‘साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जैसा हो संघर्ष!’ वो महिला जिसने सड़कों पर बांटे 1857 की क्रांति के पर्चे

सेवानिवृत्त प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, पूर्व कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय [फोटो साभार- @aditytiwarilive]
सेवानिवृत्त प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, पूर्व कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय [फोटो साभार- @aditytiwarilive]
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"देश में साम्प्रदायिक तनाव के बीच, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जैसे संघर्ष की अपील" — तपती गर्मी में महिला ने सड़कों पर बांटे 1857 की क्रांति के पर्चे

लखनऊ की सड़क पर वायरल वीडियो में 1857 क्रांति के परचे बांटती नजर आई सामाजिक कार्यकर्ता से द मूकनायक की खास बातचीत।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक सड़क पर लोगों को 1857 की आजादी की लड़ाई के पर्चे बांटती नजर आई एक वयोवृद्ध महिला का वीडियो तेजी से इंटरनेट पर वायरल हो गया। महिला लोगों को साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ एक जुट होकर लड़ने की अपील करती नजर आ रही है।

वीडियो वायरल होने के पश्चात बुजुर्ग महिला की पहचान सेवानिवृत्त प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा के रूप में हुई। वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रह चुकी है। द मूकनायक टीम ने रूपरेखा वर्मा से मुलाकात कर वायरल वीडियो व पर्चे में दिए जा रहे संदेश की प्रासंगिकता के संबंध में बात की। पेश है साक्षात्कार के कुछ अंश:

एकजुट जनता ने अंग्रेजों को हराया

वर्मा ने कहा, "देश की आजादी की 75वीं सालगिरह पर तमाम संस्था व संगठन विविध कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं। इसीक्रम में हम लोगों ने भी एक कार्यक्रम गत 5 जुलाई को 'साझी शहादत-साक्षी विरासत' अभियान के तहत आयोजित किया था। यह कार्यक्रम लखनऊ शहर के चिनहट में उस जगह पर आयोजित किया गया था। जहां 1857 में अवध के नवाब के बंदी बना लिए जाने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ स्थानीय जनता ने एकजुट होकर संघर्ष किया था। अंग्रेजों को हराया था। कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को धार्मिक वैमनस्य मिलजुल कर खत्म करने का संदेश देना था। मैं सड़क पर संदेश लिखे पर्चे बांट रही थी। इस दौरान मेरे एक साथी ने यह वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया जो वायरल हो गया।"

नफरत के खेल से दूर रहें

उन्होंने कहा "राजनीतिक पार्टियों ने जो साम्प्रदायिक माहौल तैयार किया है। आम लोग इसके पीछे के खेल को समझे। नफरत के खेल से दूर रहे। जिस तरह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की लड़ाई सभी सम्प्रदाय व जाति के लोगों ने मिलकर लड़ी। उसी तरह की लड़ाई आज हमें इस साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ लड़नी है।"

धर्म के लिए सरकार नहीं बनती

"लोकतंत्र में धर्म के लिए सरकार नहीं बनती है। सरकार जनता के लिए बनती है और उसकी बेहतरी के लिए काम करती है। आज लोगों को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है। ताकि आम लोग महंगाई, बेरोजगारी, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के बदतर हालात पर बात नहीं करें। इस पूरे अभियान का मकसद लोगों में धार्मिक सद्भाव को स्थापित करना है," वर्मा कहती हैं।

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