बिहार: आधी दुनिया की हो बराबर की भागीदारी मांग के साथ स्त्रीवादियों ने पूर्व मुख्यमंत्री को सौंपा प्रस्ताव पत्र

जेंडर-जस्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड, आयोग-अकादमियों में भागीदारी व दलित महिला आयोग की मांग
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को प्रस्ताव पत्र सौंपते सदस्य
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को प्रस्ताव पत्र सौंपते सदस्य
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पटना। स्त्रीवादी व अम्बेडकरवादी संगठनों के संयुक्त प्रतिनिधि मण्डल ने गत शनिवार को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी से मुलाकात कर जेंडर जस्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड, दलित महिला आयोग, अन्य आयोगों व अकादमियों में भागीदारी सहित 10 सूत्रीय प्रस्ताव पत्र सौंपा। प्रतिनिधि मण्डल में वरिष्ठ साहित्यकार सुशीला टाकभौरे और स्त्रीकाल के संस्थापक संजीव चंदन शामिल थे।

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में रहने वाली सुशीला टाकभौरे पिछले दिनों बिहार राजभाषा पुरस्कार के तहत बीपी मंडल सम्मान प्राप्त करने के लिए पटना में थीं। उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों 31 जुलाई को सम्मानित किया गया था।

चंदन ने बताया कि बिहार महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनी सरबत फातमी ने आयोगों और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी के संघर्ष की बात कही है, जबकि इस सम्बन्ध में महिलाओं का अभियान पिछले कुछ महीनों से जारी है। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में गत 3 अगस्त, 2022 को इकट्ठा हुए स्त्रीवादियों और स्त्रीवादी व अम्बेडकरवादी संगठनों ने प्रधानमंत्री को मांग पत्र भेजा था। इसीक्रम में हाल में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से भी मुलाकात की थी। बिहार विधानसभा में भी इनमें से कुछ मांगें विधायक इंजीनियर ललन कुमार ने उठाई थीं।

चंदन के अनुसार लोकतांत्रिक राज्य के निर्माण के लिए स्त्रीवादी नागरिकों द्वारा पारित राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक संकल्प राजनीतिक दलों को उनके अपने एजेंडे में शामिल करने व जिन दलों की सरकारें हैं। उन्हें अपने यहाँ लागू करने के लिए सौंपा जाना है। इस आशय का मेल कांग्रेस, बीजेपी, सीपीआई, सीपीएआईएम, सीपीआईएमएल, जदयू, राजद, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस सहित कई दलों के अध्यक्षों को व राहुल गांधी, नीतीश कुमार, डी राजा, सीताराम येचुरी आदि नेताओं को भेजा गया है।

प्रस्ताव के अहम बिंदु

1. सरकार से निवेदन है कि जिस तरह से मध्यवर्ती और प्रांतीय विधान मंडल में, स्थानीय स्वराज संस्थाओं में, स्त्री प्रतिनिधि ली जाती है, उसी तरह से अस्पृश्य मानी गई महिलाओं की सर्वांगीण उन्नति के लिए उनके प्रतिनिधि उक्त उल्लिखित सारे स्थानों पर आरक्षित स्थान के माध्यम से रखे जाने की व्यवस्था करें। नया सन्दर्भ देते हुए प्रस्ताव है कि महिला आरक्षण पारित हो, जिसमें ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण कोटा तय हो। ऐतिहासिक तौर पर 1942 की उक्त परिषद को ही महिला आरक्षण का प्रथम प्रस्तावक माना जाए।

2. अखिल भारतीय दलित महिला फेडरेशन की स्थापना करते हुए उसके खर्च के लिए आवश्यक कोष बनाया जाए।“ दलित व आदिवासी आदि महिला आयोग की स्थापना की जाए। महिला आयोगों को स्वायत्तता हो और दंडात्मक अधिकार भी मिले। आयोग में अनिवार्य रूप से आरक्षण की माध्यम से एससी/एसटी, ओबीसी, पसमांदा सदस्यों को नामित किया जाए।

3. राज्यों और केंद्र के आयोगों, अकादमियों (साहित्य-संस्कृति आदि सहित सभी अकादमियों ) में दलित, आदिवासी, ओबीसी, पसमांदा महिलाओं की भागीदारी आरक्षण सिद्धांत के साथ सुनिश्चित हो।

4. केंद्र एवं सभी राज्यों में दलित साहित्य अकादमी की स्थापना की जाए।

5. स्त्री-पुरूष व अन्य वर्ग की सामाजिक इकाइयों में समानता को सुनिश्चित करते हुए पूरे देश के लिए जेंडर जस्ट कॉमन सिविल कोड बने।

6. सरकार के आर्थिक प्रयोजनों में दलित, आदिवासी, ओबीसी, पसमांदा महिलाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित हो, जैसे ठेकेदारी आदि में।

7. शिक्षा और स्वास्थ्य का सरकारीकरण व महिलाओं की शत प्रतिशत शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया जाए। नागपुर अधिवेशन के छठे प्रस्ताव के साथ यह प्रस्ताव पढ़ा जाए। आज भी कई वंचित समुदायों की महिलाओं का साक्षरता दर 3 से 10 प्रतिशत है।

8. भूमि का राष्ट्रीयकरण सुनिश्चित किया जाए।

9. देश भर में स्वच्छ सार्वजनिक प्रसाधन गृह का निर्माण और संचालन किया जाए, ताकि महिलाओं की सार्वजनिक जगहों पर भागीदारी बढ़े।

10. बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के लेखन और भाषण में उनके अपने पत्रों, भाषणों, लेखों, किताबों के अलावा अखबारों की रिपोर्टिंग भी उनके वांग्मय में शामिल किए गये हैं। उन्हें वांग्मय से हटाया जाना चाहिए। अखबारों की रिपोर्टिंग संसद की पटल पर भी ऑथेंटिक नहीं माने जाते हैं। इसके लिए विचार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बने।

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