दलितों पर अत्याचार के बाद कस्टोडियल डेथ के मामले में भी यूपी सबसे आगे

हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर
हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर
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नई दिल्ली। मानसून सत्र के दौरान पिछले सप्ताह कांग्रेस और टीआरस के सांसद के सवाल के जवाब में गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ने बताया था कि देश में पिछले दो सालों में दलित और आदिवासियों के प्रति अत्याचार बढ़ा है। इस सप्ताह पुलिस हिरासत (कस्टोडियल डेथ) में कितनी मौतें हुई हैं, यह आंकड़ा पेश किया गया है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर पेश किया गया है। यह आंकड़े 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2022 तक के हैं।

सबसे अधिक मौतें यूपी में

लोकसभा में पेश किए आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले दो सालों में 4484 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई है। इसमें सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई हैं। यूपी में पिछले साल पुलिस हिरासत में 501 लोगों की मौत हुईं। वहीं साल 2020-21 में यहां 451 लोगों ने हिरासत में रहने के दौरान अपनी जान गंवाई। साल 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में पुलिस हिरासत में मौत के मामले देश भर में बढ़े हैं।

पुलिस हिरासत में हुए मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश अव्वल नंबर पर है। इसके बाद पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश का नंबर आता है। लोकसभा में हिरासत और मुठभेड़ के दौरान मौत को लेकर किए गए सवालों का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार साल 2020-21 में हिरासत में हुई मौत से जुड़े 1940 मामले दर्ज किए गए हैं। जबकि साल 2021.22 में यह मामला बढ़कर 25440 हो गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस और पब्लिक ऑर्डर राज्य के विषय हैं। लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार प्राथमिक रूप से जिम्मेदार है। हालांकि केंद्र सरकार भी समय-समय पर एडवाइजरी जारी करती है।

यूपी में तो नल से लटककर लगाई फांसी

लोकसभा में पेश किए गया आंकड़ों से पुलिस का रवैया हिरासत में लिए गए लोगों के प्रति साफ दिखाई दे रहा है। इसमें भी यूपी पुलिस का हाल सबसे खराब है। नवम्बर 2021 में कासगंज में अल्ताफ नाम के शख्स की हिरासत में मौत हो गई थी। इस मौत पर पुलिस का दावा था कि अल्ताफ ने नल के पाइप से डोरी बांधकर आत्महत्या कर ली है। जबकि नल की ऊंचाई तक दो फीट थी। पुलिस की इस थ्योरी पर हर किसी ने सवाल उठाया था। सोशल मीडिया पर लोगों ने लगातार इस मौत पर सवाल उठाते हुए अपना गुस्सा जाहिर किया। वहीं दूसरी ओर अल्ताफ के परिवार ने कासंगज पुलिस पर हत्या का आरोप लगाया था। परिवार वालों के आरोप के बाद आनन-फानन में कासगंज सदर थाने के 5 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। अब इस मामले को छह महीने से ऊपर का समय बीत गया है। इस बीच इलेक्शन के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अल्ताफ का दोबारा पोस्टमार्टम करने का आदेश दिया था। फिलहाल इस मामले की जांच अब भी जारी है।

पश्चिम बंगाल की घटनाएं

पिछले साल जुलाई के महीने में पश्चिम बंगाल के दूसरे बड़े शहर आसनसोल के बराकर थाना में मुहम्मद अरमान नाम के लड़के की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। इस मौत के बाद परिजनों ने थाने में खूब हंगामा किया। मृतक अरमान अंसारी के परिजनों और पड़ोस के लोगों का कहना था कि पुलिस बिना किसी जानकारी के रात को अरमान को घर से उठाकर ले गई। पुलिस ने घरवालों को ये नहीं बताया कि उसे किस अपराध के मामले में थाने ले जा रही है। उसकी अगली सुबह अरमान के पिता को थाने में बुलाया जाता है और बताया जाता है कि उनके बेटे की मौत हो गई है।

पिछले ही साल वीरभूम जिले के मल्लारपुर इलाके में 15 वर्षीय नाबालिक की पुलिस हिरासत में मौत के बाद क्षेत्र में तनाव फैल गया था। पुलिस विभाग का कहना था कि किशोर ने थाने के बाथरूम में फांसी लगा ली थी। लेकिन भाजपा के नेताओं का कहना था कि पुलिस ने उसकी पिटाई की थी। जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

क्या होती है कस्टोडियल डेथ?

कस्टोडियल डेथ का अर्थ है हिरासत के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होना। इसके लिए हिरासत में रहते हुए मृतक पर की गई शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना मारपीट काफी हद तक जिम्मेदार है। कस्टोडियल डेथ में पुलिस का निजी या चिकित्सा परिसर, सार्वजनिक स्थान, पुलिस या अन्य वाहन और जेल में होने वाली मौत शामिल है। इसमें उस समय होने वाली मौत भी शामिल है, जब पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है या हिरासत में लिया जा रहा है।

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