उत्तर प्रदेश: दुगनी जनसंख्या पर आधे स्वास्थ्य केंद्र, कुशीनगर में स्वास्थ्य सेवा का हाल बेहाल!

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फ़ाज़िलनगर [फोटो- बृजेश शर्मा, द मूकनायक]
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फ़ाज़िलनगर [फोटो- बृजेश शर्मा, द मूकनायक]
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यूपी/कुशीनगर। सरकारी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के मामले में कुशीनगर जिले की स्वास्थ्य सेवाओं की एक पड़ताल में पता चला कि यहां स्वास्थ्य व्यवस्था दयनीय स्थित में है। अनुमानतः उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में आने वाले लगभग सभी जिलों की यही स्थिति है। जबकी, जिले में शहर में स्थित निजी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने वाले हॉस्पिटल्स की स्थिति बेहतर है। इसकी तुलना अगर हम सरकारी चिकित्सा केंद्रों से करें तो यहां सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बद से बदतर है। ग्रामीण इलाकों में कार्य करने वाले सरकारी अस्पतालों की हालत और भी खस्ता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 5 मई को साल 2020-2021 के लिए रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 20778 सब सेंटर, 2923 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और 753 कम्युनिटी स्वास्थ्य केंद्र हैं।

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 5000 हजार की आबादी पर एक सब-सेंटर, 30 हजार की आबादी पर एक PHC और 1,20,000 की आबादी पर 1 (CHC) कम्युनिटी हेल्थ सेंटर होना चाहिए। लेकिन, पूर्वांचल की बात करें तो आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य केंद्र काफी कम हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, कुशीनगर जिले की आबादी 3,564,544 है। आबादी के हिसाब से देखा जाए, तो जिले में 713 सब-सेंटर, 118 पीएचसी और 29 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर होना चाहिए। लेकिन कुशीनगर में सिर्फ 358 सब सेंटर, 53 पीएचसी और महज 14 कम्युनिटी स्वास्थ्य केंद्र हैं। 

वहीं आबादी के हिसाब से कम स्वास्थ्य केंद्र होने से स्वास्थ्य केंद्रों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। मसलन कुशीनगर जिले के फ़ाज़िलनगर में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर रोजाना औसत 100-150 आउटडोर मरीज आते हैं। वहीं महीने में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर 50-100 गर्भवती महिलाओं का प्रसव भी कराया जाता है। सीएचसी के एक चिकित्सक ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि "इसी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नजदीक में निजी अस्पताल भी हैं। अत्यधिक मरीज वहीं चले जाते हैं। जिससे कि यहां बोझ कम पड़ता है। लेकिन, स्टाफ और सुविधाओं के मद्देनजर इतने मरीज भी अधिक ही हैं।"

बहुत पहले से ही, पूर्वांचल के जिलों में हमेशा ही बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था की मांग बनी रहती है। तमाम राजनीतिक दल समेत नागरिक संगठन भी समुचित स्वास्थ्य सेवाओं की मांग करते रहे हैं। लेकिन उनकी मांग अनसुनी कर दी जाती है।

कुशीनगर जिले के फ़ाज़िलनगर ब्लॉक के मठिया के रहने वाले सोशल एक्टिविस्ट जितेंद्र प्रजापति कहते हैं, "नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हमारे गांव से 3-4 किलोमीटर दूर है, लेकिन वहां चिकित्सीय सेवाएं नहीं मिल पाती हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में केवल डिलीवरी के केसेज ही देखे जाते हैं। अगर इमरजेंसी सेवा लेनी हो, तो 35 किलोमीटर रविन्द्रनगर धुस शहर में जाना पड़ता है। हम लोगों ने कई बार स्थानीय विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों के सामने इसकी मांग रखी, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई निर्णायक पहल नहीं हुई है।"

मामले पर फ़ाज़िलनगर विधानसभा के विधायक सुरेंद्र सिंह कुशवाहा ने द मूकनायक को बताया कि, "पहले की अपेक्षा योगी सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार हुआ है। हालांकि अभी भी इसमें बहुत सुधार करने की आवश्यकता है। इसके बाबत मैंने स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक को पत्र लिखा है। मैंने नए स्वास्थ्य केंद्र खोलने, नए मशीनों को लगाने सहित अस्पतालों को आधुनिक बनाने की मांग की है।" 

फ़ाज़िलनगर से सपा नेता विपिन सिंह कहते हैं कि, "मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में ठीक-ठाक इलाज मिल भी जाता है, लेकिन पीएचसी व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालात बेहद बदतर हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज बिल्कुल नहीं मिलता है। बेहतर इलाज के लिए लोगों को गोरखपुर में निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था की मांग हमेशा से की जाती रही है, लेकिन योगी सरकार सुनती ही नहीं है।"

भारी संख्या में खुले निजी नर्सिंग होम

लचर चिकित्सा व्यवस्था के चलते कुशीनगर में भारी संख्या में निजी नर्सिंग होम खुल चुके हैं। लेकिन इन निजी नर्सिंग होम में पैसा खर्च करके भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मुहैया हो पा रही है। जिसका बड़ा कारण विशेषज्ञ चिकित्सकों का न होना है। 

स्थानीय निवासी अनुज शर्मा कहते हैं कि, सरकारी अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा न मिलने की वजह से लोगों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। राज्य की योगी सरकार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था दुरुस्त करवाना चाहिए, जिससे कि आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया हो सके।

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