देश में जब-जब चुनाव का समय आता है, विभिन्न सामाजिक संगठन राजनीतिक दलों के एजेंडे में अपनी बात शामिल करवाने में जुट जाते हैं. इस मामले में 2007 वजूद में आया लेखकों का संगठन बीडीएम कुछ ज्यादा ही तत्पर रहा है. यह लोकसभा चुनाव- 2009 से ही हर महत्वपूर्ण चुनाव पूर्व भव्य आयोजन के जरिये पार्टियों के घोषणा पत्रों में अपना एजेंडा शामिल करवाने का उद्योग लेता रहा है. इसी मकसद से इसकी ओर से हर साल 27 अगस्त को मनाये जाने वाले ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन इस बार दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हुआ, जिसमें का परिचर्चा का विषय रहा,’ लोकसभा चुनाव – 2024 को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों हैं जरूरी! लोकसभा चुनाव 2024 को दृष्टिगत रखकर ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ और ‘संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ द्वारा आयोजित 17वें डाइवर्सिटी डे को इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस)के समक्ष एक अपील जारी करने का माध्यम बनाया गया.इसलिए आमंत्रित अतिथियों में लेखक-पत्रकारों के बजाय इंडिया से जुड़े नेताओं को प्रधानता दी गयी.
इसमें मुख्य अतिथि रहे के.सी त्यागी(पूर्व सांसद,मुख्य प्रवक्ता एवं सलाहकार जदयू) रहे तो उद्घाटनकर्ता रहे कैप्टन अजय सिंह यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, एआईसीसी, ओबीसी डिपार्टमेंट) और अध्यक्षता किये आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री व वर्तमान में विधायक मान्यवर राजेन्द्र पाल गौतम. विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित रहे एआईसीसी के एससी डिपार्टमेंट के चेयरमैन मा. राजेश लिलोठिया और सीपीआई की ऐनी राजा, जो किसी कारणवश शिरकत न कर सके. यूँ तो इस अवसर पर एच एल दुसाध की लिखित/सम्पादित 7 किताबें भी रिलीज हुईं जिनमें ‘राहुल गांधी: कल , आज और कल’ तथा ’ सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन : राहुल गाँधी’ जैसी ख़ास किताबें भी रहीं, किन्तु आयोजकों की ओर से सर्वाधिक महत्त्व दिया गया ‘ बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ और ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ द्वारा ‘इंडिया के समक्ष हमारी अपील ‘ शीर्षक से जारी दो हजार शब्दों की एक अपील , जिसका विमोचन मुख्य अतिथि के.सी त्यागी ने किया.इसमें 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर बीडीएम और संविधान बचाओ संघर्ष समिति की ओर ‘इंडिया’ के समक्ष दस अपील की गयी है, जो इतनी महत्वपूर्ण हैं कि भविष्य में इसका अनुसरण दूसरे संगठन भी कर सकते हैं!
देश के वर्तमान आर्थिक- राजनीतिक हालात को भयावह बताते हुए इसमें शुरुआत में कहा गया है,’स्वाधीन भारत के ऐसे भयावह दौर में इंडिया का वजूद में आना हम नई सदी की सबसे सुखद घटनाओं में एक मानते हैं और विश्वास करते हैं इससे हमारा लोकतंत्र सबकी भागीदारी वाला लोकतंत्र बनेगा तथा सामाजिक अन्याय – मुक्त व समतापूर्ण वह भारत आकार लेगा, जिसका सपना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने देखा था. ऐसे में हम दलित, आदिवासी, पिछड़ों एवं इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यकों तथा आधी आबादी की आशा और आकांक्षा का प्रतीक बन चुके इंडिया के लिए अपना सर्वस्व देने की घोषणा करते हैं.आज सामाजिक अन्याय तथा साप्रदायिक नफरत का सैलाब बहाने वाली भाजपा को सत्ता से हटाना इतिहास की सबसे बड़ी मांग है. इसे देखते हुए हम इंडिया के समक्ष दस अपील रख रहे हैं’.इसकी शुरुआत इस बात से हुई है,’ हम सबसे पहले इंडिया में शामिल उन दलों के प्रति विशेष आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने कभी संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी नहीं किया एवं विपरीत हालातों में भी उसकी देश व बहुजन विरोधी नीतियों के खिलाफ अविराम संघर्ष चलाते रहे.’
अपील नंबर 2 में कहा गया है,’ भाजपा को हराने के लिए सबसे जरूरी है कि इंडिया उसे सामाजिक न्याय की पिच पर खेलने के लिए बाध्य करे क्योंकि नई सदी का इतिहास इस बात का साक्षी है कि चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने पर भाजपा हारने के सिवाय कुछ नहीं कर सकती. भाजपा को सामाजिक न्याय कि पिच पर खिलाकर बड़ी आसानी से उसे मात दिया जा सकता है, इसका उज्जवल दृष्टान्त 2015 के बिहार तथा 2023 के कर्णाटक विधानसभा चुनावों में स्थापित हो चुका है’.
तीसरे में कहा गया है कि ‘भाजपा दलित, आदिवासी,पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस कदर मतवाला बना दी है कि वे आरक्षण सहित अपने अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुचने से भी निर्लिप्त हो गए हैं. वंचित बहुजनों का यह घातक नशा सिर्फ उग्र सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से ही उतारा जा सकता है, ऐसा हमारा मानना है’.
अपील नंबर 4 में कहा गया है,’हम जून,2023 में अमेरिकी दौरे पर राहुल गांधी की कही इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ‘भाजपा को हराने के लिए सिर्फ विपक्षी एकजुटता ही काफी नहीं है: जरूरत वैकल्पिक विजन की है. चूँकि भाजपा का विजन विशुद्ध सामाजिक न्याय विरोधी विजन है, इसलिए इंडिया भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए इसके वैकल्पिक विजन:‘सामाजिक न्याय वादी विजन’ के साथ 2024 के चुनाव में उतरे’.
पांचवीं अपील बहुत चौकाने वाली है, जिसमें कहा गया है कि-महंगाई,बेरोजगारी,साम्प्रदायिकता, आवारा पशु, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था जैसे रूटीन मुद्दे तथा किसान और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर भाजपा का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता. 2019 के लोकसभा चुनाव में किसानों का आंदोलन तथा राफेल जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे खूब उछाले गए,पर विपक्ष भाजपा को रिकॉर्ड सीटें जीतने से नहीं रोक पाया.परीक्षित सच्चाई यही है कि भाजपा सिर्फ सामाजिक न्याय के मुद्दों के समक्ष लाचार हो सकती है, जिसका ताजा दृष्टांत इस वर्ष कर्नाटक विधानसभा चुनाव में स्थापित हुआ है!’
छठवें में कहा गया है,’ मंडल के खिलाफ उभरे मंदिर आन्दोलन के जरिये नफरत की राजनीति को तुंग पर पहुंचा कर अप्रतिरोध्य बनी भाजपा के नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए राजसत्ता का इस्तेमाल हजारों साल के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में किया है, उससे यह मानकर चलना चाहिए कि भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के लोग आगामी 25 वर्षों तक अपना वोट भाजपा को छोड़कर अन्य किसी भी दल को ,किसी भी सूरत में नहीं देने जा रहे हैं. ऐसे में इंडिया जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के वोटों से मोहमुक्तR होने की मानसिकता विकसित करते हुए सारा जोर उन दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों पर लगाये जिनका मोदी-राज में सर्वनाश हुआ है!’
अपील नंबर सात में कहा गया है,’जिस सामाजिक न्याय के जोर से शर्तिया तौर पर भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है उस सामाजिक न्याय के नाम पर शक्ति के थोड़े से स्रोतों- सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों के प्रवेश, कुछ वस्तुओं के डीलरशिप इत्यादि- में ही आरक्षण दिया गया है, जिसे सामाजिक न्याय की खानापूर्ति ही कहा जा सकता है. अगर हजारों साल के जन्मजात वंचितों को मुकम्मल सामाजिक न्याय दिलाना है तो शक्ति के समस्त स्रोतों, जिसके दायरे में सेना, पुलिस बल व न्यायालयों इत्यादि सहित सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरियां ,पौरोहित्य, डीलरशिप, सप्लाई,सड़क-भवन निर्माण इत्यादि के ठेकें,पार्किंग,परिवहन, शिक्षण संस्थानों; विज्ञापन व एनजीओ को बंटने वाली धनराशि; ग्राम पंचायत, शहरी निकाय, संसद- विधानसभा की सीटें , विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालयों, राष्ट्रपति,राज्यपाल, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों के कार्यबल इत्यादि आते में हैं, में विविध समाजों के स्त्री- पुरुषों के संख्यानुपात में आरक्षण लागू करना होगा. अगर इंडिया की ओर से सामाजिक न्याय का मुकम्मल एजेंडा घोषित होता है तो भाजपा बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाएगी और नफरत के नशे में मतवाले अज्ञानी बहुजन इंडिया के पीछे लामबंद हो जायेंगे, ऐसा मानने में हमें कोई दुविधा नहीं!
आठवें में कहा गया है,’ हम मानते है कि भारत में सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार देश की आधी आबादी है, जिसे आर्थिक-सामाजिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने के कयास लगाये जा रहे हैं.आधी आबादी को शक्ति के स्रोतों में उसका प्राप्य दिलाने बिना सामाजिक न्याय और समतामूलक भारत का सपना, सपना ही बना रहेगा. आधी आबादी को सामाजिक अन्याय के दलदल से निकालने के लिए जरूरी है कि विभिन्न समुदायों के आरक्षण में पहले 50% हिस्सा उसके महिलाओं को और शेष 50 उस समुदाय के पुरुषों को मिले. अगर सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार आधी आबादी है तो सर्वाधिक अन्यायकारी वर्ग जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग का पुरुष समुदाय है, जिसकी आबादी तो बमुश्किल साढ़े सात- आठ प्रतिशत है,परन्तु शक्ति के स्रोतों पर कब्ज़ा उसकी आबादी से प्रायः दस गुना ज्यादा है. यदि इंडिया इस वर्ग को उसके संख्यानुपात रोकने का प्रावधान कर दे तो उसके हिस्से का 60 -70% अवसर अतिरिक्त अर्थात सरप्लस हो जायेंगे. फिर यदि इस अतिरिक्त अवसर को सामाजिक अन्याय के शिकार वर्गों के मध्य वितरित कर दिया जाय तो आसानी से वैसा भारत निर्माण किया जा सकता है,जिसका सपना हमारे राष्ट्र- निर्माताओं ने देखा था!’
अपील नंबर 9 में कहा गया है,’ हम मानते हैं कि नई सदी में कांग्रेस सबसे बड़ी सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में उभरी है, जिसने रायपुर के अपने 85वें अधिवेश से लेकर 2023 के कर्णाटक विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति का अभूतपूर्व दृष्टांत स्थापित किया तथा इस क्रम में राहुल गाँधी सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन के रूप में उभरे. साथ में हम यह भी मानते हैं कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि भाजपा हम वंचित बहुजनों की वर्ग-शत्रु है तो कांग्रेस वर्ग-मित्र! भाजपा ने जहां राजसत्ता का इस्तेमाल बहुजनों को बर्बाद करने में किया है तो कांग्रेस ने उसका इस्तेमाल इनकी समृद्धि और उन्नति के लिए किया है.आज वंचित बहुजनों ,विशेषकर दलित और आदिवासियों मे कुछ लोग आर्थिक- राजनीतिक- शैक्षिक क्षेत्र में विशेष उपलब्धि अर्जित किये हैं तथा इनमें समाज को नेतृत्व देने लायक एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ है तो उसका अधिकतम श्रेय आजाद भारत के कांग्रेस सरकारों को जाता है.’
अंतिम और 10 वीं अपील में कहा गया है,’ हम मानते हैं केवल कार्यपालिका में भागीदारी अर्थात नौकरियों में आरक्षण से ही हमारे राष्ट्र निर्माताओं का समतामूलक भारत निर्माण का सपना पूरा नहीं हो सकता । बात तब बनेगी जब वंचित बहुजनों को देश की धन- दौलत, जमीन- जायदाद, उद्योग- व्यापार, कल- कारखानों, बाजार का 85% हिस्सा कायम हो। आज के इस पूंजीवाद के दौर में अगर अदानी - अंबानी बिना बैंक कर्ज के कारोबार नहीं कर सकते तो गरीब बहुजन कैसे व्यापार कर लेंगे! गरीब बहुजनों को तो इन धन्नासेठों से कई गुना बैंक कर्ज मिलना चाहिए। हमारी मांग है कि भारत के तमाम बैंकों से दिए जाने वाले कुल बैंक कर्ज का 85% हिस्सा बहुजन समाज के सदस्यों को खुद का व्यवसाय खड़ा करने के लिए मिले या फिर प्रत्येक बहुजन जब 18 वर्ष की आयु का हो तो उसे अपना व्यापार शुरू करने के लिए कम ब्याज दर पर न्यूनतम एक करोड़ रुपए का बैंक कर्ज मिले। इसके साथ-साथ संविधान को जड़ से उखाड़ फेंकने की जो साजिश प्रधानमंत्री के आर्थिक मामलों के परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय को ढाल बनाकर की जा रही है, उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। हम संविधान बचाने की पवित्र लड़ाई जब तक हमारे शरीर मे खून का एच कतरा भी बाकी है, आखिरी सांस तक लड़ेंगे। हम उम्मीद करते हैं कि इस अपील/ प्रस्ताव में जो 123 करोड़ लोगों की भावना का प्रतिबिम्बन हुआ है:‘इंडिया’ लोकसभा- 2024 का चुनावी एजेंडा स्थिर करते समय उसकी अनदेखी नहीं करेगी!’
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
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