नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गत गुरुवार (26 अप्रैल) को कहा कि महिला का स्त्रीधन पूरी तरह से उसकी संपत्ति है। उसे अधिकार है कि वह उसका किस तरह के इस्तेमाल करती है। अदालत ने साफ किया कि स्त्रीधन में पति को हिस्सेदार नहीं बनाया जा सकता है, लेकिन अगर किसी तरह की परेशानी आती है तो पति को अपनी पत्नी की इजाजत से इसके इस्तेमाल की मंजूरी है। अदालत का ये फैसला तब आया है, जब मंगलसूत्र और स्त्रीधन को लेकर खूब चर्चा हो रही है। इधर, महिलाओं ने इस फैसले की खुले मन से सराहना की है।
महिला ने दावा किया था कि उसकी शादी के समय उसके परिवार ने 89 सोने के सिक्के उपहार में दिए थे। शादी के बाद उसके पिता ने उसके पति को दो लाख रुपये का चैक भी दिया था। महिला के मुताबिक शादी की पहली रात पति ने उसके सारे आभूषण ले लिए और सुरक्षित रखने के बहाने से अपनी मां को दे दिए। महिला ने आरोप लगाया कि पति और उसकी मां ने अपने कर्ज को चुकाने में उसके सारे जेवर का दुरुपयोग किया। फैमिली कोर्ट ने 2011 में कहा था कि पति और उसकी मां ने वास्तव में अपीलकर्ता महिला के सोने के आभूषण का दुरुपयोग किया और इसलिए वह इस नुकसान की भरपाई की हकदार है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा- "यह महिला की पूर्ण संपत्ति है और उसे अपने इच्छानुसार बेचने या रखने का पूरा अधिकार है। पति का उसकी इस संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह संकट के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसका दायित्व है कि वह उसी संपत्ति या उसके मूल्य को अपनी पत्नी को वापस कर दे। इसलिए, स्त्रीधन पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती है और पति के पास इसका स्वामित्व या स्वतंत्र अधिकार नहीं है।"
अदालत ने यह भी कहा कि अगर स्त्रीधन का बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है तो पति और उसके परिवार के सदस्यों पर IPC की धारा 406 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में फैसला अपराधिक मामलों की तरह ठोस सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात की संभावना के आधार पर किया जाना चाहिए कि पत्नी का दावा ज्यादा मजबूत है।
हिंदू धर्म में इस्तेमाल होने वाला स्त्रीधन एक कानूनी टर्म है। आसान भाषा में इसका मतलब स्त्री यानी महिला के धन से है। फिर वो पैसा, जमीन के कागज समेत कोई भी चीज हो जाती है। स्त्रीधन में उन सभी चीजों को शामिल किया जाता है, जो उसे बचपन से मिलती हैं। लोगों को लगता है कि शादी के दौरान मिलने वाली चीजें ही स्त्रीधन हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। इसमें छोटे-मोट गिफ्ट्स से लेकर सोना और सेविंग्स को भी शामिल किया जाता है। महिला को मिली प्रॉपर्टी भी इसका हिस्सा होती है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 27 के तहत हर हिंदू महिला को स्त्रीधन का अधिकार मिला हुआ है। कानून के तहत महिला के पास इस बात का पूरा अधिकार है कि वह अपनी मर्जी से अपने स्त्रीधन को बेच सकती है या फिर किसी को दान कर सकती है. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 में भी महिलाओं स्त्रीधन का अधिकार दिया गया है। घरेलू हिंसा का शिकार होने पर वे स्त्रीधन वापस ले सकती हैं।
आमतौर पर देखने को मिलता है कि जब किसी लड़की की शादी होती है तो उसके ससुराल वाले गहनों या उसे मिले गिफ्ट्स को रख लेते हैं। उसे सिर्फ मंगलसूत्र पहनने के लिए दे दिया जाता है। कानूनी टर्म में ससुराल में गहने रखने वाला व्यक्ति स्त्रीधन का ट्रस्टी कहलाता है। वहीं, अगर महिला जब अपने स्त्रीधन को मांगती है और उसे देने से इनकार किया जाता है तो उसके पास कानूनी विकल्प भी मौजूद है।
दहेज पूरी तरह से समाज की गंदी सोच है। लेकिन फिर भी हमारे समाज में दहेज दिया जाता है। और लिया जाता है। ऐसे ही दहेज उस चीज को माना जाता है जो मांगस्वरूप शादीशुदा जोड़े को दिया जाता है। दूसरी ओर स्त्रीधन में मिलने वाली चीजें किसी महिला को गिफ्ट में दी गई चीज होती है। ऐसे में अगर स्त्रीधन को ससुराल के लोग अपने कब्जे में रख लेते हैं, तो महिला को पूरा अधिकार है कि वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है।
स्त्रीधन से संबंधित यह मामला पहले 2011 में केरल की फैमिली कोर्ट में चला, वहां महिला का दावा सही साबित हुआ, लेकिन इसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को पलट दिया। महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, जहां अदालत ने उसका दावा सही पाया और कहा कि स्त्रीधन पत्नी और पति की संयुक्त संपत्ति नहीं है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.