मैटरनिटी लीव पर एम्पलाई से रखें सहानुभूति: बॉम्बे हाई कोर्ट

गर्भावस्था के दौरान मह‍िलाएं मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव की सुव‍िधा दी जाती है। बच्चे के जन्म और उसकी शुरुआती देखभाल के लिए मह‍िलाओं को यह छुट्टी दी जाती है।
बॉम्बे हाई कोर्ट
बॉम्बे हाई कोर्टA. Savin
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नई दिल्ली: भारत समेत कई देशों में हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। इस साल रविवार, 12 मई को मदर्स डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। मां सबसे खास होती है, उनसे बढ़कर किसी बच्चे के लिए और कोई नहीं हो सकता। एक मां सिर्फ बच्चे को जन्म ही नहीं देती, बल्कि उसका पालन-पोषण करने के साथ जीवन के हर सुख-दुख में अपने बच्चे के साथ भी खड़ी रहती है।

हालांकि, आज की महिलाओं की स्थिति पहले की तुलना में काफी अलग है। कुछ पीढ़ियों पहले तक महिलाओं से चहारदीवारी के भीतर रहकर घर और बच्चों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती थी, लेकिन आज ऐसा नहीं है। महिलाएं घर से बाहर निकलकर न केवल काम कर रही हैं, बल्कि हर जगह अपनी जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं। महिलाएं मातृत्व और करियर, दोनों जगह मजबूती से आगे बढ़ रही हैं। मातृत्व हर महिला के लिए एक सुखद अहसास होता है, लेकिन कामकाजी महिलाओं के लिए चुनौती भरा भी होता है।

मह‍िलाओं की सुरक्षा और सुव‍िधा को ध्‍यान में रखते हुए कई न‍ियम कानून हैं। इसमें से कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश का प्रावधान है। लेकिन इस पर हमेशा कोर्ट में बहस छिड़ी रहती है। हाल ही में एक मामला मुंबई हाई कोर्ट के पास भी आया है। जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि मां बनना एक नैसर्गिक घटना है, ऐसे में नियोक्ता का रुख़ महिला की मैटरनिटी लीव को लेकर सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।

हाई कोर्ट ने यह बात एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) में कार्यरत एक महिला को राहत देते हुए कही है। एएआई ने महिला को इस आधार पर मैटरनिटी लीव देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि पहले से उसके दो बच्चे हैं। कोर्ट ने कहा कि मैटरनिटी लीव का उद्देश्य एक महिला को सुरक्षा प्रदान करना है। सुरक्षा के पहलू को उसके स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और इस लीव से जुड़े नियमों की उदारतापूर्ण व्याख्या की जानी चाहिए।

जस्टिस ए.एस. चांदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की बेंच ने कहा कि महिलाएं हमारे देश की आबादी और समाज का आधा हिस्सा हैं। इसके साथ ही उन स्थानों पर सम्मानित और सम्मानजनक व्यवहार उनके साथ किया जाना अनिवार्य है।, जहां वह आजीविका कमाने के लिए काम कर रही हैं। इतना ही नहीं हाई कोर्ट ने कहा कि उनके कर्तव्य व्यवसाय और कार्य स्थल की प्रकृति जो भी हो, महिलाओं को वह सभी सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, जिनकी वह हकदार हैं।

महिला का पहला विवाह एएआई के कर्मचारी राजा अर्मुगम से हुआ था और उनकी मृत्यु के बाद उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी गई थी। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसकी पिछली शादी से उसका एक बच्चा था और अपने पहले पति की मृत्यु के बाद उसने दूसरी शादी की और इस विवाह से दो बच्चे पैदा हुए।

मैटरनिटी लीव का उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण नहीं

नियमों के अनुसार मेंटालिटी लीव का उद्देश्य महिलाओं को छुट्टियों का लाभ देना है, ना की जनसंख्या पर अंकुश लगाना। दो बार मैटरनिटी लीव देने का नियम इसलिए बनाया गया है कि नियोक्ता कर्मचारियों की सेवा से दो से अधिक बार वंचित न हो। बेंच ने कहा कि मामले से जुड़ी महिला कर्मचारी को जब पहला बच्चा हुआ था, तो उसने मैटरनिटी लीव का लाभ नहीं उठाया था। ऐसे में वह तीसरे बच्चे की डिलीवरी के दौरान मैटरनिटी लीव के लिए पात्र थी।

मातृत्व अवकाश (मैटरन‍िटी लीव) क्या है?

गर्भावस्था के दौरान मह‍िलाएं मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव की सुव‍िधा दी जाती है। बच्चे के जन्म और उसकी शुरुआती देखभाल के लिए मह‍िलाओं को यह छुट्टी दी जाती है।

मातृत्व अवकाश के ल‍िए कौन पात्र है?

सभी गर्भवती मह‍िलाएं मातृत्व अवकाश के ल‍िए पात्र होती हैं। इसके साथ ही यदि कोई महिला 3 महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है, तो वह 12 सप्ताह की छुट्टी की पात्र होती है।

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