से किया इंकार

पत्रकार और कवि जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि कथित मुख्यधारा की मीडिया ने अक्सर आदिवासियों के जीवन को, उनके मुद्दे को सम्मानजनक तरीके से देश के सामने लाने की कभी कोशिश नहीं की. मेरा मन व्यथित रहता है. मैं यह सम्मान नहीं ले रही हूं.
पत्रकार और कवि, जसिंता केरकेट्टा
पत्रकार और कवि, जसिंता केरकेट्टाग्राफिक- द मूकनायक
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नई दिल्ली। आदिवासियों, हाशिए के समुदाय की महिलाओं के मुद्दों, समुदाय के लोगों के जीवन में पेड़, पहाड़ों और नदियों के मायने को बेहद खूबसूरती और सरीखे से कविताओं के माध्यम से देश-दुनिया के सामने लाने वाली पत्रकार और कवि जसिंता केरकेट्टा ने देश के एक बड़े मीडिया समूह, इंडिया टुडे ग्रुप, से मिलने वाले अवार्ड को लेने से साफ मना कर दिया है. जसिंता ने मीडिया समूह द्वारा दिए जाने वाले सम्मान और सम्मान राशि को मना करते हुए जवाब में आदिवासियों के प्रति मीडिया की कवरेज के रवैये पर दुःख भी जाहिर किया है.

जसिंता ने द मूकनायक को बताया कि, “20 नवंबर को काफ़ी कॉल आए पर मैं बात नहीं कर सकी क्योंकि गांव से शहर जा रही थी. रास्ते में थी. 21 नवंबर को मेरी बात हो सकी. मुझे यह सूचना दी गई कि मुझे ‘आज तक साहित्य जागृति उदीयमान प्रतिभा सम्मान’  मेरी कृति ‘ईश्वर और बाज़ार’ के लिए चुना गया है. मान राशि 50,000 है. और 26 नवंबर को दिल्ली में आयोजित साहित्य आज तक समारोह में यह दिया जाएगा।”

इंडिया टुडे ग्रुप से अवार्ड लेने से मना करने के द मूकनायक के सवाल पर जसिंता ने कहा, “मैंने उन्हें लिखा कि मैं इस सम्मान की ख़बर से कोई रोमांच या खुशी महसूस नहीं कर रही हूं. ऐसे समय में जब मणिपुर के आदिवासियों के जीवन का सम्मान ख़त्म हो रहा है. मध्य भारत के आदिवासियों के जीवन से भी उनके जीवन का सम्मान गायब हो रहा है. साथ ही वैश्विक समाज में दूसरे समुदाय के लोगों के जीवन पर भी लगातार हमला हो रहा है. मेरा मन व्यथित रहता है. मैं यह सम्मान नहीं ले रही हूं.”

“कथित मुख्यधारा के कुछ प्रतिष्ठित माने जाने वाले मीडिया हाउस और न्यूज चैनल मणिपुर की घटनाओं पर किस तरह चुप्पी साधे हुए थे इससे पूरा देश वाकिफ है. कथित मुख्यधारा की मीडिया ने अक्सर आदिवासियों के जीवन को, उनके मुद्दे को सम्मानजनक तरीके से देश के सामने लाने की कभी कोशिश नहीं की. मेरे कविता संग्रह ‘ईश्वर और बाज़ार’ में संगठित धर्म, सत्ता के खिलाफ़ कविताएं हैं. आदिवासियों के ज़मीनी संघर्ष की कविताएं हैं. हम जब कोई किताब लिखते हैं तब कथित मुख्यधारा के समाज के लिए किताब महत्वपूर्ण हो जाती है पर लोग नहीं. चीज़ों को देखने का यह हमारा (आदिवासी) नज़रिया नहीं है. हम किसी कृति को सामूहिक रूप से सेलिब्रेट करना चाहते हैं. लोग जो कविता की तरह ज़मीन पर जीते हैं उनके जीवन का सम्मान खत्म हो रहा हो, जीने का अधिकार छीना जा रहा हो तब कोई लेखक, कवि सिर्फ़ अपने सम्मान का क्या करे? इन सब बातों के कारण मैंने यह सम्मान लेने से मना किया”, जसिंता केरकेट्टा ने द मूकनायक को बताया।

अवार्ड लेने से मना करने पर जसिंता को मिले जवाब के बारे में वह बताती हैं कि, “उन्होंने लिखा कि इस व्यथा और जमीनी संघर्ष का उनके मन में बहुत आदर है. हर सभ्य समाज और संवेदनशील मनुष्य ऐसा सा ही महसूस करता है. मेरी रचनाओं ने निरंतर न्याय और मनुष्यता के पक्ष में एक सबल आवाज़ उठाई है. यह धार बनी रहे.”

एक बड़े मीडिया समूह के लिए ही यह निर्णय था या ऐसा कुछ और है जो किसी भी भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया से अवार्ड लेने की अनिच्छा पैदा करता है, के द मूकनायक के सवाल पर वह कहती हैं, “सिर्फ़ एक बड़े मीडिया हाऊस की बात नहीं है. देश की कथित मुख्यधारा की मीडिया किस तरह से अपनी भूमिका निभाती है हाशिए के लोगों के प्रति, इस बात से मेरा कोई भी निर्णय ज़रूर प्रभावित होगा. उनका कोई भी सम्मान क्या सामूहिक रूप से आदिवासी समाज या हाशिए के समाज के भीतर सम्मान को सेलिब्रेट करने की भावना उत्पन्न कर सकेगा? अगर नहीं तो मेरा निर्णय हमेशा नहीं होगा.” 

जसिंता ने कहा, “खुद के लिए ढेर सारे सम्मान मैं नहीं चाहती. इसमें मेरी रुचि नहीं है. लेकिन कोई सम्मान जो आदिवासियों को सामूहिक रूप से गर्वांवित महसूस करने के अवसर दें या लोगों के बीच काम करने के लिए सहयोग करे तो उसे स्वीकारने में मुझे खुशी होगी. पर नए युवा जिन्हें प्रोत्साहन की जरूरत है जो अच्छा काम कर रहे, अच्छा लिख रहे हैं, मैं उनको सम्मानित और प्रोत्साहित होता देखना ज़्यादा ज़रूरी समझती हूं. किससे सम्मान लेना है या नहीं यह मेरी चेतना क्या कहती है, इससे ही तय होता है.”

कौन हैं जसिंता केरकेट्टा?

3 अगस्त 1983 को झारखंड-ओडिशा सीमा के पास पश्चिमी सिंहभूम जिले के एक गांव खुदापोश में जन्मीं जसिंता केरकेट्टा ओरांव जनजाति से आती हैं। उनके पिता एक मैराथन एथलीट थे, जिन्होंने एक चर्च द्वारा संचालित एक स्थानीय स्कूल में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम किया और फिर अस्थायी रूप से पुलिस बल में काम किया। जसिंता केरकेट्टा की कृति “ईश्वर और बाजार” ने अपनी जीवित कविताओं के माध्यम से एक बड़े तबके को आकर्षित किया। आदिवासियों की जिंदगियों में संघर्षों, पाखंड और अंधविश्वासों के बीच पिसती महिलाओं की चुनौतियों को जिस तरह से इस किताब में कविता के माध्यम से लिखा गया है, यह इसे खुद-बखुद अपने समय की सबसे श्रेष्ठ कृतियों में शामिल कर लेता है. उनकी यह किताब आदिवासियों के खिलाफ वर्षों से हो रहे उत्पीड़न, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और समुदाय के विस्थापन पर चर्चा करती है और सरकारों की उदासीनता पर सवाल उठाती है।

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