थल सेना में एक कुप्रथा है, अफसरों द्वारा किसी जवान को उनके घर का काम करने के लिए उनका सेवादार या 'सहायक' बनने को कहना, स्पष्ट शब्दों में उनका निजी नौकर बनने को कहना है!
जिसमें सेवादार या बैटमैन बने जवान को अफसर के सभी काम मसलन खाना बनाना, साफ सफाई करना, सब्जी लाना, 'मेमसाहब' को शॉपिंग करवाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना, कुत्ता घुमाना, अफसरों के गोल्फ खेलते वक़्त उनके किट बैग ढोना…जैसे काम करने पड़ते हैं!
सेवादार बनने से मना करने पर जवान को हर तरह से प्रताड़ित किया जाता है, 'पिट्ठू' (फुल बैटल गेयर में दिनभर दौड़ाना) करवाया जाता है, प्रमोशन रोक दिया जाता है या कोर्ट मार्शल ही करवा दिया जाता है!
अब जब अग्निपथ योजना में अग्निवीर जवान के 4 साल की नौकरी के बाद स्थायी होने की संभावना अफसरों के दया पर निर्भर करेगी, ऐसे में अपनी नौकरी स्थायी करने के लोभ में जवान अपने स्वाभिमान से समझौता कर अफसरों के सेवादार बनकर उनके घर झाड़ू लगाने को बाध्य नहीं होंगे?
इससे भारतीय थल सेना में सैनिकों और उनके अफसरों के बीच बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध में विश्वास और आपसी सम्मान की कमी नहीं आएगी?
गौरतलब है कि छेड़छाड़ की शिकायतों और अफसर-जवानों के सम्बन्धों में गिरावट के खतरे को भाँपते हुए वायु सेना और जल सेना ने अंग्रेजों के समय से चली आ रही 'सेवादारी' पर काफी हद तक लगाम लगा दिया है, पर थल सेना के वर्तमान एवं पूर्व अफसर इसे शोषणकारी प्रथा को आज भी महिमामण्डित करते हैं!
(लेखक – अभिनव पंकज, राष्ट्रीय जनता दल के सोशल मीडिया व IT सेल उपाध्यक्ष है.)
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