उत्तर प्रदेश। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बालिग जोड़े को एक साथ रहने की आजादी है। माता -पिता समेत किसी को भी उनके जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। भले ही वो किसी भी जाति धर्म के हो। कोर्ट ने कहा बालिग जोड़ो के लिव इन रिलेशनशिप में रहने पर यदि कोई परेशान करता है या धमकाता है, तो उसके अर्जी देने पर पुलिस कमिश्नर संरक्षण मुहैया कराएं। वह बिना किसी रोक टोक के साथ रह सकते हैं।
यह फैसला हाईकोर्ट जस्टिस सुरेंद्र सिंह की सिंगल बेंच ने गौतमबुद्धनगर की रजिया और अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए जारी किया है। दरअसल याची रजिया का कहना था कि वह और उसका पार्टनर बालिग है, और अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं, इसके अलावा भविष्य में शादी करना चाहते हैं। जबकि, परिवार के लोग नाराज हैं और लगातार धमका रहे हैं। इसके साथ ही रजिया ने आनर किलिंग की संभावना भी जताई थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस को यह भी आदेश दिया है कि वह अंतर धार्मिक जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराए, जो फिलहाल लिव इन में रह रहे हैं। बताया जा रहा है कि हाई कोर्ट का यह आदेश अन्य मामलों में प्रभावी होगा। बताया जा रहा है कि लिव इन में रहे युवक अथवा युवती में से एक नाबालिग है, लेकिन माता-पिता को साथ रहने पर एतराज है।
याची के अनुसार उसने इसे लेकर हाल ही में 4 अगस्त को पुलिस कमिश्नर को शिकायत कर संरक्षण मांगा था। जिस पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली है। वहीं मामले में अपर शासकीय अधिवक्ता ने दलील देते हुए कहा कि दोनों अलग धर्म के हैं और मुस्लिम कानून के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप में रहना दंडनीय गुनाह है। इस पर बोलते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए बताया कि किसी भी बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का अधिकार है।
यह भी पढ़ें-
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.