प्रयागराज। यूपी के प्रयागराज जिले के मेला ग्राउंड में आज से 15 साल पहले मूर्ति बेचकर घर चलाने वाले दलित राजू सोनकर की घर जाते समय अपर मेला अधिकारी की गाड़ी की टक्कर लगने से मौत हो गई थी। राजू सोनकर की मौत के बाद कई दलों के नेता एक मंच पर इकट्ठा हो गए थे। स्थानीय लोगों ने मृतक राजू सोनकर कश्यप जीटी रोड पर रखकर जाम लगा दिया था इसके कारण पूरा प्रयागराज ठप हो गया था। 3 घंटे भीषण जाम और आक्रोश के बीच पहुंचे एसपी सिटी और एडीएम सिटी ने पीड़ित परिवार की मांग पर 5 लाख रुपये, सरकारी नौकरी और एक मुफ्त दुकान मुआवजे के रूप में दिलवाने का लिखित आश्वासन दिया था।
लेकिन, 15 साल बीत जाने के बाद भी इस परिवार को फूटी कौड़ी तक नहीं मिल पाई है। राजू सोनकर की पत्नी रेनू सोनकर न्याय और मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पर मजबूर है। आरोप है कि, इन 15 सालों में दलित महिला रेनू सोनकर ने जिले में आने वाले सभी डीएम से 100 से अधिक बार मुलाकात कर न्याय और मुआवजे की गुहार लगाई, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।
रेनू के मुताबिक, 3 महीने पहले उनकी आजीविका का एकमात्र साधन मूर्ति की दुकान भी प्रशासन ने तोड़ दी। जिसके बाद से परिवार सिर्फ नमक और रोटी खा कर गुजारा कर रहा है। इस मामले में जिलाधिकारी प्रयागराज से कई बार सम्पर्क किया गया। लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश के सभी अधिकारियों को सख्त हिदायत के बावजूद भी जिलाधिकारी ने अपना सीयूजी नम्बर खुद नहीं उठाया। फोन कार्यालय में तैनात कर्मचारी ने उठाया।
द मूकनायक ने सुबह 10 बजे जिलाधिकारी से सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन जिलाधिकारी के स्टेनो ने रिसीव किया, "साहब सुबह 10 बजे से 12 बजे तक सुनवाई करते हैं, इसलिए बाद में ही बात हो पाएगी।"
दोबारा जिलाधिकारी से दोपहर 12:20 पर सम्पर्क किया गया। इस बार भी फोन स्टेनो ने ही उठाया। स्टेनो द्वारा बताया गया कि, "साहब जनसुनवाई के बाद फ्री तो हुए थे, लेकिन इसके बाद मीटिंग में चले गए" जब स्टेनो से पूछा गया कि मीटिंग से कब फ्री हो जाएंगे तो स्टेनो ने कहा "अधिकारी हैं, मीटिंग कब तक चलेगी मुझे पता नहीं है, कुछ बता नहीं सकते।"
क्या है पूरा मामला?
प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र के पडाइनगंज में दलित महिला रेनू सोनकर और उनका परिवार रहता है। रेनू के तीन बेटे शुभम सोनकर, ऋषभ सोनकर और विषत सोनकर हैं। रानू सोनकर के पति राजू सोनकर मेला परेड ग्राउंड में मूर्ति बेचकर घर चलाते थे। 21 अप्रैल 2007 को राजू सोनकर दोपहर खाना खाने के लिए स्कूटर पर घर लौट रहे थे इस दौरान अपर मेला अधिकारी मुन्नीलाल पांडे की सरकारी गाड़ी ने राजू सोनकर की स्कूटर पर जोरदार टक्कर मारी। दुर्घटना के समय एडीएम गाड़ी में मौजूद थे। टक्कर लगने के कारण राजू सोनकर बुरी तरह घायल हो गए थे। उन्हें गंभीर हालत में जिला अस्पताल में आनंद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें लखनऊ के एसपीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया। लखनऊ आते समय रायबरेली के पास राजू सोनकर ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया था।
राजू सोनकर की मौत के बाद शुरू हुआ था बवाल
21 अप्रैल 2007 को एडीएम मुन्नी लाल पांडे की गाड़ी से कुचल कर मौत हो जाने के बाद 22 अप्रैल 2007 परिजनों स्थानीय लोगों और कई दलों के नेताओं ने प्रयागराज के जीटी जवाहर चौराहे पर राजू सोनकर का शव रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया था। इस दौरान लगभग 3 घंटे से अधिक शहर में चक्का जाम लगा रहा। शहर में आवागमन की सभी व्यवस्थाएं पूरी तरीके से ठप हो गई थी।
मौके पर पहुंचे तत्कालीन एसपी सिटी और एडीएम सिटी ने दिया था लिखित आश्वासन
22 अप्रैल 2007 को जीटी जवाहर चौराहे पर भारी प्रदर्शन और बवाल की सूचना मिलने पर तत्कालीन एडीएम सिटी आरपी सिंह और तत्कालीन एसपी सिटी एच एन सिंह मौके पर पहुंचे थे। अधिकारियों के आदेश के बाद ADM मुन्नी लाल पांडे के खिलाफ नामजद एफ आई आर दर्ज की गई थी। इन अफसरों ने प्रदर्शन को समाप्त किए जाने का अनुरोध किया। इस पर परिजनों ने 5 लाख की सहायता राशि, सरकारी नौकरी और एक स्थाई दुकान की मांग रखी थी। पीड़ित परिजनों की मांगों को स्वीकार करते हुए एसपी सिटी और एडीएम सिटी ने लिखित रूप में सरकार द्वारा मदद दिलवाए जाने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद यह धरना प्रदर्शन खत्म हुआ था।
घर में पत्नी और तीन छोटे बच्चे
21 अप्रैल 2007 को जब राजू सोनकर की मौत हुई तब उस समय राजू सोनकर के परिवार में उनकी पत्नी रेनू सोनकर और तीन छोटे बच्चे शुभम सोनकर 10 वर्ष, ऋषभ सोनकर 8 वर्ष विशत सोनकर 7 वर्ष के थे। परिवार के मुखिया की मौत हो जाने के बाद बच्चों की देखभाल और जीविकोपार्जन का जिम्मा राजू सोनकर की पत्नी रेनू सोनकर पर आ गया था।
कोर्ट के चक्कर लगा रहा पीड़ित परिवार, छूट रही न्याय की उम्मीद
पीड़ित परिवार के मुताबिक पूरा मामला कोर्ट में भी चल रहा है। रेनू सोनकर ने बताया, " रोजी-रोटी कमाने के साथ ही बच्चों की देखभाल भी करती आ रही हूं। कोर्ट केस भी चल रहा है। बार-बार पेशी होने पर कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़ रहे हैं। 2013 में पेट का ऑपरेशन होने के बाद मैंने कोर्ट जाना बंद कर दिया था। एक साल पहले कोर्ट का नोटिस आया था। अब फिर कोर्ट जाना पड़ता है।"
परिवार को नहीं मिली फूटी कौड़ी, 15 साल में 100 बार डीएम से मिल चुकी
रेनू सोनकर के मुताबिक, 15 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें ना तो सरकार की तरफ से 5 लाख मिले हैं, और ना ही बच्चे को सरकारी नौकरी दी गई। पीड़ित परिवार को एक अस्थाई दुकान दिए जाने का भी वादा किया गया था। उसे भी प्रशासन उपलब्ध नहीं करा पाया है। वह बीते 15 सालों में 100 से अधिक बार डीएम से मिल चुकी हैं। इस दौरान कई डीएम आये और चले गए लेकिन सुनवाई नहीं हुई है। रेनू ने बताया, 2022 में अब तक जिलाधिकारी कार्यालय के 6 चक्कर लगा चुकी है। वहीं 2021 में कोरोना के बीच 5 बार ही बार जा सकी थी।
3 महीने पहले तोड़ दी गई दुकान
पीड़ित परिवार के मुताबिक, परेड ग्राउंड में उनकी एकमात्र आजीविका का साधन मूर्ति की दुकान थी। जिससे अभी तक किसी तरह परिवार का गुजर-बसर चल रहा था। रेनू सोनकर ने बताया कि, 3 महीने पहले यह दुकान भी जमींदोज (तोड़ दी गई) कर दी गई जिसके बाद उनकी आजीविका का साधन भी खत्म हो गया है।
बच्चों ने छोड़ दी पढ़ाई, मुकदमा लड़ने के लिए भी रकम नहीं
रेनू सोनकर ने द मूकनायक से अपना दर्द साझा करते हुए बताती है, "मूर्ति की दुकान से ज्यादा कमाई तो नहीं हो पाती थी, लेकिन घर चलाने भर के पैसे आ जाते थे। आमदनी न होने के कारण तीनो बच्चो की पढ़ाई भी छूट गई है। कोर्ट के भी चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कोर्ट में पेशी और आने-जाने के दौरान भी काफी रुपया खर्च हो जाता है। दुकान टूट जाने के बाद अब हर पल मुश्किल लग रहा है।"
नमक रोटी खाकर जिंदा रहने की कोशिश कर रहा परिवार
पति की मौत हो जाने के बाद अफसरों द्वारा मदद ना मिलने के साथ ही 3 महीने पहले दुकान तोड़ दिए जाने के कारण परिवार की आजीविका का साधन भी समाप्त हो गया है। रेनू फोन कर बताती है, "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं, किसी तरह नमक रोटी खाकर जिंदा हूँ।"
सीएम की सख्त हिदायत के बाद भी अधिकारी खुद नहीं उठाते फोन
रेनू सोनकर के मामले को लेकर द मूकनायक ने दो बार प्रयागराज के जिलाधिकारी से उनके सीयूजी नंबर पर संपर्क किया। दोनों ही बार जिलाधिकारी के स्टेनों ने फोन उठाया। हैरान करने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री ने कई बार अधिकारियों को सीयूजी नम्बर खुद उठाने की सख्त हिदायत दी है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने कई बार यह भी कहा है कि यदि अधिकारी ऐसा नहीं करते हैं, तो उनपर कार्रवाई की जाएगी। बावजूद इसके अधिकारियों को फोन करने पर उनके कार्यालय में तैनात कर्मचारी ही फोन उठाता है।
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