नई दिल्ली। मानवता को ताक पर रखकर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा एक अस्सी वर्षीय वृद्धा प्रतिमा देवी के अस्थायी आश्रय स्थल को ढहा देने के बाद उन्हें बेघर करने की घटना ने देशभर के पशु प्रेमियों को विचलित कर दिया है। कारण यह कि अम्मा के नाम से मशहूर प्रतिमा देवी पिछले 30 सालों से दक्षिण दिल्ली के साकेत इलाके में पीवीआर अनुपम के पास एक शेल्टर में सैकड़ों श्वानों की देखभाल करती आई हैं। सड़कों से कचरा बीनकर दिनभर में बामुश्किल 200 रुपये कमाने वाली अम्मा रोजाना औसतन 200 से अधिक यतीम कुत्तों के भोजन और बीमार होने पर इनकी दवा का इन्तजाम करती आई हैं।
कोविड के दौरान अम्मा ने सबसे कठिन समय को भी जीत लिया। कुत्तों से बीमारी फैलने की भ्रांति के चलते लोगों ने सहायता करनी बंद कर दी लेकिन अम्मा नहीं हारीं और अपने चार पैरों वाले बच्चों का लालन पालन जारी रखा।
लेकिन, अब एमसीडी द्वारा उनके घर को गिराए जाने के बाद से वह बिखर गई हैं, जिससे वह अपने श्वानों के साथ लाचार और बेघर हो गई हैं। अम्मा की हालत कई दयालु कार्यकर्ताओं और पशु प्रेमियों से नहीं देखी गयी और उन्होंने मदद के लिए आगे कदम बढ़ाया।
एमसीडी अधिनियम को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जिसने मामले की सुनवाई की और 15 मार्च को होने वाली अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने अपने आदेश में कहा कि एमसीडी ने बिना किसी पूर्व सूचना के वृद्धा के घर को गिरा दिया। कड़कड़ाती सर्दी में बिना छत की महिला की दारुण दशा को देखते हुए अदालत ने उन्हें अंतरिम उपाय के रूप में तिरपाल लगाने की अनुमति दी।
सोशल मीडिया के माध्यम से कार्यकर्ताओं और पशु प्रेमियों को अम्मा की दुर्दशा के बारे में पता चलने के बाद, असंख्य रूपों में मदद का सिलसिला शुरू हो गया है। मूक प्राणियों के लिए अस्थायी सामुदायिक आश्रयों का निर्माण करने के लिए लोग एक साथ आए हैं। जन सहयोग से श्वानों के लिए छोटे छोटे अस्थायी आश्रय तैयार किये जा चुके हैं।
"पुनर्वास और परित्याग महाभारत के समय में गैरकानूनी और धर्म के खिलाफ थे, और वे वर्तमान समय में अधर्म बने हुए हैं। करुणा सभी के लिए है। सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए सेवा ही शांति का एकमात्र तरीका है", अभिनेता और पशु अधिकार कार्यकर्ता तराना सिंह ने द मूकनायक को बताया।
वह अपने सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से विभिन्न स्रोतों से मदद जुटा रही हैं। गुड़गांव के एक अन्य कार्यकर्ता मंजूनाथ कामथ ने कहा, "अम्मा जैसे लोगों के कारण ही मानवता अभी तक जीवित है। हमारी आबादी का अधिकांश हिस्सा कम से कम एक उपेक्षित जानवर की देखभाल करने में सक्षम है, लेकिन वे अपने स्वयं के खजाने को भरने में अधिक रुचि रखते हैं जैसे कि वे अपनी संपदा अगली दुनिया में ले जाने वाले हो।"
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