लखनऊ। यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने जल्द चुनाव कराने के हाईकोर्ट के आदेश पर भी रोक लगाने के साथ ही नया नोटिफिकेशन जारी करने को कहा है। मामले पर अब 3 सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर संज्ञान लिया। पीठ ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग को 31 मार्च, 2023 तक स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दे पर फैसला करना होगा।
जानिए क्या है पूरा मामला ?
यूपी सरकार ने 5 दिसम्बर 2022 को नगर निकाय के चुनावों को लेकर आरक्षण सूची जारी की थी। इस आरक्षण सूची को लेकर लगभग 93 से अधिक याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए ओबीसी आरक्षण सूची को पूरी तरह निरस्त कर दिया था। वहीं हाईकोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण ही तत्काल चुनाव कराने का आदेश दिया था। इसी के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। हाईकोर्ट के फैसले के तत्काल बाद योगी सरकार ने ओबीसी के ट्रिपल टेस्ट के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग भी बना दिया था।
क्या है हाईकोर्ट का फैसला ?
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने वैभव पांडेय समेत लगभग 93 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के निकाय चुनावों के लिए जारी 5 दिसम्बर 2022 के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था। इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने एससी, एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षण प्रस्तावित किया था। न्यायालय ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं लागू किया जाएगा। कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग को छोड़कर बाकी सभी सीटों को सामान्य सीटों के तौर पर अधिसूचित करने का भी आदेश दिया था।
महिला आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दें
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि महिला आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दिया जाए। न्यायालय ने सरकार को निकाय चुनावों की अधिसूचना तत्काल जारी करने का आदेश दिया था। यह भी टिप्पणी की है कि यह संवैधानिक अध्यादेश है कि वर्तमान निकायों के कार्यकाल समाप्त होने तक चुनाव करा लिए जाएं।
ट्रिपल टेस्ट के बिना आरक्षण नहीं
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि के कृष्ण मूर्ति व विकास किशनराव गवली मामलों में दिए ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाए बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 243-यू के तहत निकायों के कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व चुनाव करा लेने चाहिए जबकि ट्रिपल टेस्ट कराने में काफी वक्त लग सकता है, लिहाजा निकायों के लोकतान्त्रिक स्वरूप को मजबूत रखने के लिए व संवैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि निकाय चुनाव जल्द करा लिए जाएं
हाईकोर्ट के फैसले के बाद ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बना
हाईकोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार ने साफ किया कि बिना ओबीसी आरक्षण चुनाव नहीं होगा। फैसले के अगले ही दिन ओबीसी आरक्षण देने के लिए आयोग का गठन कर दिया गया। आयोग में अध्यक्ष के साथ चार सदस्यों को नामित किया गया है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाया गया है। आयोग में दो पूर्व आईएएस और दो न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को सदस्य बनाया गया है। आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश राम अवतार सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। सेवानिवृत्त आईएएस चोब सिंह वर्मा, पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा और पूर्व अपर विधि परामर्शी व अप जिला जज ब्रजेश कुमार सोनी को सदस्य नामित किया गया है। इसके साथ ही सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी।
क्या है ट्रिपल टेस्ट
शीर्ष अदालत के निर्णयों के तहत ट्रिपल टेस्ट में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया जाता है जो स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति व प्रभाव की जांच करता है, तत्पश्चात ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को प्रस्तावित किया जाता है तथा उक्त आयोग को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होने पाए।
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