नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक है तो वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है। अदालत ने एक पति को आरोपों से बरी करते हुए ये टिप्पणी की है। हालाँकि, कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर इस फैसले को गलत बताया जा रहा है. वहीँ, कुछ लोग इसे जायज बता रहे हैं.
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि, हमारे देश में अभी तक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। इसलिए, इस मामले में आरोपी को आईपीसी की धारा 377 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इस मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि क्योंकि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाएं अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं और इन पर कोई फैसला नहीं आया है, इसलिए अभी के प्रसंग में अगर पत्नी की उम्र 18 साल या उससे अधिक है, तो मैरिटल रेप के लिए कोई दंड नहीं है। इसे तब तक नहीं बदला जा सकता है, जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस पर कोई फैसला न आ जाए।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक स्टेटमेंट का सपोर्ट भी किया है। इसके अनुसार, शादीशुदा जिंदगी में अप्राकृतिक अपराध यानी अननेचुरल ऑफेन्स के लिए कोई जगह नहीं है। यह टिप्पणी आईपीसी की धारा 377 के अन्तर्गत की गई थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से यह टिप्पणी उस याचिका पर फैसला सुनाते हुए की गई जिसमें शिकायत करते वाली महिला ने यह आरोप लगाया था कि उसकी शादी एक अब्युसिब रिलेशनशिप थी, जिसमें उसने पति ने उसके साथ फिजिकल और वर्बल अब्यूस किया था। जिसमें अप्राकृतिक संबंध भी शामिल थे। इस मामले में आरोपी को क्रूरता और चोट पहुंचाने के आरोपों से जुड़ी धाराओं में दोषी ठहराया गया लेकिन धारा 377 के आरोपों से बरी कर दिया गया।
इस मामले पर द मूकनायक ने दिल्ली में रहने वाली एक महिला सुजाता (बदला हुआ नाम) से बात की। सुजाता दिल्ली के पालम इलाके में रहती हैं, इनके दो बच्चे हैं। वह बताती है कि "इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला यह पूरी तरह से गलत है। जब तक पत्नी किसी भी चीज के लिए तैयार ना हो। तब तक पति को उसके फैसले का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि हर तरह से यातनाएं सिर्फ महिलाएं ही सहन करती हैं। प्यार से बनाया हुआ रिश्ता हमेशा खुशी देता है। और जबरदस्ती बनाया रिश्ता हमेशा दर्द देता है। इसलिए रेप-रेप होता है। घरेलू हिंसा अलग होती है। इसको घरेलू हिंसा के अंतर्गत रखना सही बात नहीं है। जब भी घर में या बाहर महिलाओं के साथ जबरदस्ती की जाती है तो वह रेप ही होता है। तो शादी के बाद भी जबरदस्ती करना रेप ही होना चाहिए।"
मई 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप को क्राइम घोषित करने से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई हुई थी। उस समय हाईकोर्ट ने 2 जजों ने इस मामले में अलग-अलग फैसला सुनाया था और एक न्यायाधीश ने मैरिटल रेप को अपराध बताया था वहीं, दूसरे न्यायाधीश ने इसके उलट राय दी थी। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले से जुड़ी कई याचिकाएं पेंडिंग हैं।
पत्नी की बिना सहमति के अगर पति जबरन उससे शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) इसे अपराध नहीं मानती है। IPC की धारा 375 में रेप की परिभाषा दी गई है। धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि पति अगर अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध या किसी भी तरह का सेक्सुअल एक्ट करता है तो यह रेप नहीं है। अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो तो इसे रेप की श्रेणी में रखा जाएगा। साफ तौर पर मैरिटल रेप का जिक्र आईपीसी में नहीं हैं।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करता है। इसके अनुसार पति पत्नी के बीच संभोग कोई बलात्कार नहीं है अगर पत्नी 18 साल की उम्र से कम नहीं है। 18 साल से कम उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार है फिर चाहे वो पत्नी ही क्यों न हो।
इससे साफ है कि वैवाहिक बलात्कार को लेकर देश में कोई स्पष्ट कानून नहीं है। इसे सीधे तौर पर बलात्कार नहीं कहा गया है। हालांकि, भारत में इसे घरेलू हिंसा के अंतर्गत रखा गया है। भारतीय दंड संहिता 1960 की धारा 498 A के अनुसार वैवाहिक बलात्कार को क्रूरता माना गया है। हालांकि क्रूरता को यहां भी साफ तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है। यहां शारीरिक और मानसिक क्रूरता लिखा गया है, और अपराधी को 3 साल सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
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