नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों को उनकी कैद के दौरान दी गई परोल पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा है कि अपराध की गंभीरता पर राज्य सरकार की ओर से विचार किया जा सकता है। गर्भवती महिला से गैंगरेप किया गया कई लोगों की हत्या कर दी गई।
अदालत ने कहा कि क्या आपने विवेक का इस्तेमाल किया। किस आधार पर सजा में छूट का फैसला किया गया। अदालत ने यह भी कहा कि मामला गैंग रेप पीड़िता का है, कल किसी और का केस हो सकता है। सरकार सजा में छूट का कारण नहीं बताती है तो फिर हमें खुद निष्कर्ष निकालना होगा।
बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 मई को अंतिम सुनवाई करेगा।कोर्ट में मंगलवार (18 अप्रैल) को गुजरात सरकार ने रिहाई से जुड़ी फ़ाइल दिखाने के आदेश का विरोध किया. राज्य सरकार ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर ही रिहाई हुई है।
सरकार ने अपराधियों की फाइल दिखाने से किया इनकार
केंद्र और गुजरात की सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी देने में आनाकानी कर रही है। टॉप कोर्ट ने बीजेपी की दोनों सरकारों से कहा था कि वो दोषियों की रिहाई की फाइल उनके सामने पेश करे। लेकिन सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल फाइल लेकर नहीं पहुंचे। अदालत ने जब अवमानना की चेतावनी दी तो उनका कहना था कि वो सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देंगे जिसके तहत केंद्र और गुजरात की सरकार से दोषियों की रिहाई की फाइल अदालत में पेश करने को कहा गया है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल गुजरात और केंद्र दोनों सरकारों की तरफ से पेश हुए।
सुप्रीम कोर्ट के तेवर उस समय बेहद तल्ख हो गए जब एएसजी राजू दोषियों की रिहाई की फाइल लेकर नहीं आए। जस्टिस केएम जोसेफ का कहना था कि आपको हमें फाइल दिखाने में क्या दिक्कत है। आपने हमारे फैसले के खिलाफ रिव्यू भी दाखिल नहीं किया। आपकी ये हरकत अवमानना की कैटेगरी में आती है। हम आपसे फाइल मांग रहे हैं और आप लगातार हीलाहवाली कर रहे हैं। ये रवैया बिलकुल ठीक नहीं है। जस्टिस जोसेफ का कहना था कि अगर आप हमें फाइल दिखाने का कोई वाजिब कारण नहीं बताएंगे तो हम अपने हिसाब से आकलन कर लेंगे।
सुनवाई को टालने की कोशिश
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच के सामने बिलकिस मामले की सुनवाई हुई। दोनों जजों ने सरकार की हीलाहवाली को लेकर कई बार एतराज जताया। जस्टिस बीवी नागरत्ना का तो यहां तक कहना था कि मामले की सुनवाई को टालने की कोशिश की जा रही है। एक तारीख पर एक दोषी अपना जवाब दाखिल करता है तो दूसरा दोषी अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए दूसरी तारीख की मांग कर देता है। उनका कहना था कि ऐसे ही चलता रहा तो मामले की सुनवाई पूरी होने में लंबा अरसा लगेगा। दोषियों का ये बर्ताव अदालत को खासा खराब लगा।
कोर्ट की अहम टिप्पणी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस केम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सरकार के फैसले पर तीखी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती’, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती.
अदालत ने कहा कि जब ऐसे जघन्य अपराध जो कि समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं, उसमें किसी भी शक्ति का इस्तेमाल करते समय जनता के हित को दिमाग में रखना चाहिए है। कोर्ट ने कहा केंद्र सरकार ने राज्य के फैसले के साथ सहमति व्यक्त की है तो इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य सरकार को अपना दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है.
जस्टिस केम जोसेफ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज बिलकिस बानो है. कल आप और मुझमें से कोई भी हो सकता है. ऐसे में तय मानक होने चाहिए हैं. आप हमें कारण नहीं देते हैं तो हम अपना निष्कर्ष निकाल लेंगे.
गंभीरता से विचार करना चाहिए था सरकार को
दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली 27 मार्च की याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को अपराध की गंभीरता पर विचार करना चाहिए था। इस बीच, केंद्र और गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि वे उसके 27 मार्च के आदेश की समीक्षा के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। जिसमें दोषियों को छूट देने की मूल फाइलों के साथ तैयार रहने को कहा गया है। पीठ अब इस मामले की सुनवाई 2 मई को करेगी और गुजरात सरकार द्वारा दाखिल की जाने वाली प्रस्तावित पुनर्विचार याचिका पर भी फैसला करेगी।
मामला क्या है ?
बता दें कि गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आगजनी की घटना के बाद दंगे भड़क उठे थे। इस दौरान साल 2002 में बिलकिस के साथ गैंगरेप किया गया था। साथ ही उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में कोर्ट ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद से सभी 11 दोषी जेल में बंद थे और पिछले साल 15 अगस्त को सभी को रिहा कर दिया गया था। इसी रिहाई को कोर्ट में चुनौती दी गई है।
भयानक था अपराध, लेकिन...'
पीठ ने कहा कि एक झटके में 15 जिंदगियां बर्बाद हो गईं। जिस तरह से अपराध किया गया वह भयानक है। उम्रकैद के दौरान भी इनमें से हर दोषी को 1000 दिन से अधिक का पैरोल मिला है। एक को तो 1500 दिन। कोर्ट ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि जब आप शक्ति का प्रयोग करते हैं तो उसे जनता की भलाई के लिए होना चाहिए। आप जो भी हों, आप कितने भी ऊंचे या बड़े क्यों न हों लेकिन आपका काम विवेकपूर्ण और तर्क सम्मत होना चाहिए। यह जनता की भलाई के लिए होना चाहिए। बिलकिस बानो की याचिका के मुताबिक तो यह एक समुदाय और समाज के खिलाफ अपराध है। उनकी रिहाई से आप क्या संदेश दे रहे हैं? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा कि आज बिलकिस है कल कोई और हो सकता है। राज्य को समाज की भलाई के लिए कदम उठाना चाहिए।
विपक्ष भी हुआ हमलावर
इस बीच इस मामले में विपक्ष का भी बयान सामने आने लगा है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 लोगों को रिहा करने के मामले को चुनौती दी। जिन्हें बलात्कार और बलात्कार के दोषी ठहराया गया था। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, “केंद्र और गुजरात सरकार की ओर से देरी की रणनीति अपनाई गई. वे स्पष्ट रूप से अवमानना कर रहे थे क्योंकि उन्होंने फाइलें (रिहाई के संबंध में) पेश नहीं की।
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