ग्राउंड रिपोर्ट: सुंदरवन से मानव तस्करी की गई लड़कियों की माताओं का दर्द, एक मां 16 साल से कर रही अपनी बेटी की वापसी का इंतजार

द मूकनायक की टीम ने पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) की गई लड़कियों की मां से उनके दर्द को जानने की कोशिश की।
द मूकनायक की टीम ने पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) की गई लड़कियों की मां से उनके दर्द को जानने की कोशिश की।
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द मूकनायक की टीम ने पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) की गई लड़कियों की मां से उनके दर्द को जानने की कोशिश की। पेश है रिपोर्ट

सुंदरवन (पश्चिम बंगाल)। देश के हर कोने से "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" का नारा पुरजोर आवाज में लगाया जा रहा है। लेकिन पश्चिम बंगाल के सुंदरवन ब्लॉक की संदेशखाली विधानसभा क्षेत्र में रहने वाली बिमला सोदार (बदला हुआ नाम) अपनी बेटी का लगभग 16 साल से इंतजार कर रही है। उनकी बेटी जिंदा है या मर गई, उनको यह पता नहीं है। इस इलाके से दलाल बड़ी संख्या में लड़कियों को शहरों में काम दिलाने के बहाने अपने साथ ले जाते हैं। बाद में उन्हें या तो बेच देते हैं या बंधक बना लेते हैं।

बेटी के इंतजार में बीमार हो गई मां

पश्चिम बंगाल के नॉर्थ 24 परगना के डेल्टा रेंज में रहने वाली बिमला और उसके पति से जैसे ही कोई उनकी बेटी के बारे में पूछता है तो उन्हें लगता है कि वह शख्स उसकी बेटी को वापस ला देगा। बेटी चली जाने के कारण उनकी मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं रहती हैं। बिमला का और कोई बच्चा भी नहीं है। उसकी बेटी ही उन दोनों का आखिरी सहारा थी। दोनों की स्थिति ऐसी है कि सरकारी स्कीम द्वारा बनाए गए घर में वह रहती हैं, और खाना-पीना बगल में रिश्तेदार के यहां खाते हैं।

उनको जेठानी के बच्चे ही देखते हैं। बिमला के बगल में उसकी जेठानी भी खड़ी थी। वह द मूकनायक बताती हैं कि, जब से हमारे घर की बेटी गई है। हर रोज हमलोग यही आस करते हैं कि कहीं से कोई खबर आ जाए कि वह घर वापस आ रही है। उसकी मां तो इसी इंतजार में बीमार हो गई है। पिता भी दिन रात पी-पीकर अपने जीवन को खराब कर रहा है।

बिमला की स्थिति से पूरा गांव वाकिफ है। हमें देखते ही पूरे गांव के लोग हमारे पास आ जाते हैं। पास में रहने वाले लोग आरोपी को सजा दिलाने की मांग करते हैं। बिमला बताती हैं कि, "अब तो 16 साल हो गए है पता नहीं मेरी बेटी जिंदा भी है नहीं।" वो आरोप लगाती है कि इन हैवानों ने उसकी हत्या कर दी है।

आयला तूफान ने बदली लोगों की जिंदगी

बिमला कहती है कि, आयला तूफान ने हमारी पूरी जिंदगी को बर्बाद कर दिया है। वह ऐसा मौका था जब तस्करों की चांदी-चांदी थी। हम जैसे गरीब लोगों के लिए उस वक्त तस्कर भगवान की तरह थे। आयला ने हमारा सबकुछ तहस नहस कर दिया था। बिमला पास की ही एक कोठी को दिखाती है और कहती हैं कि यही वह घर यह जिससे एक आदमी ने हमें कहा कि वह हमारी बेटी को दिल्ली में काम पर लगा देगा। जिससे उनके घर की स्थिति ठीक हो जाएगी। पहले तो मैं इसके लिए राजी नहीं हुई, लेकिन बाद में स्थिति को देखते हुए हमने बेटी को भेजने का निर्णय लिया।

"उस शख्स ने हमें कहा था कि हर महीने हजार रुपया भेजेगा और फोन पर बेटी से बात कराएगा। उसके जाने के एक दो महीने तक उससे बात हुई। लेकिन बाद में नहीं हो पाई। हमने उस शख्स से कई बार अपनी बेटी के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की है। वह हर बार हमें 'बेटी ठीक है' कहकर टाल देता। जब हमें थोड़ा शक हुआ तो हमने पुलिस से इसकी शिकायत करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने भी हमारा साथ नहीं दिया। आज स्थिति ऐसी है कि हम अपनी बेटी के इंतजार में बैठे हैं और तस्कर दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की कर घर से कोठी तक आ गया है," वह कहती है।

बिमला का पति एक अस्पताल में साफ-सफाई का काम करते हैं। जिनकी उम्र लगभग 50 साल होगी। वह कहते हैं कि, हमारी बेटी को काम दिलाने के नाम पर हमारे गांव के एक शख्स ने खा लिया (मार दिया) है। हमें आजतक नहीं बताया कि वह है भी कि नहीं। कम से कम कुछ तो बताए ताकि कुछ तसल्ली हो। अब तो हमने आस ही छोड़ दी है। इतनी ही देर में बिमला अंदर से एक पासपोर्ट साइज फोटो लाती है और दिखा कर कहती है कि बस यही आखिरी निशानी है। अब तक उसमें कितने बदलाव हो गए होंगे। पता नहीं अब वह हमें मिल पाएगी की नहीं। बेटी के इंतजार में तो अब हमारे आंसू भी सूख गए हैं।

एनजीओ की मदद से बेटी आई वापस

बिमला की ही तरह एक और मां है सविता मुंडा (बदला हुआ नाम) बिमला से थोड़ी किस्मत वाली निकली। सविता को अपनी बेटी वापस मिल गई है। नदी के किनारे दलदली खेती के बीच मिट्टी के बने घर में सविता अपनी एक बेटी और नाती के साथ रहती हैं। जहां छत के नाम पर सिर्फ तिरपाल लगी हुई है। अगर ज्यादा तेज बारिश हो जाए तो घर में रखा सारा सामान गीला हो जाए। सविता के पति का देहांत हो गया है। उसकी तीन बेटियां और एक बेटा है जिसमें से दो की शादी हो गई है और एक अभी स्कूल में पढ़ती है और बेटा तमिलनाड़ू में काम करता है।

सविता नदी से छोटी-छोटी-छोटी मछलियों को लाती है। उन्हें खेत के एक टुकड़े में फेंकती हैं और जब वह बड़ी हो जाती है उन्हें बेचती हैं। ताकि अपना खर्चा चला सकें। सविता के साथ भी वैसी ही स्थिति थी जैसी बिमला की थी। आयला ने सबकुछ नष्ट कर दिया था। दोबारा से जिंदगी शुरू करने के लिए बाहर नौकरी करने का सहारा लेना पड़ा।

वह बताती है कि पास ही एक शख्स ने हमें घर की स्थिति को ठीक हो जाने का आश्वासन देकर बेटी को बाहर भेजने के लिए प्रस्ताव रखा। उस वक्त हमारी बेटी की उम्र 15 से 16 साल की थी। हमने उसकी बात को मानकर बेटी को दिल्ली में काम करने के लिए भेजा। हम सभी लोग इस बात से खुश थे कि अब हमारे घर की स्थिति ठीक हो जाएगी।

डॉक्टर ने शारीरिक और मानसिक शोषण किया

जिस शख्स ने हमें काम दिलाने की बात कही थी, वही उसे लेकर भी गया था। पहले के दो तीन महीनों तक बेटी से हमारी बातचीत होती थी। उसने पैसे भी भेजे। लेकिन उसके बाद उसने वहां काम छोड़कर किसी डॉक्टर के यहां काम करना शुरू किया। स्थिति यही से बदलनी लगी। अब न तो बेटी का फोन आता न ही पैसा। जिस दलाल ने हमें बेटी भेजने की सलाह दी थी। उसने उसे बेच दिया था। अब हमारी बेटी बंधुवा मजूदर बन गई थी। वह कहती है, "मेरे पति कई बार बेटी की तलाश में दिल्ली गए। वहां भूखे प्यासे उसकी तलाश करते, लेकिन उसका कुछ पता नहीं चल पाया। हमने उस शख्स से भी इस बारे में पूछा, वह यही कहता कि बेटी ठीक है। लेकिन कहां हैं इसकी कोई जानकारी नहीं थी। हमने परेशान होकर पुलिस से संपर्क किया। लेकिन पुलिस का रवैय्या गरीबों की प्रति कैसा होता है यह सबको पता है। कई बार पुलिस के पास जाने के बाद भी हमें हमारी बेटी का पता नही चला। अंत में हमने एक एनजीओ जय गोपाल यूथ डवलपमेंट से संपर्क किया। इसके बारे में भी हमें किसी ने बताया था। एनजीओ के लोगों ने पुलिस से संपर्क किया और पुलिस ने तस्कर से सख्ती से पूछताछ की।"

बाद में हमें पता चला कि हमारी बेटी को किसी डॉक्टर के यहां बेच दिया गया है। पुलिस ने तुरंत इस बात की पड़ताल की और बेटी को वापस लेकर आई। बेटी को रेस्क्यू करने से पहले ही डॉक्टर और उसकी पत्नी घर में ताला मारकर भाग गए थे।

सविता ने कहा, "हमारी बेटी ने हमें बताया कि उसे बेच दिया गया था। उसके बाद शारीरिक (फिजिकली असॉल्ट) और मानसिक दोनों तरह की प्रताड़ना की गई। उसे खाने-पीने के लिए भी परेशान किया गया। अब बेटी वापस आ गई है। जब तक बेटी वापस नहीं आई थी, हमारी जिंदगी पूरी तरह से नरक हो गई थी। हमें यही डर था कि उसके साथ कुछ गलत न हो जाए। अब वह वापस आ गई है। उसकी शादी भी हो गई है। इस वक्त वह अपने पति के साथ तमिलनाडु में रह रही है।"

छोटी उम्र की लड़कियों को आसानी से जाल में फंसा लेते हैं तस्कर

द मूकनायक ने जयगोपाल यूथ डवलपमेंट के डायरेक्टर दीनाबंधु दास से बात की। उन्होंने बताया कि, पश्चिम बंगाल बॉर्डर और सुंदरवन एरिया में तस्करी बहुत बड़ी समस्या है। यहां तस्करी के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाएं जाते हैं। एक तो काम देने के बहाने लोगों की तस्करी की जाती है। कई बार लड़कियों को रास्ते से भी उठा लिया जाता है। उन्हें नशा वाला पदार्थ पिला दिया जाता है। जब तक उन्हें होश आता है। वह बंगाल से बाहर पहुंच चुकी होती हैं। कई बार ऐसा देखने को मिला है कि बच्चे थोड़ा परेशान होते हैं तो उन्हें सहारा देने के नाम पर लोगों की तस्करी की जाती है। वह बताते हैं कि, "हम पिछले 10 से 15 सालों से तस्करी की गई लड़कियों को उनके घर में पहुंच जा रहे हैं। उनकी हर संभव मदद करते हैं। कई बार लड़कियों को बेच दिया जाता है और कई बार बंधुवा मजदूर बना लिया जाता है। यहां तक कि वेश्यालय में भी लड़कियों को बेच दिया जाता है और उन्हें पता भी नहीं चलता है।"

प्रेम संबंधों में भी तस्करी होती है

वह कहते हैं कि, तस्करी के मामले में देखने को मिला है कि प्रेम संबंधों में भी लड़कियों की तस्करी होती है। एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि हमने एक लड़की को रेस्क्यू किया था। जिसे उसके ब्यॉयफ्रेंड ने ही बेचा था। यह एक ऐसा जाल है। जिसमें पुरुष ब्यॉयफ्रेंड बनकर लड़कियों से फोन पर बात करते हैं और बाद में शादी करने के नाम पर लड़कियों को बाहर ले जाते हैं और वहां पहले से मौजूद तस्करों को बेच देते हैं। वह बताते हैं कि ये सारी चीजें एक खास आयु वर्ग की लड़कियों के साथ ही होता है। इसमें ज्यादातर 14 से 20 साल तक की लड़कियां होती हैं। इस उम्र के बच्चों को अपने झांसे में लेना बड़ा आसान होता है।

अपने एनजीओ द्वारा किए गए रेस्क्यू का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि पिछले 10 सालों में 360 लड़कियों को रेस्क्यू किया गया है। वह आगे भी अपनी टीम और पुलिस की मदद से लोगों की मदद करते रहेंगे।

तस्करी पर क्या कहते हैं आंकड़े!

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इनवरमेंट एंड डेवलमेंट नाम के जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, आज की आधुनिक दासत्व (बंधुवा मजदूरी) में समाज के सबसे वंचित तबके महिला, अल्पसंख्यक और बच्चों को सबसे ज्यादा टारगेट किया जाता है। जो एक तरह की तस्करी है। जिसमें लोगों को काम देने के नाम पर आसानी से तस्करी कर उन्हें बंधुवा मजदूर बना लिया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में लगभग 40.3 मिलियन लोग आधुनिक दासत्व का जीवन जी रहे हैं। जिनमें 7 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसमें से भी हर तीसरी लड़की की तस्करी शारीरिक व यौन शोषण के लिए की जाती है। साल 2016 में आधुनिक दासत्व में 10 मिलियन लड़कियों में एक चौथाई लड़कियां की उम्र 18 साल से कम थी। 18 साल की लड़कियों में 21 प्रतिशत लड़कियों का शारीरिक शोषण किया गया। जबकि 18 प्रतिशत को जबरदस्ती मजदूरी के लिए शोषित किया गया।

2020 की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में हर 130 वीं लड़की और महिला आधुनिक दासत्व की शिकार है। वहीं दूसरी तरफ अगर पुरुषों की बात की जाए तो इन्हें मजदूरी के लिए बंधक बनाया जाता है।

99 प्रतिशत तस्करी सेक्स इंडस्ट्री के लिए की जाती है

इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन ऑफ माईग्रेशन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिक बंधुवा मजदूरी में 99 प्रतिशत महिला और लड़कियों को कर्मिशयल सेक्स इंडस्ट्री में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। 58 प्रतिशत महिलाएं अन्य कामों से जुड़ी हुई है। जबकि 40 प्रतिशत पीड़ित को स्टेट अथॉरिटी द्वारा काम करने को मजबूर किया जाता है। 84 प्रतिशत महिला और लड़कियों की तस्करी शादी के लिए की जाती है।

एफसीडीओ (फॉरन कॉमनवेल्थ एंड डेवलमेंट ऑफिस यूके) के अनुसार आने वाले समय में जो भी व्यक्ति सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर होगा और जिनके पास स्किल (कौशल) की कमी होगी वह सभी आधुनिक दासत्व का शिकार होंगे।

क्या है आधुनिक दासत्वता?

सुंदरवन के संदर्भ में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इनवरमेंट एंड डेवलमेंट के इकॉनोमिक कंसल्टेट और जादवपुर यूनिर्वसिटी में समुद्र विज्ञान के गेस्ट फैकल्टी डॉ. सोमनाथ हाजरा का कहना है कि, इस क्षेत्र में आधुनिक दासत्वता का मतलब यह है कि यहां से लड़कियों और महिलाओं को काम के नाम पर बड़े शहर ले जाना है। वहां जाकर काम दिलाना और उस काम का तनख्वाह मिलना। सोमनाथ हाजरा बताते हैं कि, हमने अपने शोध में पाया कि आधुनिक दासत्वता तब शुरू हो जाती है जब वह वहां पहुंच कर लड़कियां और महिलाएं काम करना शुरू कर देती हैं। प्रताड़ना का सारा खेल वहीं से शुरू होता है। वहां जाकर लड़की एक बंधुवा मजदूर बन जाती है। वह अपनी मर्जी से न अपने घर वालों से बात कर सकती है, न ही अपनी मर्जी से कहीं बाहर जा सकती है। कई बार ऐसा भी होता है कि उन्हें बीमार पड़ने पर दवाई लेने के लिए जाने नहीं दिया जाता है। कई घरों में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। आज के दौर में काम के नाम पर ऐसे ही बंधुवा मजदूर बनाया जा रहा है, जिसके आधुनिक दासत्वता कहा जाता है।

"मेरी बेटी समझदार थी इसलिए बच गई"

कई लड़कियां समझदार या यूं कह ले उनकी किस्मत कभी-कभी साथ दे देती हैं। विमला के ही घर के पीछे एक घर में मां रहती है। यहां ज्यादातर लोग गरीब हैं और सरकारी योजना द्वारा बनाए गए मकान में रहते हैं। सावित्री मुंडा (बदला हुआ नाम) हमें यह बताते हुए बहुत खुश हुई की उसकी लड़की इन दरिंदों की चंगुल से बच गई है। वह बताती है कि मेरी बेटी ने 10 वीं तक पढ़ाई की है। इसलिए कुछ गलत हो रहा है यह उसे एहसास हो गया था। वह कहती हैं कि अगर उस दिन मेरी बेटी ने चिल्लाया न होता और आज वह किसी वेश्यालय में होती। "मेरी बेटी को भी काम दिलाने के नाम पर यहां से लेकर गए थे। एक दो दिन तक दिल्ली में उसके साथ अच्छा व्यवहार किया। उससे कहा कि जैसे ही काम मिलेगा उसे वहां भेज दिया जाएगा।" वह बताती हैं।

वह कहती है, मेरी बेटी ने हमें बताया कि दो दिन बाद ही उन्होंने मेरा सौदा कर दिया था। मैं यह सबकुछ जान चुकी थी, लेकिन मेरे पास भागने की कोई जगह नहीं थी। मैंने घर से बाहर निकलने का इंतजार किया। वह कहती है कि मेरे बेटी को वो लोग वेश्यालय ले जा रहे थे। रास्ते में ही पुलिस की चेकिंग हो रही थी। मेरी बेटी ने जैसे ही पुलिस को देखा वह जोर-जोर से रोने लग गई। पुलिस को कुछ अनहोनी का शक हुआ। पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि लड़की को बेच दिया गया है। पुलिस ने तुरंत बंगाल पुलिस और परिवार से संपर्क कर हमें बेटी लौटा दी। आज मेरी बेटी की शादी हो गई है। वह अपने परिवार में खुशी के साथ रह रही है।

शिक्षा है लेकिन कौशल नहीं

सुदंरवन पर लगभग तीस साल से काम कर रहे जादवपुर यूनिर्वसिटी के प्रोफेसर तुहिन घोष का कहना है कि लड़कियों की तस्करी होना यहां आम बात हो गई है। इसमें कुछ लोग ऐसे भी संलिप्त होते हैं। जो काफी रसूख वाले होते हैं। जिसके कारण उन पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती है।

शिक्षा का स्तर और जातीय समीकरण पर बात करते हुए वह बताते हैं कि, यहां आदिवासी मुस्लिम और दलित आबादी ज्यादा है। लोगों के पास पेशे के तौर पर कुटीर उद्योग या खेती बाड़ी है। बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण अब लोग खेती बाड़ी भी अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं। जिसका नतीजा यह है कि लोग मौसमी विस्थापन करते हैं।

वह बताते हैं कि, जहां तक शिक्षा की बात है सुंदरवन क्षेत्र में साक्षरता का दर लगभग 90 से 95 प्रतिशत तक है। यहां ग्रेजुएट स्टूडेंट्स आपको आसानी से मिल जाएंगे। लेकिन आज की टेक्नोलॉजी वाली दुनिया में जब तक आपके पास कोई कौशल न हो या कोई प्रोफेशनल डिग्री न हो तब तक आप एक अच्छी नौकरी नहीं कर सकते हैं। यहां शिक्षा जरूर है, लेकिन जीवकोपार्जन करने वाली नहीं।

"तस्करी का दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि यहां 19 ब्लॉक  में ज्यादातर आबादी टापू में ही रहती है। वह लोग बाहर आना-जाना कम करते हैं। बाहर के लोगों से कम मिलते जुलते हैं। जिसके कारण इन्हें बाहर की दुनिया की समझ भी कम होती है। इसी मौके का फायदा उठाकर तस्कर आसानी से अपना काम कर लेता है।" उन्होंने समझाया।

अगर हम एनसीआरबी के आंकड़ों की बात करें तो, कोरोना और लॉकडाउन के बाद से मानव तस्करी में कमी आई है। साल 2018 के आंकड़ों के अनुसार असम में सबसे अधिक 308 मानव तस्करी के मामले दर्ज किया थे। वहीं करीब 172 मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए हैं।

इन आंकड़ों और सरकार द्वारा चलाई जा रही जागरूकता अभियान के कारण दो सालों में यह आंकड़ा कम हो गया है। साल 2020 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी के 59 मामले दर्ज किए गए थे। 

आपको बता दें कि, द मूकनायक की टीम ने सुदंरवन के संदेशखाली ब्लॉक 1 में लोगों से मुलाकात की है। जहां अनुसूचित जाति में पौंड्रा और बागड़ी जाति के लोग रहते हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति में बेड़िया, मुंडा, भूमिज, खरवार और महली जनजाति के लोग रहते हैं।

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