आदिवासी सप्ताह विशेष: उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति; कबीलों को स्थायी आवास और आजीविका स्रोत की दरकार

आदिवासी समुदाय समय-समय पर अपना स्थान बदलने पर मजबूर हैं, अशिक्षित होने से कहीं नौकरी नहीं कर पाते हैं।
भीख मांगकर घर लौटी रागिनी अपनी छोटी बेटी को खाना खिलाते हुए
भीख मांगकर घर लौटी रागिनी अपनी छोटी बेटी को खाना खिलाते हुएफोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक
Published on

उत्तर प्रदेश। राज्य में आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासी रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं। काम न मिलने पर वह फेरी का काम करते हैं। जब वह इसमें विफल होते हैं तो भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल जनजातियों की संख्या 11,34,273 है। 

उत्तर प्रदेश में कुल 12 जनजातियां हैं। जिनमे सबसे पुरानी जनजाति थारू तथा बुक्सा है। सबसे ज्यादा जनजाति सोनभद्र जनपद में तथा सबसे कम जनजाति बागपत में हैं। इसके अलावा अन्य जिलों जिनमे आजमगढ़, मऊ, सीतापुर, लखीमपुर, हरदोई में भी आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। द मूकनायक की टीम लखनऊ से सटे हरदोई में ग्राउंड जीरो पर इन आदिवासियों का हाल जानने पहुंची। 

जानिए किस हाल में है ये आदिवासी समुदाय 

यूपी की राजधानी लखनऊ से माल और मलिहाबाद के रास्ते होते हुए लगभग 70 किमी दूर कोथावां ब्लॉक में द मूकनायक की टीम हत्याहरण के पास डीह इलाके में पहुंची। इस क्षेत्र में 50 से अधिक आदिवासी परिवार रहते हैं। यह आदिवासी समुदाय समय-समय पर अपना स्थान बदलने पर मजबूर हैं। आदिवासी कबीले में रहने वाले रमेश से द मूकनायक प्रतिनिधि ने बातचीत की।

रेमश ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बताया, "मैं फेरी का काम करता हूँ। कुछ समय पहले ही हम डीह पर रहने आये हैं। इससे पहले हम हत्याहरण के पास डेरा लगा कर रह रहे हैं। और उससे भी पहले हम भैयन गांव के पास रहते थे। अब तक हम सौ से अधिक बार जगह बदल चुके हैं।"

अपनी पीड़ा बताते हुए रमेश कहते हैं, "सबसे ज्यादा हमें जगह बदलने में कष्ट होता है। हम जब काम पर निकलते है, तो मन में डर बैठा रहता है कि घर पहुंचे तो हमारा घर उजाड़ न दिया गया हो। कई बार तो हमें भगा दिया जाता है। रोजगार की समस्या बहुत ज्यादा है। बच्चों का पेट पालने के लिए मैं बिंदी, लाली, लिपिस्टिक आदि बेचता हूँ। इसमें दो-तीन सौ रुपए की कमाई हो जाती है। लेकिन इस महंगाई में यह खर्चा भी कम पड़ता है।"

भीख मांगकर लौटी रागिनी के झोले से रोटी ढूंढती उसकी बेटी
भीख मांगकर लौटी रागिनी के झोले से रोटी ढूंढती उसकी बेटीफोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

"मैं बचपन से कभी स्कूल नहीं गया और न ही मेरे माता पिता कभी गए। लगातार जगह बदलते रहने के कारण मैं अपने बच्चों को भी पढ़ा नहीं पाता हूँ। मेरे बच्चे भी पढ़ने की जगह मेरी तरह फेरी का काम करना पसंद करते हैं। इससे परिवार की कुछ आमदनी ही बढ़ जाती है", रमेश ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बताया

तिरपाल से बने अस्थायी तंबू में रहने को मजबूर हैं आदिवासी परिवार
तिरपाल से बने अस्थायी तंबू में रहने को मजबूर हैं आदिवासी परिवारफोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

बस्ती में रहने वाले सलमान और रागिनी से द मूकनायक प्रतिनिधि ने बात की। सलमान की छह साल पहले शादी हुई थी। अब सलमान के ऊपर दो बेटियों की जिम्मेदारी है। सलमान गुब्बारे बेचने का काम करता है। जबकि उसकी पत्नी भीख मांगकर राशन इकट्ठा करती है। सलमान अपनी पीड़ा बताते हुए कहता है, "रोजगार की बड़ी समस्या है। बंधा हुआ काम मिलना मुश्किल है। परिवार पालने के लिए गुब्बारे बेचने का काम करता हूँ। लेकिन गुब्बारे से ज्यादा पैसा नहीं होता। जो कुछ बचता है वह बच्चियों की देख-रेख और दवाई में खर्चा हो जाता है। हमारे पास कोई बचत नहीं है।"

तिरपाल से बने घर के बाहर बैठा आदिवासी व्यक्ति और उसका परिवार
तिरपाल से बने घर के बाहर बैठा आदिवासी व्यक्ति और उसका परिवारफोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

श्रम कार्ड बना हुआ लेकिन रोजगार नहीं

सलमान अपना श्रम कार्ड दिखाते हुए बताते हैं, "मेरे पास सरकार से बना श्रम कार्ड भी है लेकिन इससे रोजगार नहीं मिलता है। जब यह बन रहा था तो उम्मीद थी कि अब जिंदगी अच्छी हो जाएगी लेकिन कुछ दिन काम मिला और फिर नहीं। कई बार काम के पैसे नहीं दिए गए। अब कुछ पैसों के लिए हमने भी ज्यादा नहीं सोचा। कौन पुलिस से शिकायत करे। हम गरीबों की पुलिस भी सुनवाई नहीं करती है।"

सलमान की पत्नी द मूकनायक प्रतिनिधि से बात करते हुए कहती हैं, "हमारे पास आधार कार्ड है। राशन कार्ड है लेकिन उसमें सिर्फ मेरा नाम है। पांच किलो राशन ही मिलता है। दो बेटियों का पेट पालने के लिए मुझे भीख मांगना पड़ता है। जो कुछ मिलता है उसमें मैं और मेरा परिवार खाते हैं।"

उत्तर प्रदेश में आदिवासियों की संख्या

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में अनुसूचित जनजाति और जनजाति की संख्या 1,028,737,436 है। इस जनसंख्या में से 8.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति के हैं। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोग उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम, मेघालय और नागालैंड और लक्षद्वीप द्वीप में रहते हैं। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जब एक ही हुआ करते थे तब भी आदिवासी आबादी बहुत कम थी। फिर जब राज्य उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विभाजित हुआ तब उत्तराखंड में एसटी की प्रमुख आबादी थी। 

आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 107963 अनुसूचित जनजाति रह गई, जो कि वहां की राज्य की जनसंख्या का केवल 0.1% है। हालांकि यह दिलचस्प है कि 2002 में तत्कालीन सरकार ने कुछ नई अनुसूचित जनजाति की घोषणा की थी। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल जनजातियों की संख्या 11,34,273 है। संविधान के अनुच्छेद 342 में जनजातियां उल्लिखित हैं। सबसे ज्यादा जनसंख्या थारू जनजाति की है। उत्तर प्रदेश में कुल 12 जनजातियां हैं। सबसे पुरानी जनजाति थारू तथा बुक्सा है।

थारू जनजाति के लोग उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के तराई भाग में निवास करते है। थारू जनजाति के लोग किरात वंश से सम्बंधित है। थारुओं द्वारा बजहर नामक त्यौहार मनाया जाता है। दीपावली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते है, थारू जनजाति द्वारा होली के मौके पर खिचड़ी नृत्य किया जाता है। थारू जनजाति के लोगों में बदला विवाह प्रथा तथा तीन टिकठी विवाह प्रथा प्रचलित है , थारुओं में दोनों पक्षो से विवाह तय हो जाने को पक्की पोड़ी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर 1980 को थारू विकास परियोजना का प्रारंभ किया गया था। यूपी में थारू सबसे ज्यादा जनजाति सोनभद्र जनपद में तथा सबसे कम जनजाति बागपत में हैं।

यह भी पढ़ें-
भीख मांगकर घर लौटी रागिनी अपनी छोटी बेटी को खाना खिलाते हुए
बिहार में जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज, पटना हाईकोर्ट से सरकार को ग्रीन सिग्नल
भीख मांगकर घर लौटी रागिनी अपनी छोटी बेटी को खाना खिलाते हुए
आदिवासी सप्ताह विशेष: मध्य प्रदेश की सहरिया जनजाति; शिक्षा से दूर होते बच्चे कुपोषण और पिछड़ेपन के शिकार
भीख मांगकर घर लौटी रागिनी अपनी छोटी बेटी को खाना खिलाते हुए
मां-बाप थे इमारती मजदूर लेकिन बेटे को पढ़ाया और आज उसे मिली यूके में स्कॉलरशिप

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com