आज संपूर्ण विश्व में मदर्स-डे की धूमधाम से उत्सव मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया और अन्य स्थानों पर 'मां' के ममत्व और त्याग का वंदन किया जा रहा है। कहते हैं मां बनकर ही औरत पूर्णता को प्राप्त करती है। भारत में परिवार को बहुत महत्व दिया जाता है और शायद यही वजह है कि विवाह के बाद हर महिला परिवार को पूर्ण करने के लिए अपनी संतान को जन्म देना चाहती है। लेकिन कई बार कुछ दंपति विभिन्न वजहों से संतान सुख से वंचित रह जाते हैं।
ऐसे कपल्स के समक्ष दो ही ऑप्शन होते हैं- महंगा ट्रीटमेंट या गोद लेना। हेल्थ इंश्योरेंस की कई स्कीम बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन अब तक सरोगेसी ट्रीटमेंट को इंश्योरेंस में शामिल नहीं किया गया था जिसकी वजह से संतान सुख से वंचित मध्यम वर्गीय युगलों के लिए महंगा इलाज करवाना संभव नहीं हो पाता था।
लेकिन मदर्स डे पर एक अच्छी खबर यह कि भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण - इरडा ने ग्राहकों को बड़ी राहत दी है। अब हेल्थ इंश्योरेंस कवर में सरोगेसी भी शामिल होगी। इरडा ने इसके लिए सभी बीमा कंपनियों को निर्देश जारी किया है। इरडा ने कंपनियों को कहा कि वे अपनी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीज के तहत सरोगेसी के खर्चे को भी कवर करें। इस कदम से उन लोगों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, जो बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेसी का विकल्प चुनते हैं।
मदर्स डे पर द मूकनायक ने एक ऐसी मां से बात की जिन्होंने शादी के 14 साल बाद काफी इलाज और मन्नतों बाद पिछले वर्ष संतान सुख प्राप्त किया।
नई दिल्ली में अंबेडकर नगर निवासी 38 वर्षीया अनुपमा ( बदला हुआ नाम) का मानना है कि भारत में बच्चे होना बहुत जरूरी है और अगर घर में बच्चा नहीं होता है तो दोष सबसे ज्यादा महिला को ही दिया जाता है और इससे वह बहुत परेशान रहती है। इनकी शादी 2008 में हुई और विवाह के अगले ही वर्ष से दंपति परिवार बढ़ाने के लिए प्रयासरत थे।
अनुपमा ने अपने निजी जीवन में गुजरी उन सारे पहलुओं, अपमान और दर्द के बारे में बताया है जो बच्चा नहीं होने की वजह से किसी महिला को सामना करना पड़ता है। वे कहती हैं कि बच्चा न होने की कोई भी वजह हो, सामान्यतः इसका दोष पत्नी पर ही डाला जाता है, जो अत्यंत न्यायहीन है। ये समाज के परिवेश से ठीक नहीं है और हमारे समाज को इसे बदलने की जरूरत है।
"जब मेरा इलाज चल रहा था मेरे पति तीन-तीन जगह काम करते थे। रात को भी वह काम पर जाते थे। क्योंकि इलाज के टेस्ट, दवाइयां इतनी महंगी थी, कि एक वेतन से वह पूरी नहीं हो पा रही थी। फिर उस पर हर सात आठ महीनों में एक डॉक्टर नहीं तो दूसरा डॉक्टर बदलते रहते थे। जो बोलता था उसी की बात मानकर हम दूसरे डॉक्टर के पास चले जाते थे। उसमें बहुत पैसा खर्च होता था।"
आगे अनुपमा बताती हैं कि दवाइयां इतनी होती थी, कि इसके साइड इफेक्ट्स दिखने लगे। मेरा शरीर खराब होने लगा था फिर साल 2021 में एक डॉक्टर से बात हुई उसके इलाज से मुझे बहुत फायदा हुआ और 2022 में मेरा बेटा हुआ। थोड़ी परेशानी तो हुई परंतु सब कुछ ठीक हो गया। एक मां बच्चे को लिए बहुत कुछ करती है मैंने 14 साल तक बहुत कुछ देखा है तब जाकर बच्चे की शक्ल देखी है।"
अनुपमा कहती हैं कि जब उसने फर्टीलिटी ट्रीटमेंट करवाया था तब यह सभी इलाज हेल्थ इंश्योरेंस में कवर नहीं होता था। यदि इसका भी कवर मिल जाता तो हमें आर्थिक रूप से बहुत सहायता मिल जाती और हमारे इतने पैसे खर्च नहीं होते। लेकिन अब अगर ऐसा हो रहा है तो यह उन सभी कपल्स को बहुत फायदा होगा जो मां-बाप का बनने का सपना देखते हैं लेकिन मंहगा इलाज का वहन नहीं कर पाते हैं।
इरडा द्वारा जारी निर्देश में कहा गया, "सभी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज को सरोगेरी सहित बांझपन से संबंधित उपचार की लागत को कवर करना चाहिए।" इसका मतलब यह है कि हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज में अब सरोगेसी से जुड़े खर्चों को कवर किया जाएगा। इसमें सरोगेट मां का मेडिकल ट्रीटमेंट, डिलीवरी और डिलीवरी के बाद की देखभाल का खर्चा शामिल है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राघनल इंश्योरेंस ब्रोकर्स के डायरेक्टर और प्रिंसिपल ऑफिसर अमित गोयल ने कहा, 'बीमा कंपनियों को सरोगेसी और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की बढ़ती डिमांड के महत्व को पहचानना चाहिए। इरडा द्वारा जारी सर्कुलर एक सकारात्मक कदम है।' उन्होंने कहा, 'हमारी कंपनी का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होगा कि सरोगेसी प्रोसेस में शामिल सभी पार्टीज गर्भावस्था के दौरान पैदा होने वाली किसी भी अप्रत्याशित चिकित्सा जटिलताओं से सुरक्षित रहें।'
सरोगेसी एक ऐसी मेडिकल प्रोसेस हैं, जहां एक महिला किसी दूसरे व्यक्ति या कपल के लिए गर्भधारण करने के लिए सहमत होती हैं। ये ऐसे कपल होते हैं, जो खुद बच्चा पैदा नहीं कर सकते। यह प्रोसेस बीते कुछ वर्षों से काफी लोकप्रिय हुई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बड़ी संख्या में कपल्स फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हालांकि, सरोगेसी एक महंगी प्रक्रिया हो सकती है। कई कपल्स के लिए इस मेडिकल ट्रीटमेंट की लागत सरोगेसी कराने में एक बाधा हो सकती है।
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज के तहत सरोगेसी को शामिल करने के इरडा के कदम से यह प्रोसेस किफायती बनेगी। इससे उन कपल्स को काफी फायदा होगा, जो सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करना चाहते हैं।
द मूकनायक ने इंश्योरेंस पर डॉक्टर सुरभि से बात की। डॉ. सुरभि एक स्त्री रोग विशेषज्ञ (एमबीबीएस और एमएस) हैं और दिल्ली स्थित सच्ची सहेली नामक गैर-लाभकारी संगठन की संस्थापक भी हैं।
वह कहती है कि,"यह बहुत सकारात्मक खबर है वह भी आज मदर्स-डे के दिन यह उन के लिए भी है, जो अब तक मां नहीं बनी है और बनने के लिए संघर्ष कर रही हैं। क्योंकि किसी भी घर में बच्चा नहीं होने से दंपति स्वयं को अधूरा महसूस करते हैं। बच्चा ना होने के लिए हमेशा महिला को ही जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन ऐसा नहीं होता है 33% महिलाओं में भी कमी होती है वहीं 33% पुरुषों में भी कमी होती है। लेकिन हमारे समाज में सिर्फ महिलाओं को ही उसका जिम्मेदार माना जाता हैं."
सुरभि कहती हैं कि फर्टीलिटी ट्रीटमेंट मंहगा होता है। मेरे पास ऐसे कई कपल आते हैं जो पैसे की वजह से बीच में ही अपना इलाज छोड़ देते हैं। वह बोलते हैं कि हम पैसा आने पर फिर से इलाज करवाएंगे। क्योंकि टेस्ट और ट्रीटमेन्ट अभी इतने महंगे होते हैं कि उनके लिए इसको कवर करना बहुत मुश्किल हो जाता है और जितनी देरी से इलाज शुरू होता है उतना ही देरी उनके मां बाप बनने में भी होती जाती है। और उनके माता-पिता बनने का सपना भी धुंधला होता जाता है। क्योंकि रिप्रोडक्शन के लिए उम्र महत्वपूर्ण होती है।
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