-लूट का फ़र्जी खुलासा करने के लिए यूपी पुलिस ने रचा षड्यंत्र, तीन निर्दोषों पर थर्ड डिग्री टार्चर!
-मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम ने दलित हेड कांस्टेबल को फंसाया। सीएम के आदेश के बाद भी नहीं दर्ज हुई एफआईआर, 7 साल से न्याय के लिए भटक रहा पीड़ित। अधिकारी खुद नहीं उठा रहे अपना सीयूजी नंबर।
कानपुर। जिले में सात साल पहले 3 अगस्त, 2014 को बर्रा इलाके के आठ रामगोपाल चौराहे के जरौली फेज-2 में हुई लूट की घटना में दर्ज मुकदमे और घटना का खुलासा करने के लिये आईपीएस अधिकारी के दबाव पड़ने पर थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। तीन निर्दोषों को पुलिस ने थाने ले जाकर पूरी रात बर्बरता से पीटा और जबरन जुर्म कुबूलवाने के लिए थर्ड डिग्री भी दी। थाने पर पकड़कर लाये गए आरोपियों से कथित रूप से रुपयों की वसूली भी की गई। बाद में उन्हीं रुपयों से मिलता जुलता दूसरा सामान और देशी कट्टा खरीदकर पूरी घटना का फर्जी खुलासा कर दिया। पूरे मामले में एक ऑडियो लीक होने पर सारी गाज उस हेड कांस्टेबल पर आ गिरी जो बस अपने अधिकारियों के आदेशों पालन कर रहा था। आईजी ज़ोन कानपुर के आदेश पर हेड कांस्टेबल को सस्पेंड कर उसके खिलाफ विभागीय जांच बैठा दी गई। उसके खिलाफ मुकदमा भी लिखकर उसे जेल भी भेज दिया गया।
हलांकि, डीआईजी कानपुर की जांच में निर्दोष साबित होने पर उसे बहाल कर दिया गया। दो महीना 21 दिन जेल में रहने से हुई परेशानी, बदनामी के साथ ही जब छह महीने के वेतन के साथ ही सेवानिवृत्ति के बाद हेड कांस्टेबल की पेंशन और फंड पर प्रभाव पड़ने लगा, तो हेडकांस्टेबल ने फर्जी खुलासा करने वाली टीम और खुद को निर्दोष साबित करने की लड़ाई लड़ने की शुरुआत कर दी।
पूरे मामले में हेड कांस्टेबल ने सूबे के मुख्यमंत्री, देश के राष्ट्रपति सहित विभिन्न विभागों को लिखित रूप से कई बार शिकायत भी की, लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि सीएम कार्यालय से दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एसएसपी को मुकदमा दर्ज करने के आदेश भी हुए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह हेड कांस्टेबल पदोन्नति मिलने के बाद अब दारोगा पद पर नौकरी कर रहा है, मात्र तीन महीने की नौकरी बची है। मुकदमा चलने के कारण सेवानिवृत्ति और पेंशन का लाभ नहीं मिल सकेगा, इसी डर ने दारोगा को अधिकारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के दफ्तर का चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया। पूरे मामले में यूपी के पुलिस महानिदेशक सहित जिले के अधिकारियों को इस मामले की जानकारी के लिए उनके सीयूजी नंबर पर फोन किया गया, इस दौरान अधिकारियों का फोन टेलीफोन ऑपरेटर ने उठाया तो किसी अधिकारी के पीआरओ ने, और किसी के गनर ने फोन उठाकर साहब के व्यस्त होने की बात कही।
विस्तार से जानें पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के कानपुर के बर्रा थाना क्षेत्र में 3 अगस्त 2014 को एक सर्राफा व्यापारी से लाखों की ज्वैलरी का भरा बैग लूट लिया गया था। बर्रा के जरौली फेस टू निवासी ललित सोनी की घर से चंद कदमों की दूरी पर चंदेल मार्केट में गजानन नाम से ज्वैलरी की दुकान थी। रोज की तरह ललित शनिवार देर शाम दुकान बंद कर ज्वैलरी से भरा बैग लेकर घर जा रहे थे, तभी काली पल्सर बाइक पर सवार दो युवक उनके हाथ से बैग छीनकर फरार हो गए थे। जानकारी के मुताबिक़, घटना के खुलासे के लिए तत्कालीन आईजी जोन कानपुर आशुतोष पांडेय ने बर्रा के थानेदार संजय मिश्रा को दो दिन में घटना का खुलासा करने का अल्टीमेटम दिया था। जिसके बाद थाने ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर घटना का खुलासा करने का दावा किया था।
इस पूरी घटना की कहानी और पुलिस की भूमिका की पोल खुद उस हेड कांस्टेबल ने खोल दी, जिसे अन्य पुलिसकर्मियों ने खुद को बचाने के लिए उसे फंसा दिया। 2014 में बर्रा थाने में दयाशंकर वर्मा हेड कांस्टेबल पद पर तैनात थे। उन्होंने बताया कि, थानेदार का यह सारा फर्जीवाड़ा उनके सामने ही रचा गया। थाने का छोटा कमर्चारी होने के कारण वह इस मामले में कुछ भी कर पाने में असमर्थ था, बस अपने अधिकारियों के दिए आदेशों का पालन करता जा रहा था। तब उसे यह नहीं पता था कि यही अधिकारी उसका साथ नहीं देंगे और खुद का गिरेबान बचाएंगे। आइये खुद ही पढ़िए हेड कांस्टेबल के द्वारा बताई गई पुलिसकर्मियों के काली करतूतों की कहानी को जब पुलिस ने अमनवीयता की सारी हदों को पार कर दिया और तीन निर्दोषों को जेल भेज दिया..
घटना के चश्मदीद और बर्रा थाने के तत्कालीन हेड कांस्टेबल दया शंकर वर्मा ने बताया, "बर्रा थाने की गुजैनी चौकी, जिसे केसा की चौकी भी कहा जाता है, के तत्कालीन चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह और दारोगा शीतला प्रसाद मिश्रा सरकारी वाहन में दो लोगों को पकड़ कर ले आए। एक का नाम था विनोद गुप्ता और दूसरे का नाम था मोनू सिंह। तकरीबन दो घंटे बाद मेरे पास चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह आए, उन्होंने मुझसे कहा — एसओ संजय मिश्रा ने कहा है कि विनोद को छोड़ दो। उसकी मामी और मां आई हुई हैं, वो जो पैसा दे वो ले लो।"
"मैं दोनों के पास गया, विनोद गुप्ता की मां ने मुझे दस हजार रूपये दिए। पैसे लेने के बाद उसको जब छोड़ने लगे तो चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह बोले इसकी तलाशी ले लो। जब मैंने उसकी तलाशी ली, तो उसके पास जेब से चार हजार रूपये निकले। चार हजार रूपये और दस हजार मिलाकर कुल चौदह हजार रूपये मैंने चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह को दे दिए," दया शंकर ने कहा।
घटना के चश्मदीद हेड कांस्टेबल घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं, जब विनोद गुप्ता को छोड़ा जा रहा था, तब वह मिन्नते करने लगा और बोला – साहब मैं गुप्ता हूँ, बनिया हूँ, बेईमानी वाला आदमी नहीं हूँ, मैं यहां से घर जा रहा हूँ, दो घंटे आप के साथ रहा हूँ, कम से कम एक हजार रूपये वापस करवा दो।" दया शंकर आगे बताते हैं, "मैने भी दरोगा जी से कहा साहब! इसकी मां और मामी आई हैं, यहां से हरवंश मोहाल तक जाएगा, कुछ पैसा लगेगा, एक हजार भाड़ा दे दो। दरोगा जी ने एक हजार रूपये वापस कर दिए। बचे हुए 13 हजार रूपये दरोगा जी ने ले लिये और चले गए। अब मोनू सिंह मेरे साथ चौकी में रह गया।"
पकड़े गए युवक को चौकी में किया बंद
घटना के चश्मदीद हेड कांस्टेबल दयाशंकर आगे बताते हुए कहते हैं, "एसओ संजय मिश्रा का मेरे पास फोन आया। एसओ संजय मिश्रा ने कहा- 'वर्मा जी! जरा ध्यान कर लेना, कहीं वह भाग न जाये, वरना तुम्हे सस्पेंड होना पड़ेगा' इसके बाद मैंने चौकी का गेट बंद करके ताला लगा लिया और मैं और मोनू सिंह चौकी में ही रूक गए।" थोड़ी देर बाद थानेदार साहब का फोन आया और वह बोले- "मोनू सिंह को बर्रा लेकर आओ।"
"आदेश के बाद मैं मोनू सिंह को बर्रा थाने लेकर पहुंचा। वहां उसे थाने में न ले जा करके बर्रा थाने के पास ही बर्रा चौकी के अंदर ले जाया गया। वहां ले जाकर उसे बैठा दिया गया। बर्रा चौकी में पहले से ही एक आदमी बैठा हुआ था। उसका नाम और पता मैं नहीं जानता था। थोड़ी देर में थाने में एक हिस्ट्रीशीटर नीतू नाई आ गया। बाद में जानकारी हुई कि जिस व्यक्ति को बैठाया गया था वो नीतू नाई का बहनोई था। नीतू नाई को बैठा लिया गया और उसके बहनोई को छोड़ दिया गया। अब चौकी में नीतू नाई और मोनू सिंह बचे थे," दयाशंकर ने बताया।
देर रात पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए निर्दोष
मामले में क्रम से जानकारी देते हुए घटना के चश्मदीद हेड कांस्टेबल बताते हैं, "देर रात एसओ संजय मिश्रा, दरोगा वीरेंद्र प्रताप सिंह, दारोगा शीतला प्रसाद मिश्रा और दारोगा विनोद कुमार सिंह ने चौकी के अंदर ही नीतू नाई और मोनू सिंह को मारना -पीटना शुरू कर दिया। इन दोनों को पट्टो से और लाठी-डंडो से पीटा गया।" पुलिस की विभीषिका बताते हुए तत्कालीन हेड कांस्टेबल और पूरी घटना के चश्मदीद दया शंकर वर्मा बताते हैं, "चार लोगों ने दोनों के हाथ-पांव पकड़े और मुंह और नाक में पानी भरना शुरू कर दिया।"
दया शंकर आगे बताते हुए कहते हैं, पुलिस की इस बर्बरता से हारकर मोनू सिंह बोला- 'साहब! हमको न मारो! जिसको आपने 13 हजार रूपये लेकर छोड़ा था, हमें उसके भाई के पास ले चलो उसका नाम मनोज गुप्ता है, मैं उसकी गाड़ी चलता हूँ, वह मेरा मालिक है, और हरवंश मोहाल में रहता है। आप जो भी कहोगे — जो लूट का सामान है, सब नया ख़रीदकर दे देंगे।'
दयाशंकर आगे बताते हैं, "इसके बाद सरकारी गाड़ी इनोवा में मैं बैठा। उसमें तत्कालीन चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह, दारोगा शीतला प्रसाद मिश्रा, और मोनू सिंह बैठे। हम चारों गाड़ी में बैठकर मनोज गुप्ता को लेने गए। हरवंश मोहाल पहुंचकर मोनू सिंह ने मनोज गुप्ता से बात करने के लिये चौकी इंचार्ज से मोबाईल माँगा, उन्होंने नहीं दिया। चौकी इंचार्ज ने मुझसे मेरा मोबाईल देने को कहा और मैंने उसे दे दिया। मोनू सिंह की बात मनोज गुप्ता ने नहीं मानी और बोला- वर्मा जी! से बात कराओ, जब मैंने बात की तो मैंने भी वही बात कह दी जो मोनू सिंह ने कही — '13 हजार में तुम्हारा भाई छूट गया है, पांच-पचास हजार तुम भी ले आओ!' मनोज गुप्ता मेरी बात मान गया क्योंकि उसकी मां मुझसे उसके भाई को छुड़ाकर ले गई थी। जब मनोज गुप्ता आ गया तो उसे पकड़कर थाने ले जाया गया। अब नीतू नाई, मोनू सिंह और मनोज गुप्ता को थाने ले जाया गया, जहां पर इन तीनो की थाने पर पिटाई की गई।"
दयाशंकर ने आगे बताया, "इन तीनों को पीटा गया और उनसे जबरन एक काला बैग और लूटे गए सामान की व्यवस्था किये जाने के लिये दबाव बनाया गया। सुबह छह बज गया लेकिन इतने कम समय में तीनों कुछ भी दे पाने में असमर्थ थे। जब सामान की व्यवस्था नहीं हो पाई तो एसओ संजय मिश्रा, चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह से कहा की माल का इंतजाम करो।"
दूसरे ज्वैलर्स की दुकान से खरीदा गया सामान, गंगाघाट थाने के दीवान ने दिलवाया अवैध देशी कट्टा
पूरी घटना के चश्मदीद दयाशंकर बताते हैं, "माल के इंतजाम के लिये मैं एक सिपाही अमरजीत सिंह, चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह के साथ बर्रा में काली मठिया के पास एक सर्राफ प्रदीप ज्वैलर्स की दुकान पर गए। अब दुकान पर उसी 13 हजार रूपये से 5500 रूपये की चूड़ियां और बिछुवा खरीदा गया। हम सब वापस चौकी पर आ गए। काहूकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह ने मुझे कुछ रूपये दिए, और बर्रा आठ के पास एक और प्रदीप ज्वैलर्स के पास कान की झुमकी और बिछुवा लेने के लिये भेज दिया। और सिपाही अमरजीत सिंह को दो हजार रूपये देकर को गंगाघाट चौकी के दीवान के पास भेजकर देशी कट्टा मंगाया। 1200 रूपये में देशी कट्टा आया, और 800 रूपये अमरजीत ने वापस कर दिया। थाने पर जब सुबह फर्द बनने लगी, तो थाने के मुंशी विजय ने अपने बक्शे से एक और देशी कट्टा निकालकर दिया।"
दो अवैध देशी कट्टे और खुद सामान खरीदकर पुलिस ने कर दिया लूट की घटना का खुलासा
दयाशंकर बताते हैं, "दो कट्टो और सामान को दिखाकर पूरी घटना का खुलासा कर दिया गया। इसके साथ ही निर्दोष मोनू सिंह, मनोज गुप्ता और नीतू नाई को घटना का आरोपी बनाकर जेल भेज दिया गया। जबकि, इन तीनों का घटना से कोई वास्ता नहीं था।"
सर्राफा ने लूट के बरामद माल को पहचानने से किया इंकार
कानपुर के बर्रा थानाक्षेत्र में 3 अगस्त 2014 को हुई घटना का फर्जी खुलासा करने की पोल सर्राफा ललित सोनी ने कोर्ट में शपथ पत्र देकर खुद खोल दी। कोर्ट में दिए गए शपथ पत्र में ललित सोनी ने बताया है कि, पुलिस द्वारा लूट की घटना में जिस सामान की बरामदगी दिखाई गई है, वह उनका नहीं है। ललित सोनी बताते हैं, "पुलिस आज तक उस घटना का खुलासा नहीं कर पाई है। पुलिस ने क्या किया, कैसे किया, इस बात की मुझे जानकारी नहीं है।"
घटना में आरोपी बनाए गए मनोज गुप्ता को दो लोगों ने बैग दिया, स्थान की दूरी छह किमी
मामले में आरोपी बनाए गए मनोज गुप्ता (45) अपना दर्द साझा करते हुए द मूकनायक को बताते हैं कि, "5 अगस्त 2014 को रात लगभग 11 बजे पुलिस का फोन आया। पुलिस ने कहा, तुम्हारे ड्राइवर मोनू सिंह ने लूट की है, और बैग तुम्हे दिया है। पुलिस मोनू को मेरी आँखों के सामने पीट रही थी, मानवता के नाते मैंने उसे न पीटने को कहा। मैंने कहा, पहले आप मोनू से पूछ लीजिये कि, इन्होने बैग मुझे कहा दिया। मोनू बोला कि, मैंने आपको बैग सचान गेस्ट हॉउस के पास दिया है। मोनू को मैं अपनी औलाद की तरह मानता हूँ, इसलिए मैंने उसे मार से बचाने के लिए कुबूल कर लिया। मोनू के साथ चौकी में एक लड़का नीतू नाई मौजूद था, नीतू नाई ने भी कहा कि मैंने भी आपको बैग दिया है। उससे मैंने पूछा तुमने मुझे बैग कहां दिया। नीतू नाई बोला, मैंने आपको बैग खाड़ेपुर में दिया है। मैंने पुलिस से कहा, एक ही बैग मुझे दो लोग दे रहे हैं, और दोनों के बीच की दूरी छह किलोमीटर की है। सभी पुलिस वाले हंसने लगे और बोले, सीधे-साधे आदमी को फंसा रहे हो मिलकर, अब कोई इसे न छुएगा और न कुछ बोलेगा।"
मनोज गुप्ता ने बताया, "दो दिन बाद संजय मिश्रा शराब के नशे में आये और सभी को पीटना शुरू कर दिए। पुलिस ने मुझपर रेकी का आरोप लगाकर मामले में फंसा दिया और जेल भेज दिया।"
दो महीने बाद जेल से छूटकर आए, पुलिस ने फिर किया प्रताड़ित
मनोज गुप्ता पुलिस की प्रताड़ना का जिक्र करते हुए बताते हैं, "दो महीने बाद जब मैं जेल से छूट कर आया था। कलेक्टरगंज में कोई घटना घटी तो पूर्व में झूठा मामला दर्ज होने के कारण पुलिस ने मुझे ही उठा लिया। मैं घर से सब्जी लेने के लिए निकला था, वहां 112 नंबर की इनोवा आ गई। मुझे लगा सिपाही होंगे। लेकिन उसमे तत्कालीन कलक्टरगंज थानेदार दिनेश त्रिपाठी बैठे थे। मुझे थाने ले जाया गया और बहुत पीटा। मेरे परिचित टिल्लू जायसवाल ने किसी तरह मुझे पुलिस के चंगुल से छुड़ाया। इसके बाद से मैं घर के बाहर नहीं निकलता हूँ, और न ही किसी से ज्यादा मतलब रखता हूँ।"
घटना का ऑडियो पहुंचा आईजी के पास, हेड कांस्टेबल पर गिरी गाज
हेड कांस्टेबल दयाशंकर बताते हैं, "जब मैंने चौकी इंचार्ज वीरेंद्र प्रताप सिंह के कहने पर मोनू सिंह की बात मनोज गुप्ता से कराई तो मनोज गुप्ता के मोबाइल पर रिकार्डिंग कर ली गई थी। जब मनोज गुप्ता को जेल भेजा गया तब यह रिकार्डिंग परिजनों द्वारा वायरल कर दी गई। यह ऑडियो आईजी के पास पहुंचा तो मेरे खिलाफ मुकदमा लिखा गया। पूरे मामले में मुझे दोषी बना दिया गया। मैं आईजी के सामने पेश हुआ और थानेदार और चौकी इंचार्ज की पूरी करतूत बताई, लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई। मुझे सस्पेंड कर दिया गया और विभागीय जांच होने लगी। मुझे काफी परेशानी हुई। लेकिन मैं इस मामले में दोषी नहीं था, इसलिए मुझे बहाल कर दिया गया। पहले मैं बस कांस्टेबल था, पदोन्नति होने के बाद अब दरोगा के पद पर हूँ। तीन महीने बाद सेवानिवृत्त हो जाऊंगा। लेकिन अन्य पुलिसकर्मियों के कारण मेरे खिलाफ दर्ज हुए मुकदमे का केस आज तक लड़ रहा हूँ।"
दो महीना 21 दिन जेल में रहने के बाद जुटाए साक्ष्य
दारोगा दयाशंकर ने बताया, "दो महीने 21 दिन जेल में रहने के बाद घटना का फर्जी खुलासा करने वाली टीम का पर्दाफाश करने के लिए मैंने हर एक साक्ष्य को जुटाना शुरू कर दिया। टीम में शामिल एक दारोगा को फोन करके घटना की पूरी सच्चाई भी उगलवाई और रिकार्डिंग कर ली। 8 जुलाई 2017 में इस रिकार्डिंग को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ से भी शिकायत की। योगी आदित्यनाथ ने सभी दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए एसएसपी कानपुर को आदेश दिया था।"
"मैंने पूरे मामले की जानकारी आईजी आशुतोष पांडेय को दी, लेकिन मुकदमा सिर्फ मेरे खिलाफ लिखा गया। इस मामले को लेकर मैंने मुख्यमंत्री, राजयपाल, राष्ट्रपति, अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग को कई बार भेजी है। लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।" दयाशंकर ने बताया।
पुलिस कमिश्नर से की शिकायत तो रेंगने लगी फाइल
दयाशंकर बताते हैं, "चार साल भटकने के बाद कानपुर में कमिश्नरी लागू होने के बाद अक्टूबर 2021 में मैंने मामले की शिकायत पुलिस कमिश्नर असीम अरुण से की थी। असीम अरुण साहब ने जाँच के आदेश डीसीपी साऊथ मनीष सोनकर साहब को दिए थे। मेरा बयान डीसीपी साऊथ साहब ने रिकार्ड किया, लेकिन बड़े अधिकारियों के दबाव के बाद उन्होंने जांच अपने निचले अधिकारी एसीपी बाबूपुरवा अलोक कुमार सिंह को सौंप दी। एसीपी ने मेरे बयान रिकार्ड किये लेकिन फिर आगे क्या हुआ आज तक नहीं पता चला।"
पुलिस महानिदेशक, कानपुर पुलिस कमिश्नर सहित जोनल अफसर की ओर से नहीं मिला जवाब
पूरे मामले की जानकारी के लिए द मूकनायक टीम ने कानपुर पुलिस कमिश्नर के सीयूजी नंबर पर फोन किया, तो फोन ऑपरेटर ने उठाया। वहीं इस मामले में डीसीपी साऊथ को फोन किया गया तो उनका फोन पीआरओ ने उठाया। बर्रा थाने के क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा का सीयूजी नंबर उनके गनर ने उठाया। पूरे मामले के बारे में पुलिस महानिदेशक को फोन किया गया, लेकिन फोन उनके पीआरओ ने उठाया और मीटिंग में व्यस्त होने की बात कही। हलांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार अधिकारियों को अपना सीयूजी नंबर खुद उठाने कई चेतावनी भी दी है, लेकिन इसके बाद भी स्थिति जस की तस है।
घटना में आरोपी बनाये गए दो लोगों ने छोड़ दिया बर्रा क्षेत्र
पूरे मामले कि पड़ताल करने पर घटना में आरोपी बनाये गए मोनू सिंह और नीतू नाई से भी सपंर्क करने की कोशिश की। लोगों का यही कहना था कि उस रात पुलिस कि बर्बरता का शिकार होने के बाद दोनों ने बर्रा क्षेत्र छोड़ दिया। पुलिस की बर्बरता से बचने के लिए दोनों कहीं अनजान जगह रहकर जीवनयापन कर रहे हैं।
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