"कूड़ा बीनने के अलावा हमारे पास कोई काम ही नही हैं, बाकरगंज के नाम से हमें कोई काम ही नहीं देता है।" स्थानीय लोगों के लिए पेट पालन हो रहा मुश्किल। परिवार चलाने के लिए स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के भविष्य की स्थिति चिंताजनक।
बरेली। शहर का नाम जब भी कोई सुनता है तो उसके जहन में सबसे पहला ख्याल "झुमके" (महिलाओं के पसंद का एक आभूषण) का आता है। वैसे तो इस शहर में झुमके में अलावा भी कई और चीजें भी प्रमुख है। जिसकी मांग पूरी दुनिया में है। लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं। जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। ऐसा ही एक क्षेत्र है बरेली शहर का बाकरगंज क्षेत्र। यह क्षेत्र शहर के बाहरी हिस्से में बसा है। जो नगर निगम के दायरे में आता है। जिसमें घनी आबादी बसी हुई है। इसी घनी आबादी में बसा हुआ है एक पहाड़। जो सामान्य पहाड़ नहीं ब्लकि कूड़े का ढेर है। जिसने पहाड़ का रुप ले लिया है। इसी पहाड़ी के एक किनारे में बसा है बाकरगंज। जहां लोगों ने घर तो बना लिए हैं, लेकिन स्थिति रहने लायक नही है। द मूकनायक की टीम ने इस जगह का दौरा कर यहां रह रहे लोगों से उनकी स्थिति जानने की कोशिश की।
कचड़े के ढेर में बसा है बाकरगंज
बरेली की गिनती यूपी के बड़े शहरों मे होती है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 903,668 थी। साल 2022 तक यह आबादी बढ़कर 1,317,000 हो गई है। आज बरेली स्मार्ट सिटी के दायरे में आता है। शहर में आबादी जैसे-जैसे बढ़ने लगी, इसका रिहायसी क्षेत्र भी बढ़ने लगा, जिसके अंतर्गत बाकरगंज में लोग आकर बसने लगे।
बाकरगंज के निवासी आनंद बताते हैं कि, पहले यह क्षेत्र शहर का बाहरी हिस्सा हुआ करता था। जिसके कारण यहां शहर का सारा कचड़ा डिस्पोज किया जाता था। शहर का विकास हुआ तो यह जगह भी नगर निगम के दायरे में आ गई। जिसके कारण यहां और भी लोग आकर बस गए। लोगों ने बड़े-बड़े मकान बना लिए। लेकिन कुछ लोगों के पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। "सरकार की तरफ से भी उन्हें कोई खास सुविधा नहीं दी जा रही है। जिसके कारण कुछ लोग इस कूड़े के पहाड़ पर ही रहने को मजबूर हैं।"
अब हम उन लोगों के पास गए जो इस कूड़े के पहाड़ पर रहते हैं। यहाँ के स्थानीय लोग कचरा बीनना छोड़ना चाहते हैं लेकिन उन्हें दूसरा कोई काम नहीं मिलता।
द मूकनायक बाकरगंज सुबह के 10 बजे स्थानीय लोगों के बीच पहुंच चुका था। यहां के एक गली में प्रवेश करते ही अच्छे-अच्छे मकान बने हुए दिखाई देने लगे। जहां से नगर निगम की कूड़े वाली गाड़ियां लाइन से उस पहाड़ की तरफ बढ़ रही हैं। जैसे ही कोई कूड़े की गाड़ी उस पहाड़ तक पहुंचती, वहां पहले ही तैनात लोग उस गाड़ी के पीछे भागते हैं। ताकि कूड़े से कुछ बीन लें। जिससे उन्हें कुछ आमदानी हो जाए। इस पहाड़ी पर कुछ परिवार रहते हैं। जिनका मुख्य पेशा ही कूड़ा बीनना है। छोटे से लेकर बड़ा हर कोई यही काम करता है।
इस कूड़े के ढेर से कूड़ा बीनती हुई एक महिला हमें बताती है कि, यहां रहते हुए लगभग 15 साल हो गए हैं। इस काम को छोड़कर कुछ और करना चाहती हैं। लेकिन दूसरा कोई काम मिलता ही नहीं है। वह कहती है कि, अस्पतालों में हमें 12 घंटे के काम के सिर्फ पांच हजार देने की बात कही जाती है। वह भी कभी समय से नहीं मिलते हैं। इतने कम पैसों में हमारा घर भी नहीं चल पाता है। इसलिए दोपहर दो बजे यहां कूड़ा बीनती हूं जिससे घर का खर्चा चला सकूं।
"दुर्गन्ध हमारे जहन में बस चुकी है"
महिला के बगल में खड़े लगभग 45 वर्षीय एक सज्जन ने बताया कि, इन झुग्गियो में सभी बाल्मीकी समाज के लोग हैं। हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि यह दुर्गन्ध हमारी जहन में बस चुकी है। हमें इससे परेशानी नहीं होती है। यही हमारे जीने का साधन है। अगर काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? हमारे घरों को पहले ही एक बार तोड़ दिया गया है। हमारे पास रहने के लिए दूसरी कोई जगह नहीं है। शहर में किराए के मकान में रहने के लिए हमारे पास पैसे नहीं है। हम रोटी खाएं या किराया दें! इसलिए यही रहते हैं। तभी वह महिला कहती है कि हमने कूड़ा बीनकर ही यहां घर बनाया है। लेकिन सरकार ने उसे अवैध घोषित कर उन्हें तोड़ दिया। हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इस बस्ती के अलावा, रहने के लिए न कोई अन्य जगह है और न ही रोजगार है।
वह बताती है कि, इस क्षेत्र में नगर निगम द्वारा कूड़े को डिस्पोज करने वाला कारखाना बनाया है। जिसमें हम लोग रोजगार की तलाश में गए तो हमें वहां से भगा दिया गया, और बाहर के लोगों को वहां काम पर रखा गया है। वह बताती है कि, अधिकारियों का कहना है कि आप लोग कूड़ा ही बीनिए।
बाकरगंज के नाम से कहीं और रोजगार नहीं मिलता है
इस बस्ती के सभी लोगों के साथ रोजगार को लेकर एक समान समस्या है। बातचीत के दौरान वहां बैठे एक युवक ने बताया कि, हम भी कूड़ा बीनने के काम को छोड़ना चाहते हैं। लेकिन क्या करें, बाकरगंज का नाम सुनते ही कोई हमें काम देने का नाम ही नहीं लेता है।
कूड़े के पहाड़ के कारण शादियां नहीं हो पाती हैं
बाकरगंज का कूड़े का पहाड़ जनता का जी का जंजाल बना हुआ है। बाकरगंज के पूर्व पार्षद और डॉक्टर डॉ. इस्तेयाक अहमद का कहना है कि, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इस कूड़े को कम करने के लिए एक नाला बनाया था। जो सफल नहीं हो पाया। आलम यह है कि इस कूड़े के ढेर में कई बार मरे जानवर भी फेंके जाते हैं। इन जानवरों के चमड़े को चील, कौऐ लेकर घूमते हैं और लोगों के घर में फेंक जाते हैं। स्थिति यह है कि यहां के लोग छत्त पर कुछ सुखा भी नहीं सकते हैं। यही वजह है कि, यहां कई लोगों की शादियों नहीं हो पाती है। लोगों यहां न तो रिश्ता करते हैं और न जल्दी शादियां हो पाती हैं।
स्वास्थ्य पहलू पर बात करते हुए डॉ. अहमद कहते हैं कि, इस कूड़े के पहाड़ के कारण यहां का पानी इतना दूषित हैं कि यहां लगभग हर व्यक्ति को पेट की समस्या है। कितने लोग तो पानी से होने वाली बीमारी के कारण इस दुनिया से ही चल बसे हैं। लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं देता है। कूड़ा डिस्पोज करने के लिए जो कारखाना बनाया गया है वह कारगर नहीं है। वह भी आए दिन खराब रहता है।
गंदगी इतनी है कि इसका असर बच्चों पर भी होता है। आएं दिन यहां के बच्चों को मलेरिया, हैजा जैसी बीमारियां हो जाती हैं। लेकिन लोगों के पास यहां रहने की मजबूरी हैं। वह घर छोड़कर कहीं जा नहीं सकते हैं। इसलिए यहीं रहने के लिए मजबूर हैं।
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