“जिन्होंने साल भर में कोई काम ही नहीं किया, अचानक बरसाती मेंढक की तरह कूद पड़े” उनपर जनता का विश्वास नहीं; यूपी चुनाव 2022 पर प्रो. विवेक कुमार के साथ एक्सक्लूसिव साक्षात्कार

यूपी चुनाव 2022 पर प्रो. विवेक कुमार का ओपनियन
यूपी चुनाव 2022 पर प्रो. विवेक कुमार का ओपनियन
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द मूकनायक के साथ साक्षात्कार में JNU प्रोफेसर विवेक कुमार ने मेन-स्ट्रीम मीडिया में दिखाए जा रहे Opinion Poll की सांठगांठ का किया खुलासा, साथ ही UP चुनाव 2022 में पार्टियों की स्थितियों का किया आकलन।

कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान होने वाला है। 2022 मई तक एक नई सरकार का गठन हो जाएगा। 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं और उसके लिए सभी राजनीतिक दल चुनावी मैदान में कूद चुके हैं। उत्तर प्रदेश में इस बार का विधानसभा चुनाव खास होने वाला हैं क्योंकि कुछ नई पार्टी और कुछ नए चेहरे इस बार कुछ नए समीकरण सामने लेकर आ रहे हैं।

इसी मुद्दे पर द मूकनायक की टीम ने प्रोफेसर विवेक कुमार से खास बातचीत की। आईए आपको बताते हैं प्रोफेसर विवेक कुमार के साथ चर्चा की कुछ अहम बातें।

कैसी होने वाली है यूपी चुनाव की तस्वीर?

"चुनाव की तैयारियों के लिए सभी राजनीतिक दल एक्टिव हो चुके हैं। कहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंच रहे हैं तो कहीं अखिलेश यादव की रथ यात्रा निकल रही है। राजनीतिक दल काफी एक्टिव हैं, साथ ही नई राजनीतिक दल भी इस बार यूपी में अपनी किस्मत आजमाने के लिए चुनाव में उतरने वाले हैं।"

इस चुनाव की तस्वीर को लेकर प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा "जिन संगठनों का जमीनी स्तर पर संगठन नहीं हैं..जिन्होंने साल भर में कोई काम ही नहीं किया.. या जिन्होंने अपने कैडर, अपने वोटरों को एक एजेंडे या विचारधारा के तहत लामबंद नहीं किया है वो अचानक बरसाती मेंढक की तरह बरसात में निकल आए हैं और ऐसा लग रहा है कि इस समय वो उछल कूद मचाएंगे और सभाएं करेंगे तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाएंगे।"

प्रोफेसर विवेक कुमार  ने मीडिया की भागीदारी पर भी सवाल उठाते हुए आगे कहा, "मेन स्ट्रीम मीडिया में भी एक एंजेंडे के तहत प्रोग्राम होगा और उसको बढ़ा-चढाकर दिखाया जाएगा। सिर्फ मेन स्ट्रीम मीडिया ही नहीं बल्कि आज कल यूट्यूब चैनल भी एक एंजेंडे के तहत टाइटल देते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि जनता इन पर विश्वास नहीं करती है। अगर विश्वास करती तो भारतीय जनता पार्टी के 'शाइनिंग इंडिया कैंपेन' के बाद वो उनके पाले में चली जाती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसा ही नारा पश्चिम बंगाल में दिया गया 'अपकी बार 200 पार' लेकिन 70 पर ही सीमट गए, तो कहीं न कहीं जनता भी ये समझ गई है कि जो दिखता है वो जरुरी नहीं की वो वास्तविकता हो। वास्तविकता तो भरे हुए सागर की तरह एकदम समतल होता है।"

बहुजन समाज पार्टी के चुनावी सक्रियता पर भी प्रोफेसर विवेक कुमार ने अपनी बात रखी; "जिनकी धरातल पर समाज में पकड़ नहीं बची है वो कह रहे हैं कि हम एक जनसभा के तहत जनता के साथ हो जाएंगे। लेकिन दूसरी तरफ एक दल है जो 75 जिलों में प्रभुत्व सम्मेलन कर रहा है और आप कहते हैं कि वो काम नहीं कर रहा है। ये एक विरोधाभास की स्थिति है और कंफ्यूजन पैदा करने के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसा कर रही है। लेकिन हमारी जनता समझदार है। यह जो हमारी जनता है उसने अपना वोट सिक्योर (सुरक्षित/गोपनीय) कर लिया है लेकिन जो फ्लोटिंग जनता (जो राजनीतिक मामलों में कुछ तय नहीं कर पा रहें), को कंफ्यूज करने के लिए ये दावेदारी चल रही है।"

धरना प्रदर्शन की राजनीति बसपा ने नहीं की

प्रोफेसर विवेक कुमार ने बातचीत में कहा, "सवर्ण मीडिया द्वारा यह एक कथानक गढ़ा जा रहा है कि मायावती जी ऐसा कुछ कर रही हैं..लेकिन जहां तक मेरा शोध है.. मैं काशीराम जी के समय से ये अध्ययन कर रहा हूं। मान्यवर कहते थे कि आप धरना प्रदर्शन किसके खिलाफ कर रहे हैं? सोते हुए को जगाया जा सकता है, लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा है उसे आप कैसे जगा सकते हैं। मैनें मिस मायावती जी को भी यही कहते हुए सुना कि आप धरना प्रदर्शन कर रहे हैं तो किसके खिलाफ कर रहे हैं, जो आपके खिलाफ काम कर रहा है आप उसी से मांग कर रहे हैं कि आप मेरे दुख को हर लो, क्या वो कभी ऐसा करेगा?"

"मुझे नहीं लगता है कि बहुजन समाज पार्टी ने कभी धरना प्रदर्शन की राजनीति करी है। हां वो बड़ी जनसभाएं करती हैं और अपने कैडर को ये मैसेज देती हैं कि ये हमारा मुद्दा है और आप हमें आप इस आधार पर वोट करेंगे। 1984 से मैनें बसपा पर रिसर्च किया और उसमें मैंने कभी धरना प्रदर्शन की राजनीति नहीं देखी। धरना प्रदर्शन बसपा ने तब किया जब वह राजनीतिक जडें तलाश रही थी। जब उन्होंने अपनी राजनीतिक जड़े जमा ली तब उन्होंने अपने एजेंडा पर काम किया। एक एजेंडे को रखने के लिए बहुजन समाज पार्टी बनी है धरना प्रदर्शन के लिए नहीं।" -प्रोफेसर विवेक कुमार ने जोर देते हुए कहा।

क्या समाज और बसपा के बीच दूरी हो गई है?

काशीराम जी हमेशा अपने समाज तक पहुंचते थे लेकिन आज के समय में क्या बसपा और समाज के बीच में दूरी हो गया है? इसपर अपने विचार रखते हुए प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं, "मान्यवर काशीराम भी अपने कैडर के जरिए ही समाज तक पहुंचते थे। मेरे शोध के अनुसार अब जो पार्टी के लीडर बनाए गए हैं उसके आधार पर बहनजी समाज और जनता तक पहुंचती हैं, लीडरशिप में कैडर चल रहा है लेकिन अफसोस ये है कि ये कवर नहीं हो रहा है।"

प्रोफेसर विवेक कुमार  ने आगे कहा, बहन जी ने खुद को धरनाप्रदर्शन की राजनीति से इसलिए अलग किया क्योंकि! आप (विपक्ष) जातिवाद फैलाने का आरोप लगाएंगे और हो सकता है कि वो दंगा भी करा दें जिससे आरोप ये लगेगा कि इन्होंने ही कराया और उसी से वह बसपा सुप्रीमो को बदनाम करेंगे। अगर पार्टी एजेंडा बनाकर काम नहीं करेगी सिर्फ प्रतिक्रिया करती रहेगी तो कल्याण नहीं होगा।"

प्रोफेसर विवेक कुमार  ने कहा, "मुझे लगता है कि बहन जी कि तुलना अगर सोनिया गांधी से नहीं तो कम से कम ममता बनर्जी से तो जरुर होना चाहिए।"

बहुजन हिताय से सर्वजन हिताय की ओर

बहुजन समाज पार्टी का लक्ष्य बहुजन हिताय से सर्वजन हिताय हो रहा है, क्या इससे पार्टी को नुकसान होगा? इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा; "ये तो मान्यवर काशीराम के समय से ही चल रहा है। मुझे लगता है कि अगर संवैधानिक दष्टि से देखेंगे तो हमें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के अंदर जाना होगा और हमें सभी समाजों का प्रतिनिधित्व करना पड़ेगा। ये सवाल अलग है कि क्या अन्य समाज बहन जी को अपना प्रतिनिधित्व करने देगें?। बहन जी ने 2007 से 2012 तक हर समाज के लोगों के दिलों में ये बात बैठाई कि वो उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए काबिल हैं।"

ओपिनियन पोल में कहीं नहीं बसपा

आखिर क्यों मेन स्ट्रीम मीडिया के ओपिनियन पोल में बसपा कहीं नहीं दिखाई देती? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा, " इसका समाजशास्त्री अध्ययन करना पड़ेगा क्योंकि! जो मीडिया संस्थान ओपिनियन सर्वे में लोगों से पूछने जा रहे हैं क्या वो दलित समाज तक जा रहा है? ये शहरों में ही या वोकल जनता से ही सवाल करते हैं और वहीं अपने ओपिनियन पोल में फिट कर देते हैं। परसेंटेंज ऑफ वोट को आप सीट में नहीं बदल सकते। वोट पर्सेंट जिसका कम है उसको सीट ज्यादा मिलती है।"

प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा, "ये जो ओपिनियन पोल होता है वो झूठा होता है और वो ट्रांसपैरेंट (पारदर्शी/निष्पक्ष) नहीं होता। ये लोग यह नहीं बताते कि उनका सैंपल कितना बड़ा था। क्या इसमें सभी समाज का प्रतिनिध्व है जिसमें दलित का, पिछड़ों का और महिलाओं का मत हो। ये ओपिनियन पोल तटस्थ वोटर को भ्रमित करने के लिए होता है और ये सच्चाई से परे होता है।"

क्या ब्राह्मणों का वोट बसपा को मिलेगा?

ब्राह्मणों के वोट को लेकर किए गए सवाल का जवाब देते हुए प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा, "बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मण नेता रहे हैं। आप चाहे राज्यसभा में देखें, चाहे लोकसभा में देखें और चाहे विधानसभा में देखें तो बसपा के पास ब्राह्मण लीडर हैं। बसपा ने निकाय स्तर पर भी ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व दिया था। इसलिए मुझे लगता है कि ब्राह्मण मतदाता सकारात्मक दष्टि से देख रहा है कि बसपा में उनको प्रतिनिधित्व मिल रहा है।"

उन्होंने आगे कहा, "उत्तर प्रदेश में जो वर्तमान सरकार है उसके अंदर ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व नहीं दिखाई पड़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस यूपी के ब्राह्मणो पर विश्वास नहीं करती क्योंकि वो जानती हैं कि ये हमेशा कांग्रेस के साथ रहे हैं। इसलिए ब्राह्मण वोटों का बंटवारा साफ दिखाई दे रहा है। एक तरफ नकारात्मकता है और एक तरह सकरात्मक पार्टी है जिसकी ओर यूपी का ब्राह्मण आकर्षित हो रहा है।"

किसकी सत्ता होगी यूपी में?

इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा, "मुझे लगता है कि जिस पार्टी की ग्रास रुट पर संगठनात्मक क्षमता और संगठनात्मक शक्ति सबसे मजबूत होगी उसकी उत्तर प्रदेश में सरकार होगी।"

अब देखना होगा कि साल 2022 में उत्तर प्रदेश की जनता किसे उत्तर प्रदेश की सत्ता का बागडोर सौंपती है।

साक्षात्कार की पूरी वीडिओ यहां देखें:

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