लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी पर आजीविका के लिए निर्भर मछुआरे दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं। कड़ाके की ठंड के कारण गोमती नदी का पानी ठंडा हो गया है। ऐसे में मछलियां गहरे पानी में चली जाती हैं। शिकार के दौरान मछलियां नहीं मिलने के कारण कमाई का एक मात्र साधन भी कुछ समय के लिए बन्द हो जाता है। ऐसे में मछुआरों को घर खर्च चलाने के लिए कर्ज तक लेना पड़ता है। द मूकनायक ने ग्राउण्ड जीरो पर जाकर मछुआरों के हालत को जाना। मछुआरों का कहना है सरकार से भी इन्हें कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है।
लखनऊ के डालीगंज इलाके में गोमती नदी के किनारे हजारों की संख्या में मछुआरे रहते हैं। मछुआरों की इस बस्ती को कश्यप बस्ती के नाम से जाना जाता है। इस बस्ती में लगभग एक हजार से भी अधिक मछुआरों के घर हैं। इनकी आबादी लगभग दस हजार के करीब है।
भीषण ठंड होने के कारण नदी का पानी ठंडा हो जाता है। ऐसे में मछलियां गहरे पानी में चली जाती हैं। मछुआरे नदी में जाल तो बिछाते हैं, लेकिन ठंड के कारण मछलियां उथले पानी में नहीं आती हैं। ऐसे में मछुआरों ने कई दिनों तक परेशान रहने के बाद शिकार पर जाना बंद कर दिया है।
डालीगंज में रह रहे मल्लाह दुर्गा प्रसाद कश्यप बताते हैं, "ठंड के कारण मछलियों का शिकार नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कोई आमदनी नहीं हो रही है। मैं अपने परिवार का पेट कर्जा लेकर पाल रहा हूँ। जब ठंड खत्म होगी तब इस कर्जे को चुकाऊँगा। यह नया नहीं है यह हर बार होता है।"
बुजुर्ग मल्लाह दुर्गा प्रसाद कश्यप बताते हैं, "35 साल से ज्यादा समय से इस काम को कर रहा हूँ। पहले तो मछलियां उथले पानी में आ जाती थीं, लेकिन जब से रिवर फ्रंट का काम हुआ है तब से मछलियां भी नहीं आती हैं।" उल्लेखनीय है समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान गोमती के दोनों किनारों के सौन्दर्यीकरण के लिए सीमेंट से घाट बना दिए गए थे। पर्यावरणविद व मरीन लाइफ विशेषज्ञों के अनुसार नदी के किनारों में हुए कंक्रीट निर्माण के काम से नदी के जलीय जीव व वनस्पति जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
अपनी पीड़ा बताते हुए मल्लाह राकेश कश्यप बताते हैं, " मुझे 25 साल हो गया है इस काम को करते हुए। मेरे पास नाव भी नहीं है। मैं खुद पानी में तैरकर जाल बिछाने जाता हूं। सरकार द्वारा हमें अभी तक कोई भी सहायता नहीं दी गई है।"
राकेश कश्यप आगे बताते हुए कहते हैं, " शहर में कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो पुलिस हम मछुआरों की सहायता लेती है। कई बार लोग नदी में डूब जाते हैं। लोग आत्महत्या करने के लिए नदी में कूद जाते हैं। पिछले सप्ताह एक कार नदी में पलट गई थी। चार लोग डूब गए थे। पुलिस ने हम मछुआरों के सहारे दो लोगों को बचा लिया। जबकि दो लोगों की लाश हमने ही गहरे पानी में जाकर निकाली थी। इस काम के बदले हमें 100-200 रुपए ही पुलिस देती है। इससे हमारा परिवार नहीं चलता है।"
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