उत्तर प्रदेश। यूपी के अलीगढ़ जिले में स्वास्थ्य विभाग की बदहाली और भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाली खबर सामने आई है। मोची का काम करने वाली गरीब दलित महिला की बेटी को प्रसव की समस्या हुई तो वह इलाज के लिए सीएचसी पहुंच गई। आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने प्रसव के लिए गर्भवती महिला से एक हजार रुपए की डिमांड रख दी। डिमांड पूरी नहीं होने पर प्रसूता का इलाज करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद परिजनों को अस्पताल के बगल में ही खाली प्लॉट में झाड़ियों के पीछे ले जाकर प्रसूता की डिलीवरी कराने पर मजबूर होना पड़ा। इस मामले का वीडियो वायरल है। सीएमओ ने डिप्टी सीएमओ को जांच सौंपी है।
अलीगढ़ के इगलास निवासी रामश्री देवी ने बताया, "मैं जूता बनाने का काम करती हूँ। 19 मई की सुबह मेरी बेटी सुमन को प्रसव पीड़ा हुई, जिसके बाद हम बेटी को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इगलास गए थे। वहां स्टॉफ ने हमसे एक हजार रुपये मांगे। मैंने मेडिकल स्टाफ से रुपए नहीं होने की बात कही। इसके बाद उन्होंने मेरी बेटी को अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया।"
जानकारी के मुताबिक इसके बाद जब महिला अपनी बेटी सुमन को अस्पताल के बाहर ले जाने लगी तो उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। किसी तरह महिलाओं ने अस्पताल के बाहर झाड़ी में चारों तरफ साड़ी की दीवार बनाकर प्रसव कराया। सुमन ने एक बालक को जन्म दिया। मामले को लेकर कुछ लोगों ने इगलास नगर पंचायत के चेयरमैन कमलेश शर्मा से शिकायत की। नगर पंचायत चेयरमैन के भतीजे ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधीक्षक को फोन कर उन्हें तत्काल कार्रवाई को कहा। इसके बाद एंबुलेंस महिला के पास पहुंची, हालांकि सरकारी मदद पहुंचने तक महिला का प्रसव हो चुका था। महिला को मोहनलाल गौतम महिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है।
मामले के तूल पकड़ने के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी नीरज त्यागी ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. रोहित भाटी ने बताया कि कर्मचारियों की लापरवाही का मामला सामने आया है। महिला की डिलीवरी झाड़ियों में कराई गई, जिसके बाद उसे जिला महिला अस्पताल भेजा गया। डॉ. रोहित भाटी ने बताया कि मामले की जांच डिप्टी सीएमओ राहुल शर्मा कर रहे हैं।
लखनऊ में बीकेटी के महोना के करौंदी गांव के रहने वाले वीनस की पत्नी सीमा ने अस्पताल और यहां की डॉ. गायत्री सिंह के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत में बताया है कि वह गरीब और दलित महिला है। उसके दो बच्चे हैं। इनकी अच्छे से परवरिश के लिए उसने वर्ष 2017 में 10 हजार रुपये खर्च कर अस्पताल से नसबंदी कराई। इसके बाद भी गर्भ ठहरने की आशंका में नौ मार्च 2021 को उसने अल्ट्रासाउंड कराया तो वह गर्भवती निकली। इस पर जब अस्पताल में संपर्क किया तो दुर्व्यवहार कर भगा दिया गया। 12 अगस्त 2021 को उसे तीसरा बच्चा हुआ। मामले में आयोग के कई नोटिस पर भी अस्पताल प्रबंधन ने पक्ष नहीं रखा।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय ने एक पक्षीय आदेश में कहा कि परिवादिनी गरीब महिला है। तीन बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा पर खर्च करने में वह असमर्थ है। तीसरा बच्चा अस्पताल और डॉक्टर की नसबंदी ऑपरेशन में लापरवाही से पैदा हुआ। जिस वजह से महिला ने नसबंदी कराई, वह उद्देश्य भी तीसरे बच्चे के जन्म से फेल हो गया। ऐसे में उपरोक्त राशि सहित विधिक खर्च के 5000 रुपये भी देने होंगे।
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