नई दिल्ली। कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी के बाद केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों शख्सियतों को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देने की जानकारी सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों के साथ शेयर की। इन सबको मिलाकर इस साल 2024 में पांच लोगों को भारत रत्न मिला है।
इस सबके बीच एक गौर करने वाली बात यह है कि देश की आजादी के 77 वर्षों बाद भी, आदिवासी समाज के किसी व्यक्ति को आज तक यह सम्मान नहीं मिला। जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश की कुल आबादी का करीब 9% हिस्सा आदिवासी हैं। वहीं जनसंख्या के हिसाब से यह आंकड़ा 12 करोड़ से ज्यादा है।
किसी आदिवासी को नहीं मिला है 'भारत रत्न'
हमारे देश में आदिवासी समुदाय का यह हालात तब है, जब हमारे समाज के पास देश के आजादी की पहली लड़ाई लड़ने वाले तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, सिपाही विद्रोह से पहले अंग्रेजो को हराने वाले पोटो, संथाल हूल के नायक वीर सिदो-कान्हू, शहीद तेलंगा खड़िया, नीलाम्बर- पीताम्बर, जतरा भगत, लक्ष्मण नाइक, नारायण सिंह, गोविंद गुरु, पा तोगन संगमा, सुरेंद्र साईं जैसे अनगिनत नाम हैं। आदिवासी समाज ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसको लेकर कई आदिवासी नेता और कार्यकर्ता आवाज उठाते रहे हैं कि आदिवासी समाज के किसी व्यक्ति को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। कुछ लोग बिरसा मुंडा, टंट्या भील और जयपाल सिंह मुंडा जैसे आदिवासी नेताओं को भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं। लकिन इस देश के लिए आदिवासी समाज का उल्लेखनीय योगदान के बावजूद उन्हें अब तक एक भी सम्मान नहीं मिल पाना बेहद शर्मनाक और अफसोसजनक है।
बिरसा मुंडा ने न केवल आजादी में योगदान दिया था, बल्कि उन्होंने आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए भी कई कार्य किए थे। भले ही बिरसा मुंडा बहुत कम उम्र में शहीद हो गए थे, लेकिन उनके साहसिक कार्यों के कारण वह आज भी अमर हैं।
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में गोंड, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, सहरिया, संथाल, भूमिज, हो, उरांव, बिरहोर, पारधी, असुर, भिलाला, मीणा, आदि हैं।
वहीं, दलित समाज को अबतक एक भारत रत्न मिला है। यह संख्या कुल जनसंख्या वितरण के बिल्कुल विपरीत है, जहां दलित (अनुसूचित जाति) और आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) भारतीय आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जबकि यह पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों को स्वीकार करता है।
बता दें कि भारतीय संविधान के निर्माता बी. आर. अम्बेडकर को 1990 में भारत रत्न मिला था। जिसके बाद किसी भी दलित को यह सम्मान नहीं मिला। हालांकि, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग जोर-शोर से उठी थी लेकिन सम्मान दिए जाने का निर्णय नहीं हो सका। वहीं, आज तक किसी भी आदिवासी व्यक्ति को भारत रत्न नहीं मिला है।
इस असमानता ने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करने में इन समुदायों के कम प्रतिनिधित्व को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। जबकि चयन प्रक्रिया राष्ट्र के लिए उत्कृष्टता और सेवा पर जोर देती है। आलोचकों का तर्क है कि यह अक्सर हाशिए पर रहने वाले समूहों के योगदान को नजरअंदाज कर देती है।
भारत रत्न देने की शुरुआत 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल में हुई थी। इसकी स्थापना के बाद अब तक 53 हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। वहीं, इस सम्मान में अन्य वंचित समुदायों का प्रतिनिधित्व भी सीमित है, जिसमें 6 पुरस्कार विजेता मुस्लिम और 2 पुरस्कार विजेता ओबीसी हैं। जाति और जनजातीय पहचान आवश्यक रूप से असाधारण उपलब्धि को नकारती नहीं है, और कम प्रतिनिधित्व पुरस्कार प्रणाली के भीतर समावेशिता और मान्यता के बारे में सवाल खड़ा करती है।
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