बाँसवाड़ा: दक्षिणी राजस्थान में नव गठित बांसवाडा संभाग में आदिवासी समुदाय संभागीय आयुक्त से खफा हो कर उन्हें हटाने की मांग कर रहा है. सोशल मीडिया पर आदिवासी समाज के सदस्य मुख्यमंत्री से अफसर को हटाने की मांग कर रहे हैं. बुधवार को दिनभर ये मुद्दा ट्रेंडिंग रहा.
दरअसल सीनियर आईएएस नीरज के पवन बांसवाडा के संभागीय आयुक्त हैं. प्रशासन द्वारा टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बाँसवाड़ा के द्वीपों को सूचित और चिन्हित किया जा रहा है. माही नदी के बैकवाटर में 100 टापू हैं जो बांसवाडा की नैचुरल सुन्दरता को कई गुना अधिक बढाता है. प्रशासन यहाँ पर्यटकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम करने वाला है.
इसी कड़ी में संभागीय आयुक्त नीरज पवन ने राम मदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दरमियान समूचे माहोल को 'राममयी' देखते हुए द्वीपों का नाम रामायण के किरदारों पर रखने की घोषणा की.
21 जनवरी को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पवन ने लिखा कि बांसवाड़ा के 100 टापुओं (द्वीपों) का नामकरण रामायण के पात्रों पर किया जाएगा। आगे लिखा कि, "आगामी सदियों तक इन द्वीपों को रामायण के पात्रों के नाम से जाना जाएगा तो रामायण आपके और हमारे बीच में हमेशा जिंदा रहेगी।" डिविजनल कमिश्नर का यह प्रस्ताव आदिवासी समुदाय को आहत कर गया.
चौरासी के विधायक और भारत आदिवासी पार्टी के फाउंडर मेम्बर राजकुमार रोत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. रोत ने x पर लिखा, "आयुक्त साहब आप एक अच्छे IAS अधिकारी हो, यहाँ के युवाओं में आपकी एक अच्छी इमेज है लेकिन आपके इस ट्विट का हम विरोध करते हैं। जो आज एक सुन्दर बाँसवाड़ा है, उसके निर्माण में हजारों आदिवासियों ने अपनी शहादत दी है। द्वीपों का नामकरण होगा तो इनके नाम से होगा."
भारत आदिवासी पार्टी के समर्थकों के अलावा समुदाय के युवा और बुजुर्ग सदस्यों ने इस पवन के कमेन्ट की घोर निंदा की और कहा की रामायण के किरदारों की बजाय राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के भील राजाओं के नाम से माही बांध के टापूओं का नामकरण किया जाए!
डॉ. जितेंद्र मीणा, असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा कि बंसिया भील ने बांसवाड़ा बसाया है और आज भी 77% आबादी आदिवासियों की हैं. आदिवासी इस क्षेत्र में तब से निवास कर रहे हैं जब से राम जी या रामायण का अस्तित्व भी नहीं था. ऐसे में बाँसवाड़ा के किसी भी हिस्से का क्या नाम होगा ये सिर्फ आदिवासी तय करेंगे.
बाप के संस्थापक सदस्य कांतिभाई रोत ने कहा, "भील प्रदेश बांसवाडा जिला राजस्थान का इतिहास आदिवासी भील राजा बांसिया सरपोटा के नाम से जाना जाता हे माही नदी पर माही बजाज सागर डेम बनाने के बाद हजारों आदिवासियों की जमीन गई है जिस पे टापु बने हुए हैं , अगर नामकरण होगा तो आदिवासी पुरखो के नाम से टापू होंगे बाकी रामायण के पात्र के नाम देश के अन्य स्थानों पर बहुत हो चुके हे आदिवासी इतिहास के साथ छेड़खानी सहन नहीं होगी."
आदिवासी समाज का कहना है माहीडेम बनने से लगभग 340 गांवों के हजारों आदिवासियों को विस्थापित होकर कुर्बानियां दी उनको आज तक जमीन नसीब नहीं हुई है और नीरज पवन एक संवैधानिक पद पर होते हुएआदिवासियों के इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं यह कतई बर्दाश्त नहीं होगा.
समुदाय के सदस्यों ने रामायण के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि, वाल्मीकि रामायण बारहवीं शताब्दी के शासक "पृथ्वीराज चौहान" के शासनकाल तक लिखी नहीं गई थी, यदि बारहवीं शताब्दी में वाल्मीकि रामायण लिखी जा चुकी थीं, तो सबूत बताएं.
समुदाय के इस आक्रोश को गैर आदिवासी वर्ग के लोगों का भी समर्थन प्राप्त हुआ जिन्होंने माना कि आदिवासियों की जल जंगल व जमीन पर सिर्फ और सिर्फ उनका ही अधिकार है. यदि टापुओं का नामकरण किया जाना है तो यह स्थानीय जनता की सहमति से जन प्रतिनिधियों के मार्फत किया जाना चाहिए ना कि ब्यूरोक्रेसी इसमें दखल करें क्योंकि इनके संसाधन केंद्र व राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
नीरज के पवन 2003 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस हैं और राजस्थान के झालावाड़ के ही रहने वाले हैं. नीरज ने क्लीनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स की पढ़ाई की हुई है. नीरज के. पवन के पिता पुलिस में और मां टीचर थीं. उन्होंने पूरी पढ़ाई सरकारी स्कूलों से की थी. पहली ही बार में सिविल सर्विस का पेपर निकाल आईएएस बन गए थे.
उनकी कार्यशैली ने इन्हें जनता के बीच लोकप्रियता दिलाई. उन्हें राजस्थान के सबसे बेहतरीन आईएएस अधिकारियों में से माना जाता था. उनकी कार्यशैली को आम लोग बहुत पसंद करते थे. लोगों के बीच नीरज का ऐसा क्रेज हो गया था कि नीरज का भरतपुर से ट्रांसफर होने पर बाजार बंद रख इस फैसले का विरोध किया था. सोशल मीडिया पर नीरज के. पवन फैन क्लब जैसे पेज बन जाया करते थे. नीरज ऐसे अधिकारी थे जो ना सिर्फ कलेक्टर ऑफिस में रहते थे पर गांव में रात को जाकर रात्रि चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनते और उनका वहीं समाधान करते थे. 30 मई 2016 को राजस्थान की एंटी करप्शन यूनिट ने एक लंबी पूछताछ के बाद तत्कालीन पदेन शासन सचिव एवं कृषि और उद्यानिकी आयुक्त नीरज के पवन को गिरफ्तार किया. एनआरएचएम के एक टेंडर को पास करने के लिए नीरज पर रिश्वत लेने का आरोप लगा यह टेंडर सात करोड़ का था. जिसको पास करने के लिए नीरज और कुछ अन्य अधिकारियों ने कथित रूप से डेढ़ करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी.
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