यूपी: 30 रुपए रोज में कैसे भरें मवेशी का पेट, सरकारी गौशाला प्रबंधन गड़बड़ाया, संचालक परेशान!

रुधौली नगर पंचायत में बने कान्हा गौशाला की एक गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
रुधौली नगर पंचायत में बने कान्हा गौशाला की एक गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
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यूपी में सरकारी गौशालाओं का संचालन करने वाले व्यवस्थापकों के सामने मवेशियों का पेट भरना और उनका उचित प्रबंधन करना बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा। प्रति वर्ष मवेशियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, गौशालाएं क्षमता से अधिक मवेशियों का प्रबंधन करने को मजबूर हैं। हर साल बढ़ती महंगाई के बीच भूसे, चारे के दामों वृद्धि तो हुई लेकिन प्रति मवेशी पर प्रति दिन सिर्फ 30 रुपए मिलने वाले सरकारी पैसे में कोई वृद्धि नहीं हुई। नतीजन, मवेशियों के मौतों के आँकड़े भी बढ़ रहे हैं और वह सड़कों पर घूमते दिख रहे हैं।

यूपी के सरकारी गौशालाओं में मवेशियों के रखरखाव व उनके चारे के लिए की गई सरकारी व्यवस्थाओं में प्रति मवेशी के लिए प्रतिदिन के हिसाब से खर्च किए जाने वाले सिर्फ 30 रुपए की सरकारी राशि में मवेशियों का पेट भर पाना और उनका रख-रखाव कर पाना व्यवस्थापकों के लिए चुनौती बनता जा रहा है।

गौशालाओं के मवेशियों के लिए खर्च किए जाने वाले सरकारी धन के सापेक्ष, उन्हें मिलने वाली सुविधाओं और उनके भेजना प्रबंधन व चुनौतियों पर द मूकनायक ने बारीकी से पड़ताल की है।    

राज्य सरकार द्वारा सरकारी गौशालाओं में गायों के चारे-पानी की व्यवस्था के लिए जो सबसे न्यूनतम राशि गौशाला संचालकों को दी जाती है, उसमें उनका पेट भर पाना मुस्किल हो जाता है। इन गौशालाओं का प्रबंधन करने वाले जिम्मेदार भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि अभी मौजूदा समय में एक मवेशी के लिए पूरे एक दिन के लिए मिलने वाली सरकारी राशि में मवेशियों को पालने में समस्या हो रही है।

कान्हा गौशाला रुधौली नगर पंचायत, बस्ती-यूपी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
कान्हा गौशाला रुधौली नगर पंचायत, बस्ती-यूपी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

बस्ती जिले में, रुधौली नगर पंचायत के अंतर्गत बने कान्हा गौशाला की शुरुआत 2019 में हुई थी। उस समय गौशाला में गायों की संख्या कम थी। लेकिन, बीतते समय के साथ इस गौशाला में मवेशियों की संख्या भी बढ़ती गई। नगर पंचायत रुधौली के चेयरमैन धीरसेन निषाद बताते हैं कि, "गौशाले की शुरुआत में हमारे यहां 75 गायें थीं। आज गौशाला में मवेशियों की संख्या लगभग 135-140 की है। जबकि गौशाला की क्षमता सिर्फ 40 की है।"

गौशाला में मवेशियों को खिलाने के लिए रखे गए भूसे [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
गौशाला में मवेशियों को खिलाने के लिए रखे गए भूसे [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

गौशाला में क्षमता से अधिक मवेशियों के होने और इस महंगाई में भूसे के बढ़े हुए दामों के बीच गौशाला प्रबंधन में आने वाली समस्याओं के बारे में वह बताते हैं कि, भूसे के दामों की कीमत हमेशा से अस्थाई रहा रही है। "हम भूसे को खरीदने के लिए टेंडर करते हैं। यह भूसा हमें कभी 700, 800, 1000 और 1200 रुपए प्रति क्विंटल में खरीदना पड़ता हैं," उन्होंने कहा।

वह आगे बताते हैं, "गौशाला में जितने मवेशी हैं उतने का पैसा हमें रिलीज(भुगतान) होता है। एक मवेशी का 30 रुपए मिलता है। उसी पैसे में हमें भूसा खिलाना हैं, हरा चारा (बरसीम,चरी) खिलाना है, और उसी पैसे में दाना (चोकर, कपिल पशु आहार) भी खिलाना है।" उन्होंने कहा, "कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि 8-8 महीने हो जाते थे, लेकिन पैसे का भुगतान नहीं होता है। जब जिलाधिकारी को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया तब भुगतान हुआ। ऐसे में काफी परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।"

नगर पंचायत रुधौली के चेयरमैन धीरसेन निषाद [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
नगर पंचायत रुधौली के चेयरमैन धीरसेन निषाद [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

"हमें चारे के अलावा किसी भी अन्य चीज का कोई भुगतान नहीं मिलता। मुझे लगता है कि गौशाला चलाने के लिए बेहतर यह होगा कि, अगर सरकार एक मवेशी पर खर्च की जाने वाली राशि को 30 की जगह उसे बढ़ाकर 50 कर दें तो बेहतर होगा। गौशाला में मवेशियों के रखरखाव के लिए हमें अलग से कोई भी भुगतान नहीं होता है। इसके लिए एक साल में 5 से 7 लाख रुपए मेन्टीनेंस (प्रबंधन) के लिए मिलना चाहिए। एक साल में सिर्फ एक बार या दो बार ही जिलाधिकारी के यहां से यह पैसा भुगतान किया जाता है। वह भी सिर्फ उनके भोजन के लिए। कई बार भुगतान में देरी होती है तो जिलाधिकारी को पत्र के माध्यम से रिमाइन्डर भी भेजना पड़ता है।" सरकार द्वारा सुधार के लिए अपील करते हुए नगर पंचायत चेयरमैन ने द मूकनायक से कहा।

"अक्सर लोग गायों को तब छोड़ देते हैं जब उनके शरीर में कुछ नही बचता। ऐसी दशा में बहुत सी गायें बुजुर्ग हो जाती हैं या वह अस्वस्थ्य हो जातीं हैं, और उनकी मौत हो जाती है।" नगर पंचायत चेयरमैन ने कहा।

हालांकि, चारे की कमी की वजह से मवेशियों के मौत होने की बात नगर पंचायत चेयरमैन ने नहीं स्वीकारी।

राजेश त्रिपाठी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
राजेश त्रिपाठी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी(53) बताते हैं, "गौशालाओं में क्षमता से अधिक दो गुना या तीन गुना मवेशी हैं। योगी सरकार द्वारा बीते कई सालों से एक मवेशी पर सिर्फ 30 रुपए प्रतिदिन उनके चारे की व्यवस्था हेतु दिए जा रहे हैं, जबकि बीते सालों में महँगाईं में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। ऐसे में किसी भी गौशाला संचालक के सामने समस्या खड़ी हो सकती है। सरकार को गौशाला में मवेशियों पर खर्च किए जाने वाले बजट में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए।"

गौशाला में घायल व बीमार पड़ी गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
गौशाला में घायल व बीमार पड़ी गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

नाम न छपने के आग्रह पर एक सरकारी गौशाला में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि, "हमारे यहां प्रतिमाह 10 से 15 मवेशी गौशाला में लाए जाते हैं। जबकि, 5 से 6 हर महीने मर जाते हैं। कई बार कुछ बड़े मवेशी छोटे गायों को घायल कर देते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है।"

एनजीओ, उज्ज्वल सेवा संस्थान के सचिव, नदियों को प्रदूषणमुक्त और स्वच्छ बनाए रखने के लिए प्रयासरत "आमी बचाओ संघ" संगठन के अध्यक्ष, व बीजेपी के मण्डल प्रभारी विजय नरायन तिवारी बताते हैं, "गौशाला में मवेशियों की समय से देखरेख नही हो पाती है, और गौशालाओं का प्रबंधन करने वाले जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण मवेशियों की मौत होती है।" उन्होंने कहा, "होने वाली मौतों और सड़कों पर छुट्टा घूमने वाले मवेशियों के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है। गौ-पालक (गाय पालने वाले) गायों को तब तक अपने पास रखते हैं जब तक वह दूध देती है। लेकिन जब वह दूध देना बंद कर देती है तो उसे सड़कों पर छोड़ देते हैं। जिस तरह घर के परिवार वृद्ध हो जाने पर भी परिजन उनकी सेवा अंतिम समय तक करते हैं उसी तरह उन मवेशियों को भी हमें छोड़ना नही चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए।"

उज्ज्वल सेवा संस्थान के सचिव, और भाजपा के मण्डल प्रभारी विजय नरायन तिवारी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
उज्ज्वल सेवा संस्थान के सचिव, और भाजपा के मण्डल प्रभारी विजय नरायन तिवारी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

प्रति मवेशी पर प्रतिदिन के हिसाब से मिलने वाला सरकारी धन 30 रुपए कम हैं या पर्याप्त हैं? के सवाल पर वह कहते हैं, "अगर गौशालों का प्रबंधन करने वाले व्यवस्थापकों को मौजूदा समय में मिलने वाली राशि में मवेशियों का पेट भरने और उनके रखरखाव में समस्या हो रही है तो उन्हें अपनी बात शासन तक पहुंचानी चाहिए। सरकार निश्चित रूप से इसपर विचार करेगी।"

नेशनल सीक्रेटरी और समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजीव राय 11 मई को अपने गांव की एक गौशाला की वीडिओ को पोस्ट करते हुए ट्वीट में लिखते हैं, "ये मेरे मऊ के पिजड़ा गांव में सरकारी गौशाला है। यहां दर्जनों गायें रोज भूख से तड़प कर मर रहे हैं, भूषा भी अधिकारी खा गए। धिक्कार है!"

2019 में, पहले कार्यकाल के दौरान, योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य के बजट में गौशालाओं के लिए धन आवंटित किया था, और जिला प्रशासन और नगर निगमों को गौ-आश्रयों की व्यवस्था करने के लिए कहा था।

गौशाला में पानी पीती गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
गौशाला में पानी पीती गाय [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

दूसरे कार्यकाल में, 1 मई, 2022 को यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा निर्देशित किया गया कि, "विकास खंड स्तर पर 2,000-2,500 गोवंश क्षमता वाले गो-आश्रय स्थल स्थापित करने की योजना बनाई जाए। गोवंश को गर्मी अथवा धूप से सुरक्षित रखने के प्रबंध किए जाएं। गो-आश्रय स्थलों में हरा चारा, भूसा, चोकर, पानी आदि की समुचित व्यवस्था की जाए।"

यूपी सरकार गौशालाओं और अस्थायी आश्रयों के लिए प्रति पशु 30 रुपये दैनिक भत्ता प्रदान करती है। बजट दस्तावेजों के अनुसार, यूपी सरकार ने 2019-20 में छुट्टा मवेशियों को आश्रय देने और उन्हें खिलाने के लिए 203 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि 2021-22 के लिए इस खर्च का अनुमान 300 करोड़ रुपये था।

राज्य पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक जय प्रकाश ने कहा, "हम 1-20 जनवरी से आवारा मवेशियों से के लिए एक विशेष कार्यक्रम चला रहे हैं, जिसके तहत राज्य में लगभग 90,000 जानवरों को 5,500 गौशालाओं में भेजा जा चुका है। कुल मिलाकर, इन सुविधाओं में वर्तमान में लगभग 850,000 मवेशी रखे गए हैं।"

गौशाला की नाद में भूसा खाती गायें [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
गौशाला की नाद में भूसा खाती गायें [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

पशु व्यापार पर प्रतिबंधों के नतीजे

2019 के पशुधन सर्वेक्षण के अनुसार, योगी आदित्यनाथ द्वारा गोवंश व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के बाद आवारा मवेशियों में 117% की वृद्धि हुई है। इसमें कोई शक नहीं कि, प्रदेश में गौ-व्यापार प्रतिबंध के बाद से किसान सबसे ज्यादा आवारा मवेशियों के खतरे का सामना कर रहे हैं। जबकि, शहरों में इन मवेशियों से लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। 

पशु व्यापार में गिरावट का असर उनके पालने वालों पर भी देखा गया है। 2019 पशुधन जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, यूपी में 2012 और 2019 के बीच पालतू मवेशियों की संख्या में 2.75% की गिरावट आई है, भले ही यह राष्ट्रीय स्तर पर 1.3% की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, यूपी के ग्रामीण इलाकों में आवारा मवेशियों की संख्या 117% बढ़ी है, जो 2012 में 495,000 से 2019 में 1.07 मिलियन हो गई। मवेशियों को लेकर हो रही समस्याओं से निपटने के लिए यूपी के मुजफ्फरनगर में, सितंबर 2020 को एक किसान महापंचायत ने आवारा मवेशियों की समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए एक आपातकालीन हेल्पलाइन की मांग भी की थी। लेकिन इसकी सुधि नही ली गई।

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