नई दिल्ली। चर्चित बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को रद्द करते हुए सभी दोषियों को वापस जेल भेजने का आदेश दिया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 11 में से 9 दोषी लापता हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को गत सोमवार को खारिज कर दिया। इसके साथ ही सभी दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना के तुरंत बाद, बिलकिस और उनके परिवार ने 28 फरवरी, 2002 को रणधीकपुर में अपना घर छोड़ दिया था। 3 मार्च 2002 को दाहोद के लिमखेड़ा तालुका में भीड़ ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया और उसकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी। छह के शव कभी नहीं मिले। 21 जनवरी, 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साल 2022 में 15 साल से अधिक की सजा काट चुके एक सजायाफ्ता ने गुजरात हाईकोर्ट में रीमिशन के लिए याचिका दायर की थी। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा इस मामले में रीमिशन का अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास है क्योंकि केस वहीं चल रहा था। सजायाफ्ता ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को इस मामले में विचार करने का आदेश दिया। गुजरात सरकार ने एक समिति का गठन किया। सुजल मायात्रा की अध्यक्षता में समिति ने सभी दोषियों को रिहा करने का फैसला किया। 15 अगस्त 2022 को सभी दोषियों को रिहा कर दिया गया था।
गुजरात सरकार के फैसले के बाद बाहर आये आरोपियों का फूल-माले पहनाकर स्वागत किया गया था। उन्हें मिठाई खिलाई गई थी। लेकिन घर वापसी के बाद यह सभी रहस्यमय हालात में लापता हो गए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,रंधिकपुर और सिंगवाड गांवों में दोषियों के घरों पर ताले लगे हैं और पहरे पर एक पुलिसकर्मी तैनात है। बिलकिस बानो के 11 दोषियों में से कम से कम 9 इन्हीं गावों में रहते हैं। अब वे सभी "लापता" बताए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ घंटों बाद, कोई भी दोषी अपने घर पर नहीं मिला और उनके रिश्तेदार भी इस बात को लेकर खामोश हैं कि आखिर वे नौ लोग कहां गए। दोनों गांव अगल-बगल स्थित हैं और ग्रामीण दोनों नामों का परस्पर इस्तेमाल करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, दोषियों में से एक गोविंद नाई (55) के पिता अखामभाई चतुरभाई रावल (87) ने दावा किया कि उनका बेटा निर्दोष था। उन्होंने सजा के लिए "कांग्रेस के राजनीतिक प्रतिशोध" को दोषी ठहराया। रावल ने कहा कि गोविंद ने "एक सप्ताह पहले" घर छोड़ दिया था। एक स्थानीय पुलिसकर्मी ने बताया कि गोविंद शनिवार (6 जनवरी) को घर से निकला था। उनके बीमार माता-पिता ने इस बात पर जोर दिया कि वे एक "हिंदू आस्था का पालन करने वाला परिवार है, जो अपराध से दूर रहता है।" बिलकिस मामले में उनके बेटे के साथ-साथ अखामभाई के भाई जशवंत नाई भी दोषी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अखामभाई ने कहा, “मैं चाहता हूं और प्रार्थना करता हूं कि उन्हें (गोविंद को) अयोध्या में (राम) मंदिर प्रतिष्ठान में सेवा करने का मौका मिले। कुछ न करने और रोज इधर-उधर घूमने से बेहतर है सेवा करना। (जेल से) रिहा होने के बाद से वह कुछ नहीं कर पाया है। दोबारा जेल जाना कोई बड़ी बात नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि वह गैरकानूनी तरीके से जेल से बाहर आए हों। कानूनी प्रक्रिया के तहत उन्हें रिहा किया गया और अब कानून ने उन्हें वापस जाने के लिए कहा है, इसलिए वह वापस जाएंगे। उन्होंने 20 साल जेल में बिताए इसलिए यह कोई नई बात नहीं है।'' सोमवार को न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया और पूछा कि क्या ‘‘महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट की अनुमति है’’, चाहे वह महिला किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो। घटना के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान बलात्कार किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं, दोषियों के सभी आवासों में से, गोविंद का आवास वहां से सबसे दूर है जहां 2002 में बिलकिस रहती थीं। गोविंद का एक मंजिला घर, उसके माता-पिता के कच्चे घर के बगल में, बाहर से बंद था और रणधीकपुर पुलिस स्टेशन का एक कांस्टेबल पहरा दे रहा था। एक अन्य दोषी, राधेश्याम शाह, "पिछले 15 महीनों से" घर नहीं आया है। उसके पिता भगवानदास शाह ने यह जानकारी दी। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि पड़ोसी और गांव के व्यस्त चौराहे के दुकानदार इसकी पुष्टि करते हैं कि रविवार तक लगभग सभी दोषियों को सार्वजनिक रूप से देखा गया था, जिनमें राधेश्याम भी शामिल था। भगवानदास ने दावा किया कि वह "नहीं जानता कि राधेश्याम कहां है... वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ गया था"। उसके भाई आशीष शाह ने फैसले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्हें जल्दबाजी में खाने की चीजों और कपड़ों के साथ एक कैरी बैग पैक करते देखा गया। उन्होंने कहा, “अभी फैसला आया है, हम देखेंगे कि क्या करना है। हमने अभी तक अपने वकीलों से बात नहीं की है।'' अधिकांश दुकानदार चुप्पी साधे रहे और दोषियों या फैसले पर टिप्पणी करने से बचते रहे। दोषियों के ठिकाने के बारे में पूछे जाने पर एक ग्रामीण ने कहा, “अब आप उन्हें नहीं ढूंढ पाएंगे। वे सभी अपने घरों में ताला लगाकर चले गए।” इनमें से प्रत्येक बंद घर के बाहर एक अकेला कांस्टेबल तैनात है, जो सोमवार के फैसले के आलोक में पुलिस बंदोबस्त का एक हिस्सा है।
21 जनवरी 2008 को मुंबई की सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने गर्भवती महिला से रेप और हत्या के आरोप में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा दी थी। हालांकि सात लोगों को सबूत न होने की वजह से छोड़ दिया गया। इनमें पांच पुलिसवाले और दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन पर आरोपियों को बचाने और सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था। एक दोषी की ट्रायल के दौरान मौत हो गई थी। अतः कुल 10 लॉगों को उम्रकैद हुई थी। इन्हें ही गुजरात सरकार ने रिहा किया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब इनकी गिरफ्तारी की कवायद शुरू हुई तो इनमें 9 लोग अपने घरों पर मौजूद नहीं है।
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