भारत में महिलाओं के 36 लाख केस कोर्ट में पेंडिंग, अन्य मामलों के आंकड़ें हैरान करने वाले

लगभग 36.57 लाख केस अकेले महिलाओं की ओर से दायर किए गए हैं, जिन पर इंसाफ होना बाकी है।
भारत में महिलाओं के 36 लाख केस कोर्ट में पेंडिंग, अन्य मामलों के आंकड़ें हैरान करने वाले
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नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के आंकड़े जारी किए हैं। जिनके अनुसार अभी भारतीय न्यायालयों में लगभग 4.44 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इनमें से 8 फीसदी मामले आधी आबादी यानी महिलाओं की ओर से दायर किए गए हैं। लगभग 36.57 लाख केस अकेले महिलाओं की ओर से दायर किए गए हैं, जिन पर इंसाफ होना बाकी है। निर्भया मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने को कहा था। पुलिस को भी निर्देश दिए गए थे कि छह माह में मामला निपटाकर महिला को इंसाफ मिल जाए। लेकिन इसका असर देखने को नहीं मिला। उल्टा महिलाओं के खिलाफ क्राइम में इजाफा होने लगा।

7 फीसदी मामलों में कोर्ट का स्टे

आंकड़ों में टॉप-20 राज्यों को लिया गया है। जो 6 अक्टूबर 2023 तक का हाल बताते हैं। इनमें से लगभग 45 फीसदी केस में तो वकील ही पेश नहीं हो रहे। या फिर आरोपी जमानत के बाद कोर्ट नहीं आए, वे फरार हो चुके हैं। 7 फीसदी मामलों में बड़ी कोर्ट का स्टे है। आंकड़ों में क्रिमिनल और सिविल दोनों केस हैं।

राज्य अधिक पेंडिंग केस

उत्तर प्रदेश 790938

महाराष्ट्र 396010

बिहार 381604

बंगाल 260214

कर्नाटक 222587

राज्य कम पेंडिंग केस

असम 54351

झारखंड 52479

हिमाचल प्रदेश 34519

छत्तीसगढ़ 33860

उत्तराखंड 20576

कानून मंत्रालय और नेशनल न्यू डीसीएल डाटा ग्रेड द्वारा किए गए अध्ययन केसों के अदालतों में अधिक समय तक लंबित होने के कई प्रमुख कारण सामने आए हैं इनमें पुलिस से लेकर अदालत तक की भूमिका शामिल है:

1- अधिकतर मामलों में पुलिस चार्जशीट में देरी करती है। कोर्ट में बार-बार जांच का समय बढ़ाने की मांग की जाती है।

2- कई बार चार्जशीट दायर करती है, लेकिन दस्तावेज कोर्ट में जमा नहीं होते।

3- चार्जशीट दायर कर दी जाती है, लेकिन निचली अदालत बार-बार लंबी डेट देती हैं। जिससे आरोप तय होने में समय लग जाता है।

4- महत्वपूर्ण गवाहों को पुलिस कोर्ट में पेश ही नहीं कर पाती।

5- निचले कोर्ट की कार्रवाई पर स्टे दे दिया जाता है। आरोपी बेल पर फरार हो जाते हैं।

6- कभी सरकारी वकील पेश नहीं होता, तो कभी प्राइवेट। जिसके कारण सुनवाई टलती रहती है।

इन केसों में सिविल और आपराधिक दोनों शामिल हैं, अदालतों की बार-बार समझाइस भी बेअसर:

  • मार्च 2013- दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस को कहा था की पुलिस महिला अपराधों को लेकर संवेदनशील बने। ताकि इसमें करवाई और जांच जल्दी हो सके।

  • अगस्त 2013- सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ऐसे केसों की 2-3 महिने मे जांच पूरी कराएं। जल्दी फैसला सुनाए।

  • अगस्त 2018- बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- कोर्ट का कर्तव्य है कि वह ऐसे अपराधों को गंभीरता से ले। और उन्हें समय से निपटाये।

  • सितंबर 2019-सुप्रीम कोर्ट ने कहा था महिलाओं के साथ हुए दुष्कर्मों के केसों में लंबी तारीख के देने से बचना चाहिए।

  • अगस्त 2021-गुवाहाटी कोर्ट ने कहा था कि जो महिलाएं सामने आ रही है। उनको जल्द न्याय दिलाने में पुलिस और कोर्ट संवेदनशील हो।

  • 7 अक्टूबर 2023-दहेज हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया था कि सभी अदालतें ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील हो।

महिलाओं पर हो अपराध NCRB का डाटा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) की वार्षिक रूप से प्रकाशित ‘भारत में अपराध-2019’ (Crime in India-2019) रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी समयावधि में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों में भी 7.3 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है।

महिलाओं पर हो रहे अपराधों के मामले

  • वर्ष 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गए। यह संख्या वर्ष 2018 में दर्ज मामलों की संख्या (3,78,236) से 7.3% अधिक थी। प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सर्वाधिक दर असम में दर्ज की गई।

  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में सर्वाधिक मामले 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' (Cruelty by husband or his relatives) से संबंधित थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में इनकी संख्या 30.9% थी।

  • इसके पश्चात् ‘महिला की शीलता का अपमान करने के उद्देश्य से हमला’ (21.8%), अपहरण (17.9%) और बलात्कार (7.9%) से संबंधित महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों को दर्ज किया गया।

  • NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर अपराध के मामलों की दर 62.4 है। इसकी तुलना में वर्ष 2018 में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर अपराध की दर 58.8 थी।

  • देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों (59,853) की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई। उत्तर प्रदेश में अपराधों की संख्या देश में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों के कुल मामलों का 14.7% है। उत्तर प्रदेश के पश्चात् राजस्थान (41,550 मामले; 10.2%) और महाराष्ट्र (37,144 मामले; 9.2%) का स्थान था।

  • असम में प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 177.8 दर्ज की गई। इस मामले में असम के पश्चात् राजस्थान (110.4) और हरियाणा (108.5) का स्थान आता है।

  • राजस्थान में सर्वाधिक बलात्कार के मामले (5,997) दर्ज किये गए हैं। राजस्थान के पश्चात् उत्तर प्रदेश (3,065) और मध्य प्रदेश (2,485) में बलात्कार के मामलों की संख्या सबसे अधिक थी।

  • प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के बलात्कार से संबंधित मामलों की दर राजस्थान में सर्वाधिक (15.9) थी। इसके पश्चात् केरल (11.1) और हरियाणा (10.9) सर्वाधिक दर वाले राज्य थे।

  • पॉक्सो अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act-POCSO) के तहत बालिकाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई। राज्य में पॉक्सो अधिनियम के तहत बालिकाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या 7,444 थी। इसके बाद महाराष्ट्र (6,402) और मध्य प्रदेश (6,053) का स्थान था।

  • प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज अपराधों की उच्चतम दर सिक्किम (27.1), मध्य प्रदेश (15.1), और हरियाणा (14.6) में दर्ज की गई।

उत्तर प्रदेश में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर दहेज़ के मामलों की दर सर्वाधिक (2.2) थी। उत्तर प्रदेश में दहेज़ के कुल 2,410 मामले दर्ज किये गए। उत्तर प्रदेश के पश्चात् बिहार (1,120) का स्थान था। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में 150 ‘एसिड हमले’ (Acid Attacks) के मामले दर्ज किये गए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में और 36 पश्चिम बंगाल में हुए।

अनुसूचित जाति से संबंधित अपराध के मामले:

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान अनुसूचित जाति (Schedule Cast-SC) के खिलाफ अपराध के रूप में कुल 45,935 मामले दर्ज किये गए।

  • अनुसूचित जाति की प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध की दर वर्ष 2018 की 21.2 से बढ़कर वर्ष 2019 में 22.8 हो गई है। वर्ष 2019 में अनुसूचित जाति के खिलाफ हुए अपराध के कुल मामलों में से 28.9% मामले (13,273) साधारण चोटों से संबंधित थे।

  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कुल 9.0% (4,129) मामले दर्ज किये गए। इनके अलावा अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 7.6% मामले (3,486) बलात्कार से संबंधित थे।

  • उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले (11,829) दर्ज किये गए हैं। यह देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के कुल दर्ज मामलों का 25.8% है। इसके पश्चात् राजस्थान (6,794 मामले; 14.8%) और बिहार (6,544; 14.2%) का स्थान आता है। हालाँकि प्रति लाख जनसंख्या पर ऐसे मामलों की सबसे अधिक दर वाले तीन राज्य राजस्थान (55.6), मध्य प्रदेश (46.7) और बिहार (39.5) थे।

  • राजस्थान में दलित महिलाओं के बलात्कार से संबंधित सर्वाधिक मामले (554) दर्ज किये गए। राजस्थान के पश्चात् उत्तर प्रदेश (537) और मध्यप्रदेश (510) का स्थान था। प्रति लाख अनुसूचित जाति की जनसंख्या पर दलित महिलाओं के बलात्कार के मामलों की दर में केरल सबसे आगे था। केरल में यह दर 4.6 थी। केरल के पश्चात् मध्य प्रदेश (4.5) और राजस्थान (4.5) में यह दर सर्वाधिक  थी।

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