उत्तर प्रदेश। यूपी के राजधानी लखनऊ के फैजाबाद रोड (अब अयोध्या रोड) पर कुकरैल नदी के किनारे मौजूद अकबरनगर में ध्वस्तीकरण पर लगी रोक को इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 7 फरवरी तक के लिए बढ़ा दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जिन लोगों ने ध्वस्तीकरण के खिलाफ याचिकाएं अथवा हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल किए हैं, उन्हें ही 7 फरवरी के बाद ध्वस्तीकरण पर रोक का लाभ मिलेगा।
न्यायालय ने कहा कि अकबरनगर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से प्रभावित व्यक्ति यदि चाहे तो 7 फरवरी तक कोर्ट आ सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने अकबर नगर के निवासियों की ओर से दाखिल 11 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मुख्य न्यायमूर्ति के आदेश से एकल पीठ और खंडपीठ के समक्ष विचाराधीन सभी याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई हैं। वहीं सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों की ओर से जवाबी हलफ़नामा भी दाखिल किया गया।
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार शहर के बीच से होकर गुजर रही गोमती नदी की सहायक नदी कुकरैल के रिवर फ्रंट के निर्माण को लेकर युद्धस्तर पर काम कर रही है। रिवरफ्रंट के रास्ते में आ रहे अकबरनगर के करीब 1200 मकान व 102 दुकानों को अवैध मानकर उनको तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई थी। जिसके बाद यहां के बाशिंदों ने पुलिस और प्रशासन के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। लोगों ने इस पर जमकर प्रदर्शन किया। इससे जुड़े कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुए थे, जिसके बाद जिला प्रशासन, पुलिस, नगर निगम लखनऊ और लखनऊ विकास प्राधिकरण की जमकर किरकिरी हुई थी। लोगों के विरोध प्रदर्शन को देखकर कार्रवाई स्थगित हुई। इधर मौका पाकर यहां के बाशिंदों ने हाईकोर्ट की शरण ले ली।
अकबरनगर में ध्वस्तीकरण के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की ओर से दलील दी गई है कि 40-50 सालों से वे उस स्थान पर कब्जे में हैं और तब यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 लागू भी नहीं हुआ था। लिहाजा उक्त कानून के तहत याचियों को बेदखल करने की कार्रवाई नहीं की जा सकती। वहीं राज्य सरकार और एलडीए की ओर से दलील दी गई है कि याचीगण विवादित संपत्तियों पर अपना स्वामित्व नहीं सिद्ध कर सके हैं। कहा गया है कि वहां के लोगों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की गई है।
21 दिसम्बर को लगी थी ध्वस्तीकरण पर रोक
एकल पीठ ने 21 दिसम्बर 2023 को मामले पर सुनवाई करते हुए ध्वस्तीकरण पर रोक लगा दी थी. न्यायालय ने कहा था कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि याचियों समेत तमाम लोग प्रश्नगत क्षेत्र में बिना किसी स्वामित्व के कब्जे में हैं। समय बीतने के साथ वे कब्जे में रहे और वहां नगर निगम की सुविधाएं और सरकारी सड़कें भी पहुंचीं। न्यायालय ने पाया कि कुछ लोगों से तो नगर निगम बकायदा कर (टैक्स) भी वसूल रहा है और वहां एक सरकारी स्कूल भी है। न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिककर्ता अपना स्वामित्व सिद्ध कर पाने में अब तक असफल रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपना कब्जा सिद्ध किया है, भले ही वह अनधिकृत कब्जा है।
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